रंगनाथ
नेहरूवादी हिन्दुस्तान में पले-बढ़े भगोड़े जाकिर नाइक जब कुछ दिन पहले जिन्नावादी पाकिस्तान पहुँचे तो उनकी कहानी में एंटी-क्लाइमेक्स आ गया। धर्मोन्मादी एमबीबीएस जाकिर नाइक 1991 से भारत में कनवर्जन की दुकान चला रहे थे। वह दूसरे धर्मों को सरेआम अपमानित करते रहे। टीवी पर मजाक बनाते रहे। धुर महिला विरोधी नजरिये का खुलेआम प्रचार करते रहे। मगर महेश भट्टों की नजर में महापुरुष बने रहे। बरखा दत्तों और दिग्विजय सिंहों के संग उनका संवाद चलता रहा। भारत का समूचा सेकुलर ईकोसिस्टम उन्हें “जस्ट अ माइनॉरिटी प्रीचर” की तरह ट्रीट करता रहा। महादेव का तिर्यक न्याय देखिए कि जाकिर नाइक भारतीय उपमहाद्वीप में वहाँ बेआबरू हुए जहाँ जिन्नावाद की सम्पूर्ण हेजेमनी है।
दुर्भाग्य ये है कि जाकिर नाइक जब पाकिस्तान में ट्रॉल हो रहे हैं, तब भी भारत के नेहरूवादी और मार्क्सवादी ईकोसिस्टम में उनपर दो कड़े बोल बोलने वाले ढूँढने पड़ रहे हैं। भारत में जो लोग जाकिर नाइक की पाकिस्तानी ट्रॉलिंग को आगे बढ़ा रहे हैं, उनमें ज्यादातर भाजपा ईकोसिस्टम का हिस्सा हैं। ध्यान रहे कि भाजपा के ईकोसिस्टम में दो तरह के लोग हैं। एक जो सीधे-सीधे आरएसएस या भाजपा की विचारधारा से प्रेरित होकर वहाँ पहुँचे हैं। दूसरे वे जो कई बिन्दुओं पर आरएसएस-बीजेपी से असहमत रहे हैं मगर कुछ बड़े मुद्दों पर उनके विचारों के लिए भारत के किसी अन्य प्रमुख वैचारिक ईकोसिस्टम में जगह नहीं बची है, जैसे आरिफ मोहम्मद खान और शहजाद पूनावाला इत्यादि।
जाकिर नाइक को लेकर चल रहे ट्रेंड पर कांग्रेस ईकोसिस्टम और कम्युनिस्ट ईकोसिस्टम लगभग चुप है। कुछ स्वतंत्र जीव ईंट-पत्थर उछाल रहे हैं मगर AISA, SFI, AISF, समाजवादी युवजन सभा, युवा राजद, तृणमूल युवा जबर चुप्पी साधे हुए हैं। इस जड़ता को तोड़ने के लिए शायद कई हरियाणा और होने की जरूरत है। इसके पहले हमने गुजरात, यूपी और एमपी में भी यही हाल देखा था। एपी में यह अभी हाल ही में घटित हुआ है। ओबीसी चिन्तक दिलीप मण्डल ने कल ही कांग्रेस को आज की मुस्लिम लीग कहा है। जाहिर है कि हिन्दू समाज अन्दर से करवट ले रहा है जिसकी अनदेखी तमाम युवराज कर रहे हैं मगर वे भूल गये हैं कि उनके पिता जी लोग यही कहकर राजपाट प्राप्त किये थे कि राजा रानी के पेट से नहीं जनता के वोट से पैदा होगा!
आने वाले समय में विद्याधर नायपाल भारत के सबसे सम्मानित और लोकप्रिय लेखकों में गिने जाएँगे क्योंकि उन्होंने हिन्दू समाज की आँत में ढाई दशक पहले ही झाँक लिया था। हिन्दी साहित्यकारों में निर्मल वर्मा ने इस सांस्कृतिक आलोड़न की आहट 1990 के दशक में पहचान ली थी मगर तब के पुरस्कार पांड़ों ने निर्मल जी को बुरी तरह ट्रॉल किया था। पुरस्कारों पांड़ों की तब भी कमी नहीं थी, अब भी नहीं है मगर महज दो दशक बाद उनकी हालत इतनी पतली हो चुकी है कि वो काँप भी रहे हैं, हाँफ भी रहे हैं।
पुरस्कार पाड़ों की पण्डिताई हिन्दू-निन्दा से चलती रही है। दुनिया की समस्त बुराइयों का दोषारोपण हिन्दुओं पर कर के वे तमाम पुरस्कार, प्रशंसा, फण्ड फेलोशिप, नौकरी, फॉरेन टूर इत्यादि प्राप्त करते रहे हैं। मगर वे आम हिन्दू को यह नहीं बता पा रहे हैं कि यहूदी, पारसी, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध, सुन्नी, शिया, बरेलवी, बहाई, और अब अहमदी भी, तब केवल भारत में सेफ क्यों रहे, जब उनके पास कोई सैन्य शक्ति नहीं थी। सैन्य शक्ति तो छोड़ दें, एक डण्डा भी उनके हाथ में नहीं था, तब से वे भारत में फल-फूल रहे हैं। अगर हिन्दू इतने ही असहिष्णु थे, तो जब इनमें से कई धार्मिक पंथों को उनके अपने देश में सुरक्षा नहीं मिली तब वे भारत में क्यों और कैसे पनपते रहे। खैर, जो हुआ सो हुआ, मगर अब तो मैं खुद कह रहा हूँ कि हिन्दू समाज में आमूलचूल आन्तरिक परिवर्तन आ रहा है।
