आत्मनिर्भर राष्ट्र के लिए आत्मनिर्भर छात्र आवश्यक – दत्तात्रेय होसबाले

a9201a0021a68325a1f48267111c1cdc_1730998493_H@@IGHT_0_W@@IDTH_600.jpg

प्रयाग। मनुष्यता को प्राचीन भारत की देन अद्भुत है, सभी क्षेत्रों में भारत के योगदान को कभी नकारा नहीं जा सकता। भारत के इस अद्भुत ज्ञान का परिचय आज की युवा पीढ़ी से कराना बहुत आवश्यक है। यह कहना है इसरो के अध्यक्ष वी नारायण का। श्री नारायण ने ज्ञान महाकुंभ 2018 के समापन अवसर पर कहा कि हमारे पास अनेक साक्ष्य हैं कि भारत में अनेक देशों के छात्र शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते थे। हमारे यहाँ के आयुर्वेद ने सभी सीमाओं को पार कर वैश्विक मान्यता प्राप्त की थी। श्री नारायण ने कहा कि अंग्रेजों के आने के बाद भारत में शिक्षा का स्तर बढ़ा, इस कथन को मैं सिरे से नकारता हूँ। उनका कहना था कि भारतीय ज्ञान और संस्कृति उत्कृष्ट थी और इसे आक्रांताओं ने आहत किया। लेकिन आज हम सभी का कर्तव्य बनता है कि देश के प्राचीन ज्ञान और संस्कृति के आधार पर इसे विकसित राष्ट्र बनाएँ। भारत आज सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ रहा है।

ज्ञान महाकुंभ के समापन सत्र के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह माननीय दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि भारत में समस्याओं की कमी नहीं है, लेकिन समस्याओं की ही चर्चा करते रहे तो देश आगे बढ़ ही नहीं सकता। यही कारण है कि शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने अपना जो ध्येय वाक्य रखा है, उसमें प्रमुख है कि समस्या नहीं समाधान की चर्चा करें। श्री होसबाले ने कहा कि देश के शिक्षा क्षेत्र में ऐसा बदलाव चाहिए, जिससे भारत में भविष्य निर्माता, विद्यार्थियों में ज्ञान और जीवन मूल्य को स्थापित कर सके। श्री होसबाले के अनुसार, भारतीय दृष्टि से क्या होना चाहिए, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने इसकी न तो केवल सरकार से अपेक्षा रखी, बल्कि ऐसी मांग ही नहीं की। बल्कि न्यास ने समाज में प्रबोधन का कार्य भी किया है। श्री होसबाले ने कहा कि न्यास द्वारा भारत के शिक्षाविदों, चिंतकों, विद्वत्-जनों को एक मंच पर लाकर इस विषय के समाधान को लेकर समय-समय पर मंथन किया है। इसके साथ ही न्यास ने शिक्षण संस्था संचालित करने वालों को भी आवश्यक परिवर्तन की भूमिका से परिचित कराया और इस दृष्टि से शैक्षिक संस्थान चलाने के लिए प्रेरित किया। श्री होसबाले ने आगे कहा कि भारतीय मूल्यों के लिहाज से संस्कार देने वाली शिक्षा के साथ ही चरित्र निर्माण को लेकर भी न्यास ने कार्यक्रम चलाए। इसके साथ ही पर्यावरण, भारतीय भाषा जैसे अनेक आयामों पर कार्यक्रम करते हुए और आवश्यकता पड़ने पर न्यायालयों में संघर्ष के साथ ही आवश्यक होने पर शासन के सामने विचार रखते हुए न्यास ने ना केवल योग्य वातावरण बनाने का प्रयत्न किया है, बल्कि विद्यार्थियों, शिक्षकों, अभिभावकों, संचालकों, शिक्षाविदों के लिए शैक्षिक परिवर्तन के राष्ट्रव्यापी आंदोलन में उनकी सहभागिता और भूमिका को लेकर जागृति लाने का भी प्रशंसनीय कार्य किया है।

ज्ञातव्य है कि ‘न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते’ अर्थात् दुनिया में ज्ञान के समान पवित्र और कुछ नहीं है। श्रीमद्भगवद् गीता की इस पंक्ति की सार्थकता को व्यापक रूप देने को लेकर प्रयागराज में ‘शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास’ ने ज्ञान महाकुंभ – 2081 का आयोजन किया, जो 10 जनवरी से शुरू होकर 10 फरवरी तक चला। जिसका उद्घाटन उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री श्री केशव प्रसाद मौर्य ने किया।

इस ज्ञान महाकुंभ में 01 फरवरी 2025 को भारत को इंडिया कहे जाने की सार्थकता को लेकर मंथन हुआ। इस विशिष्ट कार्यक्रम के संयोजक डॉ. मोतीलाल गुप्ता ने कहा कि ‘इंडिया’ शब्द सिर्फ़ नाम तक सीमित है, जबकि ‘भारत’ हमारे लिए भावना है, हमारे पूर्वजों की विरासत है। यह मात्र एक भू-भाग नहीं, बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांड को प्रतिबिंबित करता है। इस आयोजन में श्री एम. गुरु जी ने कहा कि “ये भारत है, हम भारतीय हैं और हम भारत की ही चिंता करते हैं, ‘इंडिया’ शब्द से हमारा कोई संबंध नहीं, हम भारत के जन कभी भी इसे मान्यता नहीं दे सकते।”

