आज ही के दिन 140 साल पहले कांग्रेस का जन्म हुआ था…

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विष्णु शर्मा

दिल्ली: दिसम्बर 28, 2025: कांग्रेस बनाने का आइडिया जिस अंग्रेज के दिमाग में आया, उसको सभी जानते हैं-ए ओ ह्यूम, एक अंग्रेजी सिविल सर्विस ऑफिसर. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि उसने 1857 की क्रांति के 215 सिपाहियों को मारा था और कइयों को फांसी पर चढ़ा दिया था. वह यूपी के इटावा का तो डीएम रहा ही था, आधुनिक भारत में पक्षियों की प्रजातियों पर सबसे बड़ा और सबसे पहला काम ह्यूम ने ही किया था. ह्यूम के पिता इंगलैंड के सांसद थे और संसद में भारत को लेकर ब्रिटिश सरकार की आलोचनाओं के लिए जाने जाते थे. लॉर्ड लिटन की जब ह्यूम ने आलोचना की, तो ह्यूम को भुगतना पड़ा और ह्यूम को सचिवालय से हटा दिया गया. अब ह्यूम ने सोचा कि अपने दूसरे शौक यानी पक्षियों की प्रजातियों की गणना को समय दिया जाए. शिमला के अपने घर में वो इसी काम में व्यस्त हो गया.

कहानी यही प्रचलित है कि अचानक जब कई मैन्युस्क्रिप्ट्स खो गईं तो ह्यूम का मन उचट गया और उसे अपने अब तक के काम को नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम, लंदन को दे दिया. अब तक ह्यूम ने इस्तीफा नहीं दिया था, वरना तीन चार साल बिना नौकरी के भारत में खर्च कैसे चलता, 1882 में ह्यूम को सेवा से मुक्त कर दिया गया. कहीं ना कहीं ह्यूम के मन में मौजूदा ब्रिटिश सरकार और उसके अधिकारियों के खिलाफ नाराजगी थी, ऐसे में ह्यूम ने अपने गुस्से को दूसरी तरफ मोड़ा. 1 मार्च 1983 को ह्यूम ने कलकत्ता यूनीवर्सिटी के छात्रों को पत्र लिखा और आव्हान किया कि भारत के लोगों का अपना कोई राष्ट्रीय संगठन होना चाहिए.

लेकिन सच्चाई एओ ह्यूम के जीवनीकार विलियम वेडरबर्न ने ह्यूम की आत्मकथा में लिखी, जो ह्यूम ने खुद उन्हें बताई थी, दिलचस्प बात है कि विलियम बेडरबर्न बाद में कांग्रेस अध्यक्ष भी बने थे. वेडरबर्न के मुताबिक ह्यूम के सूत्रों ने उन्हें अहम जानकारी दी थी, ये सूत्र थे देश भर में फैले फकीर, साधु, बैरागी जो देश भर में घूमते रहते थे, ऐसे में उन्हें देश के माहौल का पता होता था. उन्होंने बताया कि कैसे देश के आम जनमानस में 1857 से भी बड़ी क्रांति की योजना बन रही है. ह्यूम के शब्दों में, “The evidence that convinced me at the time, (about fifteen months, I think before Lord Lytton left) that we were in imminent danger of a terrible , was this. I was shown seven large volumes (corresponding to a certain mode of dividing the country, excluding Burmah, Assam, and some minor tracts) containing a vast number of entries; English abstracts or translations- longer or shorter- of vernacular report of communication of one kind or another, all arrange according to districts (not identical with ours), Sub-districts, sub-divisions, and the cities, towns and villages included in these”. ह्यूम का दावा था कि इस रिपोर्ट में 30,000 लोगों से भी अधिक से मिली सूचनाएं हैं.

