डॉ पंकज शर्मा
लखनऊ: अयोध्या में श्री राम मंदिर के ध्वजारोहण का ऐतिहासिक क्षण केवल एकधार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक पुनर्स्थापना और राष्ट्रीयपुनर्जागरण का प्रतीक बन गया। इस शुभ अवसर पर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्रमोदी के सम्बोधन ने एक आध्यात्मिक उत्सव से कहीं आगे बढ़कर, राष्ट्र केलिए एक स्पष्ट, सारगर्भित और दूरगामी रोडमैप प्रस्तुत किया। यह भाषणअतीत के प्रति एक सुस्पष्ट विदाई, वर्तमान में एकजुटता का आग्रह औरभविष्य के लिए एक ‘विकसित भारत’ के सपने को साकार करने कासंकल्पपत्र था।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भारत कीसामूहिक मानसिकता को आकार देने वाले एक ऐतिहासिक घाव कोसंबोधित करने के लिए समर्पित किया। उन्होंने सीधे तौर पर 1835 में लार्डमैकाले द्वारा लागू की गई उस शिक्षा नीति की ओर इशारा किया, जिसकाएकमात्र उद्देश्य भारत के मूल ज्ञान-विज्ञान और शैक्षणिक परंपराओं कोव्यवस्थित रूप से हीन सिद्ध करना था। इस नीति ने केवल एकप्रशासनिक ढांचा ही नहीं, बल्कि एक ‘मानसिक गुलामी’ की नींव रखी।यह दासता शारीरिक नहीं, बल्कि बौद्धिक और सांस्कृतिक थी, जो 1947 के बाद भी दशकों तक हमारी सोच में कैद रही।
इसी गुलाम मानसिकता के कारण एक ‘विकार’ उत्पन्न हुआ—एक ऐसीमनोदशा जिसमें विदेशी उत्पाद, विचार और प्रतीक श्रेष्ठतर माने जाने लगे, जबकि स्वदेशी में एक कमी ढूंढी जाने लगी। प्रधानमंत्री ने इस बात परविशेष जोर दिया कि यहां तक कि हमारे गौरवशाली लोकतंत्र औरसंविधान को भी अक्सर पश्चिमी प्रेरणा का परिणाम बताया जाता रहा।उन्होंने इस धारणा का खंडन करते हुए तमिलनाडु में मिले प्राचीनशिलालेखों का उल्लेख किया, जो साबित करते हैं कि भारत में सहभागीशासन और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की परंपरा हजारों वर्ष पुरानी है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भारत वास्तव में ‘लोकतंत्र की जननी’ रहा है।
इस गुलाम मानसिकता को बदलने के लिए केवल शब्द ही पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि ठोस कार्यवाही की आवश्यकता होती है। पीएम मोदी ने इसकाएक शक्तिशाली उदाहरण देते हुए भारतीय नौसेना के ध्वज में किए गएपरिवर्तन का जिक्र किया। यह कदम केवल एक प्रतीकात्मक डिजाइन मेंबदलाव नहीं था; यह एक गहरी ‘मानसिकता के परिवर्तन’ का प्रतीक था।यह संदेश था कि भारत अब अपनी शक्ति, अपने इतिहास और अपनेप्रतीकों से स्वयं को परिभाषित करेगा, न कि औपनिवेशिक विरासत सेप्राप्त चिन्हों से। अयोध्या में भव्य राम मंदिर का उदय इसी मानसिक मुक्तिऔर सांस्कृतिक आत्मविश्वास के पुनरुत्थान का सबसे बड़ा प्रतीक है।