करीब 36 प्रतिशत हिन्दू समाज आज हरियाणा मोड में जा चुका है। निर्णायक मौकों पर वह अभूतपूर्व एकता का प्रदर्शन करने लगा है। नेहरू जी ने नौ प्रतिशत वोटों के लिए देश को जिस राह पर डाला उस राह पर राहुल जी को आज करीब 16 प्रतिशत वोट मिलने की गारंटी मिली हुई है मगर वह और उनके थिंक-टैंक यह नहीं देख पा रहे हैं कि उनके 16 प्रतिशत सॉलिड वोटबैंक के बरक्स दूसरी तरफ 36 प्रतिशत मतदाता सीमेंटेड हो चुके हैं। 36 में तर्क-वितर्क हो तो 26 प्रतिशत ही मान लें मगर चुनाव दर चुनाव यह साबित हो रहा है कि एक बड़ी आबादी निर्णायक मौकों पर एकजुट होना सीख चुकी है। यह आबादी कैसे तैयार हुई है इसपर पूरा ग्नन्थ लिखा जा सकता है, मगर इसके एक अध्याय की चर्चा भर करूँगा। इस अध्याय का नाम है, जाकिर नाइक। याद रखें यहाँ जाकिर नाइक एक प्रतीक मात्र हैं।
जाकिर नाइक खबर में आये तो मुझे वह जमाना याद आ गया जब वह भारत में एक वर्ग के लाडले हुआ करते थे। एक वर्ग के बूढ़े-बच्चे-नौजवान उसमें नया तारणहार देख रहे थे। हम जैसे नौजवान उसी जमाने में वामपंथी नजरिया लिए जामिया मिल्लिया इस्लामिया पहुँचे थे। जाकिर नाइक का नाम मैंने पहली बार किसी मुस्लिम से नहीं बल्कि एक सीधे-सरल हिन्दू के मुँह से सुना था जिसने जामिया से बीए किया हुआ था।
एक दिन एक दुबला-पतला चॉकलेटी लड़का मुझसे बोला कि रंगनाथ भाई आपसे कुछ बात करनी है। उससे हालचाल भर पहचान थी तो मैं चौंका मगर सौजन्यतावश कहा, हाँ बोलो। उसने कहाँ कहीं एकांत में चलिए, मैं और चौंका। उसने 8-10 मिनट लगा दिया एकांत खोजने में। एकांत खोजने के बाद उसने मुझसे पूछा कि आप जाकिर नाइक को जानते हैं! मैंने कहा, नहीं! उसने कहा, रंगनाथ भाई उसे सुनिए और उसका कुछ करिए! उसने बताया कि उसके क्लास के लड़कों ने जाकिर द्वारा सीखे पैंतरों से उसका जीना मुहाल कर दिया है! मैं दंग रह गया! उसके बाद मैंने जाकिर नाइक के कुछ मूर्खतापूर्ण प्रदर्शन देखे। पॉवर मेमोरी ट्रिक बेचने वालों की तरह वह पेज नम्बर वर्स नम्बर इत्यादि उछालकर दूसरे धर्मों को अपमानित करते थे। खैर, उसके बाद इस तरह के इतने किस्से हुए कि मौका मिला तो उनपर केन्द्रित एक किताब जरूर लिखूँगा।
मुझे नहीं पता कि धर्मोन्मादी जाकिर नाइक ने कितने लोगों को कनवर्ट कराया है, या इसरार अहमद ने कितने मुसलमानों का दीन पक्का कराया है, मगर मुझे यकीन है कि उससे कई गुना ज्यादा लोगों को हिन्दुस्तान में हिन्दू बनाने का श्रेय जाकिर नाइक और इसरार अहमद जैसों को है। हिन्दू मान्यता है कि हर चीज की एक अति होती है और अति किसी चीज की अच्छी नहीं होती है। कई जाहिलों को लगता है कि चुनाव में 25-50 सीट ऊपर नीचे होने से धरती-आसमान का चरित्र बदल जाता है! ऐसा कतई नहीं है। जाकिर नाइक द्वारा तैयार किये गये नये हिन्दू ही उन्हें सोशलमीडिया पर ज्यादा ट्रॉल कर रहे हैं। जाकिर नाइक के टारगेट मूलतः इंग्लिश मीडियम टाइप आम मुसलमान थे। मगर वह नहीं समझ सके कि उनकी क्रिया की प्रतिक्रिया में इंग्लिश मीडियम टाइप हिन्दू भी तैयार हो रहे हैं।