ह्यूम ने आगे जो लिखा है, वो हिंदी में समझिए, उन्होंने लिखा कि, “गुप्त रूप से पुरानी तलवारें, भाले और तोड़ेदार बंदूकें एकत्र की जा रही हैं जो आवश्यकता पड़ने पर तैयार मिलेंगी. ऐसा कहा गया है कि अचानक हिंसा भड़केगी, चारों और अपराधों का बाजार गर्म हो जाएगा, अवांछित व्यक्तियों की हत्याएं होंगी, महजनों और बाजारों को दिन दहाड़े लूटा जाएगा, लोग तो इस समय अधनंगे, अधभूखे हैं हीं. ऐसी स्थिति में शुरूआती अपराध तो बड़े अपराधों के लिए संकेत मात्र होंगे. हो सकता है कि अराजकता फैल जाए और अधिकारियों व अभिजात्य वर्ग के लोगों का जीना ही दूभर हो जाए”. वो आगे लिखते हैं, “फिर इस शिक्षित समुदाय का एक छोटा सा वर्ग, जो इस समय शायद अकारण ही ब्रिटिश सरकार का विरोधी है, इस विद्रोह से जुड़ेगा, इसका नेतृत्व संभालेगा, आंदोलन में समन्वय स्थापित करेगा और राष्ट्रीय विद्रोह के रूप में उसका संचालन करेगा’.

ह्यूम को इन रिपोर्ट्स पर पूरा भरोसा था कि क्योंकि ये रिपोर्ट्स चेलों (शिष्यों) ने अपने गुरू को दी हैं, जो झूठ नहीं हो सकतीं. दरअसल अलग-अलग जगह से शिष्य अपने गुरूओं को उन क्षेत्रों की जानकारियां भेजते रहते थे, जहां का वो भ्रमण करते थे. इटावा का कलेक्टर रहते ह्यूम को संप्रेषण के इस साधन के बारे में जानकारी हुई थी, तभी वो ऐसे कई लोगों से सम्पर्क में रहता था. वेडरबर्न ने ह्यूम के हवाले से लिखा है कि, “All chelas are bound by vows and conditions, over and above those of ordinary initiates of low grade. No Chela would, I may almost say can deceive his Guru, in whom center all his hopes of advancement, no teacher will take on the chela cast off by another”. इससे साफ लगता है कि ह्यूम ने उस वक्त के सांधू, संन्यासी या बैरागियों की व्यवस्था को अच्छे से समझ लिया था.

खुद ह्यूम ने अपने जीवनीकार को बताया कि हमारे एक्शन से जो ताकतें उभर रही हैं, बढ़ रही हैं, उनको रोकने के लिए, ब्रिटिश साम्राज्य की अखंडता को बचाए-बनाए रखने के लिए सेफ्टी वॉल्व के तौर पर कांग्रेस से बेहतर कोई और उपाय था ही नहीं. ह्यूम के शब्दों में, “I have always admitted that in certain provinces and from certain points of view the movement was premature, but from the most vital point of view, the future maintenance of the integrity of the British Empire, the real question when the Congress started was, not, is it premature but us is too late- will the country now accept it?… A safety valve for the escape of great end growing forces, generated by our own action, was urgently needed, and no more efficacious safety valve than our Congress movement could possibly be devised”.

बात आगे बढ़ाने के लिए भारत में अंग्रेजी अधिकारियों को भी संतुष्ट करना जरूरी थी. लॉर्ड रिपन जाने से पहले नए वायसराय लॉर्ड डफरिन को कहकर गए थे कि भारत की वर्तमान परिस्थितियों को समझने के लिए एओ ह्यूम से मिलना बेहतर रहेगा. तब डफरिन ह्यूम से मिला. आरसी मजमूदार ने लिखा है कि पहले ह्यूम का विचार केवल सामाजिक संस्थाओं का मिलना था, लेकिन डफरिन ने कहा कि, ‘’ As the interests of the ruled that Indian politicians should meet yearly and point out to the Government in what respects the administration was defective and how it could be improved, and he added that an assembly such as he proposed should not be presided over by the Local Governor, for in, his presence the people might not like to speak out their minds”.

पूरी कहानी और भी दिलचस्प है, उसके लिए आपको ‘कांग्रेस प्रेसीडेंट्स फाइल्स’ पढ़नी पड़ेगी।

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