आगरा । क्या आपने कभी आगरा की सड़कों पर गाड़ी पार्क करने की कोशिश की है और खुद को एक बदहाल व्यवस्था, भ्रष्टाचार और गुंडागर्दी के कुचक्र में फंसा पाया है? यदि हां, तो आप अकेले नहीं हैं। यह आज आगरा की पहचान बनती जा रही है—अव्यवस्थित, अराजक और आम नागरिकों की उपेक्षा करती हुई एक पार्किंग व्यवस्था।
पार्किंग का मसला: बदइंतजामी और बेलगाम वसूली का अड्डा आगरा का संजय प्लेस, जिसे कभी उत्तर भारत के प्रमुख व्यावसायिक केंद्रों में गिना जाता था, आज पार्किंग के मुद्दे को लेकर सुर्खियों में है। नगर निगम की अधिकृत पार्किंग में ठेकेदारों की मनमानी, जबरन वसूली, और कर्मचारियों की बदसलूकी ने व्यापारियों और आम जनता को उग्र कर दिया है। हाल ही में व्यापारियों ने अनिश्चितकालीन विरोध प्रदर्शन की चेतावनी दी, जिससे साफ जाहिर होता है कि जनाक्रोश गहराता जा रहा है। दस दिन हो गए, आगरा नगर निगम वैकल्पिक कार्य योजना, व्यवस्था की रूप रेखा नहीं बना पाया है।
मामला केवल संजय प्लेस तक सीमित नहीं। राजा की मंडी, एमजी रोड, बल्केश्वर, कमला नगर और हॉस्पिटल रोड जैसे प्रमुख इलाकों में भी सड़कें गाड़ियों से अटी पड़ी हैं। आगरा में अब तक करीब 21 लाख पंजीकृत वाहन हैं, जिनमें दो-तिहाई दोपहिया वाहन हैं, लेकिन पार्किंग की व्यवस्था मानो 20 साल पुरानी जनसंख्या के लिए हो। हर साल लगभग 5-7% की दर से वाहनों की संख्या में इज़ाफा हो रहा है, पर पार्किंग स्पेस उसी अनुपात में नहीं बढ़ रहा।
गाड़ियों के फुटपाथों और सड़क किनारे अवैध कब्जे से न सिर्फ ट्रैफिक की रफ्तार थमती है, बल्कि पैदल यात्रियों, साइकिल चालकों और खासकर दिव्यांग जनों को भी भारी परेशानी होती है। संजय प्लेस के दुकानदार चतुर्भुज तिवारी बताते हैं, “कई बार एम्बुलेंस फंसी रह जाती हैं, पर ठेकेदारों को कोई फर्क नहीं पड़ता।”
सेंट पीटर्स कॉलेज के टीचर डॉ. अनुभव खंडेलवाल कहते हैं, “जब एक ड्राइवर पार्किंग खोजने में 15-20 मिनट तक वाहन को घुमाता है, तो यह सिर्फ ईंधन और समय की बर्बादी नहीं, बल्कि प्रदूषण और तनाव का भी कारण बनता है।”
2024 में एक स्थानीय सर्वे के अनुसार, 60% आगरा निवासियों को औसतन 10-15 मिनट सिर्फ पार्किंग की तलाश में लगते हैं, और 35% मानते हैं कि उन्होंने कहीं जाना सिर्फ इसलिए टाल दिया क्योंकि पार्किंग का झंझट था।
अधिवक्ता राजवीर का मानना है कि “पार्किंग ठेकों पर स्थानीय राजनीतिक संरक्षण प्राप्त गुर्गों का कब्जा है, जो पार्किंग शुल्क की मनमानी वसूली करते हैं और विरोध करने पर धमकी तक दे डालते हैं।”
नगर निगम और ट्रैफिक पुलिस कभी-कभार मुहिम चलाकर मीडिया में फोटो खिंचवा लेते हैं, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकलता। अवैध पार्किंग, अतिक्रमण और वाहनों की अनियंत्रित वृद्धि ने शहर को एक असहनीय स्थिति में ला खड़ा किया है।
समाधान आसान नहीं है, लेकिन असंभव भी नहीं है। कुछ सुझाव इस प्रकार हैं:
1. शहर में मल्टी-लेवल पार्किंग का निर्माण: एमजी रोड, बल्केश्वर, और दयालबाग में मल्टी-लेवल पार्किंग बनाने की परियोजनाएं वर्षों से अटकी हुई हैं। उन्हें पुनर्जीवित करना होगा।
2. डिजिटल पार्किंग ऐप: दिल्ली और मुंबई की तर्ज पर एक स्मार्ट पार्किंग ऐप विकसित किया जाए जिससे रियल-टाइम पार्किंग डेटा मिले।
3. पार्किंग नीति में पारदर्शिता: ठेकेदारी व्यवस्था की समीक्षा हो, और आरटीआई के तहत जनता को जानकारी दी जाए कि वसूली कैसे हो रही है और पैसे कहाँ जा रहे हैं।
4. सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा: बीआरटी, ई-रिक्शा और साइकिल लेन जैसी योजनाओं को प्राथमिकता मिले ताकि निजी वाहनों पर निर्भरता कम हो।
5. लोगों को जागरूक करना: “मेरी गाड़ी, मेरी जिम्मेदारी” जैसे अभियान चलाकर नागरिकों में जिम्मेदारी का भाव जगाना होगा।
पर्यावरणविद डॉ देवाशीष भट्टाचार्य के मुताबिक, “अगर आगरा को स्मार्ट सिटी, पर्यटन नगरी और विश्व धरोहर शहर के रूप में स्थापित करना है, तो सड़कों पर गाड़ियों की बेतरतीब भीड़ को हटाना होगा।”
सोशल एक्टिविस्ट पद्मिनी अय्यर कहती हैं, “यह सिर्फ एक ट्रैफिक या पार्किंग का मसला नहीं है—यह नागरिक संस्कृति, प्रशासनिक जिम्मेदारी और शहरी नियोजन की असल परीक्षा है।”