प्रधानमंत्री मोदी ने ‘विकसित भारत’ की अवधारणा को एक सशक्त औरकल्पनाशील रूपक के माध्यम से प्रस्तुत किया—एक अजेय रथ। इसरूपक के माध्यम से उन्होंने राष्ट्र निर्माण के लिए आवश्यक गुणों को स्पष्टकिया: पहिए- शौर्य और धैर्य – यानी वीरता से आगे बढ़ना, लेकिन धैर्य केसाथ चुनौतियों का सामना करना। ध्वजा- नीति और नीयत – ऐसी नीतियांजो सिद्धांतों और ईमानदार इरादों से कभी समझौता न करें। घोड़े-बल, विवेक, संयम और परोपकार – यह चौकड़ी राष्ट्र की शक्ति, बुद्धिमत्ता, अनुशासन और समाज कल्याण की भावना को दर्शाती है। लगाम- क्षमा, करुणा और संयम – जो यह सुनिश्चित करती है कि शक्ति का उपयोगनियंत्रित, मानवीय और नैतिक रहे। यह रथ एक ऐसे समाज का आदर्शचित्रण है जहां सफलता में अहंकार नहीं है और असफलता में भी दूसरों केप्रति सम्मान की भावना बनी रहती है।
प्रधानमंत्री मोदी ने श्री राम को एक सीमित धार्मिक आकृति के स्थान परएक सार्वभौमिक जीवन मूल्य और दर्शन के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंनेराम के चरित्र को एक आधुनिक संदर्भ में पिरोते हुए उनके विभिन्न गुणों कोरेखांकित किया- राम आदर्श और मर्यादा के प्रतीक हैं। राम भेद नहीं, भाव से जुड़ते हैं, जो एक समावेशी समाज का आधार है। वे धर्म, क्षमा, ज्ञान, विवेक, कोमलता और कृतज्ञता के सर्वोच्च उदाहरण हैं।राम विनम्रता में निहित महाबल और सत्य के प्रति अडिग संकल्प काप्रतिनिधित्व करते हैं। इस प्रकार, समाज को सशक्त बनाने के लिएप्रत्येक नागरिक के अंदर ‘राम’ के इन सार्वभौमिक मूल्यों—नैतिकता, न्यायऔर करुणा—की स्थापना अनिवार्य बताई गई।
प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि राष्ट्र निर्माण का यह अभियान केवलवर्तमान तक सीमित नहीं हो सकता। उन्होंने एक दूरदर्शीदृष्टिकोण अपनाने का आह्वान किया, जहां हम अगली सदियों को ध्यान मेंरखकर आज नींव रखें। 2047 तक एक विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्तकरने के लिए ‘स्वयं से पहले राष्ट्र’ के भाव को आत्मसात करना होगा। यहतभी संभव है जब देश का प्रत्येक वर्ग—महिला, दलित, पिछड़े, आदिवासी, किसान, युवा—सशक्त होकर विकास की मुख्यधारा से जुड़े।उन्होंने ‘कंधे से कंधा मिलाकर’ चलने और राष्ट्र की यात्रा में गति बढ़ाने काआह्वान किया।
प्रधानमंत्री मोदी का अयोध्या में दिया गया संबोधन केवल एक भाषणनहीं, बल्कि एक रणनीतिक घोषणा और एक सांस्कृतिक घोषणापत्र था।यह भारत को मैकाले की शिक्षा से उपजी हीन भावना और मानसिकगुलामी के चंगुल से मुक्त करने, अपनी गौरवशाली विरासत पर अटूट गर्वकरने और भगवान राम के आदर्शों से प्रेरित होकर एक शक्तिशाली, विकसित, न्यायसंगत एवं समावेशी आधुनिक ‘रामराज्य’ के निर्माण कामार्गदर्शक दस्तावेज है। यह संदेश स्पष्ट और ओजस्वी है कि भारत कीअगली यात्रा उसकी अपनी मूल्य प्रणाली, उसकी अपनी पहचान औरउसकी अपनी सामूहिक शक्ति से परिभाषित होगी। अयोध्या से उठी यहआवाज न केवल भारत के वर्तमान को, बल्कि उसके भविष्य के हजारोंवर्षों को गढ़ने का संकल्प है।



