राधिके विद्रोह कर दो, पत्रकार अभिषेक उपाध्याय रचित कविता संग्रह महीनों पहले खरीद लाया था। एक पत्रकार द्वारा लिखी इस कविता संग्रह से वह कनेक्ट बन नहीं पाया। संग्रह में लिखी कविताएं तुकबंदी सी लगती है। अच्छा हुआ कि उस किताब पर हो रही चर्चा में आज शामिल होने के लिए त्रिवेणी कला संगम, मंडी हाउस चला गया। एक आदमी में होते हैं, दस बीस आदमी। जब कवि के संबंध में मंच से दोस्तों ने बताना शुरू किया, फिर लगा कि कितना कम जानता था।
आज का कार्यक्रम पुस्तक चर्चा और लोकार्पण का था लेकिन वहां एक पारिवारिक उत्सव जैसा महसूस हुआ। बहुत कम आयोजनों में ऐसा अपनापन महसूस होता है।
कवि के संबंध में मंच पर उपस्थित आधा दर्जन से अधिक लोगों ने अलग अलग बातें की लेकिन एक बात सभी की बातों में कॉमन थी। वह बात थी, कवि के ‘अच्छे इंसान’ होने की।
अब किताब एक बार फिर पढ़ने के लिए निकाल ली है। नए सिरे से फिर सारी कविताएं पढ़ी जाएगी। इस बात के आज कई गारंटर मिल गए, जिन्होंने पूरी जिम्मेवारी से कहा है कि कवि ने सिर्फ कविताएं लिखी नहीं हैं। उसे जिया भी है।