ज्ञान महाकुंभ में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास और पर्यावरण संरक्षण गतिविधि के संयुक्त तत्वावधान में हरित महाकुंभ-2081 का 5 और 6 फरवरी को आयोजन किया गया। इसमें न्यास के राष्ट्रीय सचिव डॉ. अतुल कोठारी ने हरित महाकुंभ की संकल्पना साझा की। डॉ कोठारी ने कहा, “पर्यावरण की इस हालत के लिए सिर्फ़ हम ज़िम्मेदार हैं और इसके दुष्परिणाम से हमें और कोई नहीं बल्कि स्वयं हम ही बचा सकते हैं।” इस आयोजन में मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय तकनीकी संस्थान के निदेशक प्रो. आर एस वर्मा ने उपस्थित प्रतिभागियों को पर्यावरण के प्रति सजग करते हुए कहा कि सस्टेनेबल डेवलपमेंट से ही हम डेवलपमेंट रिटेन कर सकते हैं। प्रो. वर्मा ने प्लास्टिक के प्रयोग के दुष्परिणामों से आगाह करते हुए उसके न्यूनतम इस्तेमाल पर बल‌ दिया। इस दौरान गोपाल आर्य ने पर्यावरण को मातृभाषा हिंदी की समृद्धि से जोड़ते हुए कहा कि हरित से हरि को पाया जा सकता है, और ‘ग्रीन’ अंग्रेज़ी शब्द ‘ग्रीड’ का पर्याय-सा लगता है।

ज्ञान महाकुंभ में ‘भारतीय शिक्षा : राष्ट्रीय संकल्पना’ पर केंद्रित तीन दिवसीय आयोजन भी हुआ। इसके उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव डॉ. अतुल कोठारी ने ज्ञान महाकुंभ की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि, इस अलौकिक महाकुंभ में ज्ञान महाकुंभ का आयोजन अपने आप में ही अद्भुत संयोग है। इस कार्यक्रम से पूरे देश की शिक्षा व्यवस्था को एक नई ऊर्जा और भारतीय ज्ञान परंपरा से युक्त दिशा मिलेगी। इस सत्र के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह डॉ कृष्ण गोपाल ने कहा कि हमारी ज्ञान परंपरा में एकांगी शिक्षा नहीं दी जाती थी, परंतु आज संपूर्ण विश्व एकांगी शिक्षा व्यवस्था से ग्रसित है। हमें समाज में एक बार फिर भारतीय ज्ञान परंपरा की चेतना का जागरण करना होगा। इस आयोजन में उपस्थित विशिष्ट अतिथि यूजीसी के पूर्व अध्यक्ष प्रो. डी. पी. सिंह ने शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास की सराहना करते हुए कहा कि अध्यात्म विद्या सभी विद्याओं में सर्वश्रेष्ठ है। भारतीय ज्ञान परंपरा आध्यात्म और शिक्षा का अद्भुत मिश्रण कर रही है और हमें इस परंपरा को एक बार फिर बल देना होगा।

तीन दिवसीय इस आयोजन में उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, विश्व जागृति फाउंडेशन के वागीश स्वरूप, विनय सहस्रबुद्धे, साध्वी ऋतंभरा, राष्ट्रीय सेविका समिति की सीता अक्का, एनआईटी प्रयागराज के निदेशक प्रो आर.एस. शर्मा, मध्यप्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग के आयुक्त मनोज श्रीवास्तव, राजस्थान उच्च शिक्षा विभाग के आयुक्त ओमप्रकाश बैरवा, हरियाणा उच्च शिक्षा आयोग के अध्यक्ष प्रो कैलाश शर्मा, इंदौर के महापौर पुष्यमित्र भार्गव, नीति आयोग के शिक्षा निदेशक डॉ शेषांक शाह, पद्मश्री आनंद कुमार की उपस्थिति विशेष रही।

तीन दिन चले इस राष्ट्रीय कार्यक्रम में निजी शैक्षिक संस्थाओं की शिक्षा में भूमिका, शासन-प्रशासन की शिक्षा में भूमिका, विकसित भारत और भारतीय भाषाएं जैसे विषयों पर विचार-विमर्श हुआ। इस कार्यक्रम में पूर्व से लेकर पश्चिम और उत्तर से लेकर दक्षिण तक के सभी प्रांतों के शिक्षा क्षेत्र से जुड़े दस हजार से अधिक विद्यार्थी, शिक्षाविद, आचार्य आदि ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। जिसमें 100 से अधिक केंद्रीय और राजकीय विश्वविद्यालयों और संस्थानों के कुलपति, निदेशक, अध्यक्ष शामिल रहे। देश के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों के विद्यार्थियों ने सोशल इंटर्नशिप के माध्यम से इस ज्ञान महाकुंभ में अपनी सेवाएँ दी तथा विद्यार्थियों हेतु विभिन्न कक्षाओं जैसे वैदिक गणित, दैनिक योग अभ्यास व संस्कृत कार्यशाला आदि का आयोजन भी हुआ।

Share this post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

scroll to top