मैं अपने पिछले 19 सालों के अनुभव को देखूँ तो देश के हर दफ्तर, हर मोहल्ले, हर मण्डली में छोटे-बड़े जाकिर नाइकों की पौध लहलहा रही है जो नाजुक मनःस्थिति से गुजर रहे लोगों (इंग्लिश में वल्नरेबल कहे जाने वाले लोग) को ब्रेनवाश करके इस्लाम की राह पर लाने में लगी रहती है मगर ये लोग नहीं देख पाते कि इनकी हरकतों की वजह से जो लोग मानसिक रूप से स्वस्थ एवं मेधावी हैं, वे इनके काउंटर में दूसरी तरफ इकट्ठे होते जा रहे हैं। वैचारिक और भावनात्मक कमजोरियों को दोहन करने की यह रणनीति अब बराबर का जवाब पाने की तरफ बढ़ रही है।
नेहरूवाद और मार्क्सवाद ने जिस इंग्लिश मीडियम हिन्दू की आस्था को प्राइवेटाइज या न्यूट्रलाइज किया था, उसे पब्लिसाइज या रिवाइव करने का काम अकेले भाजपा या आरएसएस ने नहीं किया है। आस्थाविहीन या आस्थाभीरू हिन्दुओं की घर वापसी में जाकिर नाइक और इसरार अहमद जैसों और उनके बोनसाइयों का बड़ा योगदान है। मेरे ख्याल से भारत में मौजूद जाकिर नाइकों को आज भी इस घर वापसी का असल स्केल नहीं दिख रहा है। जिस दिन दिखेगा, उस दिन कहीं ये नाइक खुद घर वापसी न करने लगें!
कुछ लोगों को यह उलटबांसी अपाच्य लगेगी इसलिए एक दूसरा उदाहरण भी देता हूँ। नेहरूवाद और मार्क्सवाद ने भारत में अनगिनत फिलिस्तानी पैदा किये जो भारत में पैदा हुए और यहीं पले-बढ़े, यहीं रहते-खाते-पीते-गाते-बजाते हैं। फिलिस्तीन के प्रति सहानुभूति लिये हुए जब मैं पहली बार जेएनयू पहुँचा तो इस बात पर दंग रह गया कि फिलिस्तीन जेएनयू छात्र संघ चुनाव के लिए बहुत बड़ा मुद्दा है! मेरे लिए फिलिस्तीन मुद्दा तो था मगर वह मुझे जेएनयू के कॉमरेडों जितना बड़ा नहीं दिखता था! हिन्दुओं के फिलिस्तीनी करण का ये हाल है कि बड़े से बड़ा पापी अकवि फिलिस्तीन पर कवितनुमा कुछ लिखकर हिन्दी साहित्य समाज में कवि का दर्जा प्राप्त कर सकता है। उस तोते को लगता है कि वह बहुत बड़ा मानवतावादी और अन्तरराष्ट्रीय विचारक हो गया है, मगर वह दरअसल एक तोता है, जो वही पढ़ रहा है जो उसके मालिक द्वारा सेट की गयी डिफाल्ट सेटिंग है।
भारतीय कम्युनिस्टों के फिलिस्तीनी ऑब्सेशन की आलोचना करने वालों को ‘संघी’ कहा गया। मगर आज ये हाल है कि भारत में यदि 16 प्रतिशत भारतीय फिलिस्तीन समर्थक हैं तो 36 प्रतिशत भारतीय यहूदी समर्थक हो चुके हैं!
इस पोस्ट को पढ़कर भी कई तोते अपने दिमाग के मालिकों का रटाया पाठ कमेंट बॉक्स में पढ़ेंगे मगर वो याद रखें कि मैंने जाकिर नाइक से जुड़े अनुभवों वाली मूल लम्बी पोस्ट अभी ड्राफ्ट में अधूरी रखी है। सारा आँसू आज न बहा दें, आगे भी छाती कूट-कूट कर रोने के मौके मिलेंगे। अभी आप उसपर गौर करें जो मैंने ऊपर कहा है। मैं नहीं चाहता कि हिन्दू यहूदियों की आबादी 36 से बढ़कर 56 प्रतिशत तक पहुँच जाए। तब आपके सारे 56 इंच वाले जोक हवा हो जाएँगे। समय रहते, जाग जाएँ ताकि भारत देश में सही मायनों में सेकुलर-इज्म को बचाये रखा जा सके। मुजफ्फर रिजमी का प्रसिद्ध शेर है,
यह जब्र भी देखा है तारीख की नजरों ने। लम्हों ने खता की थी सदियों ने सजा पायी।।
जाकिर नाइक, इसरार अहमद और उनके बोनसाइयों जैसे अनगिनत लम्हों की सजा कितनी सदियों को मिलेगी, यह केवल वक्त जानता है।
(ऊपर तस्वीर में पूर्व अभिनेत्री जायरा वसीम हैं। मेरी राय में मुम्बई से कश्मीर के बीच मौजूद अनगिनत बोनसाई नाइकों के असर में ही उन्होंने अभिनय छोड़ा है। पैसिव फीडिंग और एक्टिव ग्रूमिंग के कई सत्रों से गुजरने के बाद ही व्यक्ति इतने रेडिकल फैसले लेता है।)