आज के दौर में, जब लोकतंत्र की जड़ें कमजोर हो रही हैं, राजनीतिक दल अपनी सिद्धांतों को बाजार की तरह बेचने लगे हैं। लेकिन आम आदमी पार्टी (आप) का मामला इससे भी कहीं ज्यादा शर्मनाक और पाखंडी है। एक तरफ यह पार्टी खुद को ‘आम आदमी’ का मसीहा बताती है, जो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ती है और अभिव्यक्ति की आजादी का ढिंढोरा पीटती है। दूसरी तरफ, वही पार्टी हिंसा, अपमान और दमन के प्रतीक ‘जूता फेंकने’ वालों को न सिर्फ संरक्षण देती है, बल्कि उन्हें राजनीतिक ऊंचाइयों पर बिठा भी देती है। और जब वही हिंसा किसी और पर होती है, तो सख्त कार्रवाई की मांग करती है। हाल ही में पंजाब की आप सरकार द्वारा सोशल मीडिया पर सीजेआई ‘जूता कांड’ की आलोचना करने वालों के खिलाफ गैर-जमानती धाराओं में एफआईआर दर्ज कराना इसी पाखंड की इंनाम है। यह न सिर्फ आप की दोहरी नैतिकता को उजागर करता है, बल्कि उनके लोकतंत्र को ठगने के अपराध को उजागर करता है।
जूता फेंकना लोकतंत्र का अपमान है-चाहे वह किसी पर हो । सबसे पहले, 2009 का वह कुख्यात जूता-कांड याद करें। पत्रकार जरनैल सिंह ने तत्कालीन गृह मंत्री पी. चिदंबरम पर जूता फेंका था। कारण था 1984 के सिख विरोधी दंगों में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा कांग्रेस नेताओं को क्लीन चिट देना। यह घटना अपमानजनक थी, और जरनैल सिंह को गिरफ्तार भी किया गया। लेकिन क्या हुआ आगे? चिदंबरम ने शिकायत नहीं की, लेकिन कानून ने अपना काम किया। फिर आया आप का ‘स्वागत समारोह’। 2013 में आप ने जरनैल सिंह को दिल्ली विधानसभा चुनाव में टिकट दिया, और वे राजौरी गार्डन से विधायक बने। 2014 में लोकसभा चुनाव में पश्चिम दिल्ली से उम्मीदवार बने, भले ही हार गए। 2015 में फिर विधायक बने। आप ने इस ‘जूते वाले नायक’ को न सिर्फ सम्मान दिया, बल्कि पार्टी का चेहरा बनाया। अरविंद केजरीवाल ने खुद जरनैल को ‘सिख अधिकारों का योद्धा’ कहा। लेकिन सवाल यह है: क्या जूता फेंकना लोकतांत्रिक विरोध का तरीका है? नहीं। यह हिंसा है, अपमान है। आप ने इसे पुरस्कृत करके हिंसा को वैध ठहराया। जरनैल सिंह का 2021 में निधन हो गया, लेकिन आप का यह ‘जूता-मॉडल’ आज भी जिंदा है—एक ऐसा मॉडल जो कहता है: ‘ जूता फेंककर अपमान करो, हम तुम्हें टिकट देंगे।’
अब गुजरात का मामला लें, जो आप की इस नीति का और साफ आईना है। मार्च 2017 में, गुजरात के युवा कार्यकर्ता गोपाल इटालिया ने गृह राज्यमंत्री प्रदीप सिंह जडेजा पर जूता फेंका। आरोप था गुजरात में भ्रष्टाचार का। इटालिया को तत्काल गिरफ्तार किया गया, सरकारी नौकरी से निलंबित कर दिया गया। लेकिन आप ने क्या किया? 2020 में उन्हें गुजरात इकाई का उपाध्यक्ष बनाया। 2022 में विधानसभा चुनाव लड़ा, हारा लेकिन पार्टी का चेहरा बना। फिर 2025 के विशावदार उपचुनाव में जीतकर विधायक बने। आप ने इटालिया को न सिर्फ माफ किया, बल्कि प्रमोट किया। केजरीवाल ने कहा, ‘गोपाल जैसे युवा ही बदलाव लाएंगे।’ लेकिन बदलाव का मतलब हिंसा को बढ़ावा देना? जूता फेंकना विरोध नहीं, अपराध है। भारतीय दंड संहिता की धारा 323 (चोट पहुंचाना) और 504 (अपमान) के तहत यह दंडनीय है। आप ने इसे ‘क्रांति’ का नाम देकर लोकतंत्र को चोट पहुंचाई। अगर आप भ्रष्टाचार के खिलाफ है, तो बहस करो, अदालत जाओ—जूता क्यों?
ये दो उदाहरण ही काफी हैं आप के ‘जूता-संरक्षण’ को साबित करने के लिए। पार्टी ने ऐसे लोगों को टिकट देकर संदेश दिया: ‘हिंसा करो, हम तुम्हें सत्ता का स्वाद चखाएंगे।’ लेकिन अब देखिए उल्टा खेल। अक्टूबर 2025 में सुप्रीम कोर्ट में वकील राकेश किशोर ने चीफ जस्टिस बी.आर. गवई के एक टिप्पणी को ‘सनातन धर्म का अपमान’ बताकर, जूता फेंकने की कोशिश की। । यह घटना शर्मनाक थी-न्यायपालिका पर हमला। बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने किशोर को निलंबित कर दिया, पुलिस ने पूछताछ की। लेकिन आप का रुख? केजरीवाल ने तुरंत कहा, ‘यह पूर्वनियोजित साजिश है। ऐसी कार्रवाई हो कि कोई आगे हिम्मत न करे।’ उन्होंने इसे ‘न्यायपालिका पर हमला’ और ‘दलितों को दबाने की कोशिश’ कहा। सही है, लेकिन पाखंड क्यों? जब जरनैल या गोपाल ने जूता फेंका, तो आप ने कहा ‘योद्धा’। अब सीजेआई पर जूता, तो ‘सख्त सजा’। यह दोहरा मापदंड नहीं तो क्या?
पंजाब की आप सरकार का सोशल मीडिया दमन, सबसे ताजा घाव है। अक्टूबर 2025 के ‘जूता कांड’ (संभवतः सीजेआई घटना या कोई स्थानीय घटना से जुड़ा) पर सोशल मीडिया पर आलोचना करने वाले आम लोगों के खिलाफ गैर-जमानती धाराओं (आईपीसी 153A, 505—सांप्रदायिकता भड़काना और लोक शांति भंग) में एफआईआर दर्ज। पंजाब पुलिस ने कई यूजर्स को नोटिस भेजे, फोन टैपिंग शुरू की। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा, ‘फेक न्यूज फैलाने वालों को बख्शेंगे नहीं।’ लेकिन सवाल: आलोचना फेक न्यूज कैसे? जूता फेंकना गलत है, इस पर बहस करना अभिव्यक्ति की आजादी है। संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत यह मौलिक अधिकार है। आप ने इसे कुचलकर दिखा दिया कि सत्ता मिलते ही ‘आम आदमी’ दुश्मन बन जाता है। कल को ये वही लोग ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ का रोना रोएंगे—जैसे केजरीवाल ने दिल्ली में बीजेपी के खिलाफ किया। लेकिन शर्म? बिल्कुल नहीं। पंजाब में पहले भी आप ने विपक्षी नेताओं पर ऐसे ही केस लगाए—2024 में किसान आंदोलन की आलोचना पर। यह तानाशाही नहीं तो क्या?
आप की यह राजनीति लोकतंत्र के लिए जहर है। शुरू में 2011-12 में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन से उभरी, लेकिन सत्ता की भूख ने इसे ‘जूता-व्यापारी’ बना दिया। दिल्ली में 49 दिन की सरकार, फिर पंजाब-गुजरात में विस्तार-हर जगह वादे टूटे। शिक्षा-स्वास्थ्य के नाम पर प्रचार, लेकिन जूता फेंकने वालों को टिकट? यह युवाओं को गलत संदेश देता है: हिंसा से सफलता मिलेगी। 2025 तक आप के पास 100 से ज्यादा विधायक हैं, लेकिन कितने ‘जूते’ वाले? जरनैल, गोपाल-और कितने छिपे? केजरीवाल खुद कहते हैं ‘सिस्टम चेंज’, लेकिन सिस्टम को जूते से कैसे बदलोगे? अदालतें, बहस, वोट-ये हथियार हैं। जूता नहीं।
इस पाखंड से आप को बाहर आना चाहिए। पार्टी के अंदर जो जूता फेंककर नेता बने हैं, उनको पार्टी से बाहर करो। जिन पत्रकारों ने इस मुद्दे पर चर्चा की, अपनी बात कही है। उन पर एफआईआर वापस लो, वरना देश से ‘आम आदमी – राज ‘ और ‘जूता-राज’ का फर्क मिट जाएगा। लोकतंत्र मजबूत हो, हिंसा कम हो—यह पंजाब की आप सरकार का कर्तव्य है। लेकिन लगता है, सत्ता की मस्ती में भूल गए। केजरीवालजी ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ का सम्मान करो। फर्जी मुकदमें वापस लो। वरना इतिहास तुम्हें ‘जूता-पार्टी’ ही लिखेगा।