आदित्य ओम: सिनेमा के जरिए समाज को आईना दिखाने वाला सितारा

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अनिल पांडेय

यदि कोई सफल अभिनेता, निर्देशक, पटकथा लेखक और गीतकार साधारण वेश में ट्रेन में सफर करता, टैक्सी में जाता या सड़कों पर आम लोगों के बीच घूमता दिखे, तो शायद ही कोई यकीन करे कि यह कोई साधारण इंसान नहीं, बल्कि एक असाधारण व्यक्तित्व है। आदित्य ओम ऐसी ही एक शख्सियत हैं, जिन्होंने दक्षिण भारतीय सिनेमा, खासकर तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री में अपनी प्रतिभा और प्रयोगधर्मिता से एक खास मुकाम हासिल किया है। 40 से अधिक फिल्मों में मुख्य भूमिका निभाने वाले आदित्य की कई फिल्में सुपरहिट रही हैं। नेटफ्लिक्स और अमेज़न प्राइम पर उनकी दर्जनों फिल्में और वेब सीरीज उपलब्ध हैं, और उन्होंने ‘बिग बॉस तेलुगु’ में भी अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराई है। लेकिन उनकी खासियत केवल सिनेमा तक सीमित नहीं है; वह एक समाजसेवी, विचारक और सच्चे अर्थों में जनसरोकारों से जुड़े इंसान हैं।

कई साल पहले की बात है, जब आदित्य ओम प्राथमिक शिक्षा के मुद्दे पर दिल्ली के जंतर-मंतर पर अनशन कर रहे थे। एक मित्र के कहने पर मैं उनसे मिलने गया। लंबी बातचीत के दौरान मुझे अंदाज़ा नहीं था कि सामने वाला शख्स कोई साधारण व्यक्ति नहीं, बल्कि तेलुगु सिनेमा का एक सशक्त हस्ताक्षर है। घर लौटकर जब मैंने गूगल पर उनके बारे में पढ़ा, तब जाकर उनकी असल पहचान का पता चला। यह मुलाकात मेरे लिए एक प्रेरणा थी। आदित्य ओम उन गिने-चुने लोगों में से हैं, जो सफलता के शिखर पर पहुंचकर भी जमीन से जुड़े रहते हैं।

आदित्य की फिल्में केवल मनोरंजन का साधन नहीं हैं; वे समाज के संवेदनशील मुद्दों को बेबाकी से उजागर करती हैं। उनकी फिल्मों का झुकाव हमेशा न्याय और समानता की ओर रहा है। वह ‘पॉलिटिकल करेक्टनेस’ के जाल में फंसने के बजाय समाज की असलियत को सामने लाने में विश्वास रखते हैं। उनकी नई फिल्म #संततुकाराम, जो 18 जुलाई 2025 को हिंदी में रिलीज हो रही है, उनके सिनेमाई सफर का एक और महत्वपूर्ण पड़ाव है। यह 17वीं सदी के मराठी संत तुकाराम पर बनी पहली हिंदी बायोपिक है। फिल्म समीक्षकों ने इसकी खूब प्रशंसा की है, हालांकि कुछ लोग केवल इसलिए इसका विरोध कर रहे हैं क्योंकि यह मराठी के बजाय हिंदी में बनी है। लेकिन आदित्य ओम हमेशा से रूढ़ियों को तोड़ने वाले रहे हैं। इस फिल्म में प्रोड्यूसर चेन्नई से, लीड एक्टर महाराष्ट्र से और निर्देशक आदित्य ओम खुद तेलुगु सिनेमा से हैं। यह सांस्कृतिक संगम उनकी प्रयोगधर्मिता का प्रतीक है।

संत तुकाराम धर्म, संस्कृति और आस्था को एक नए नजरिए से प्रस्तुत करती है। फिल्म का संगीत अभंग परंपरा से प्रेरित है, जो शास्त्रीय और लोक संगीत का अनूठा मिश्रण है। खास बात यह है कि इसके गीत भी आदित्य ने खुद लिखे हैं। यह फिल्म हमें भक्तिकाल के उस दौर में ले जाती है, जब संत तुकाराम ने दलितों और निम्नवर्गीय समुदायों को यह समझाया कि वे भी ईश्वर के उतने ही प्रिय हैं, जितना कोई और। यह फिल्म न केवल तुकाराम के जीवन को दर्शाती है, बल्कि उनके द्वारा दलितों और वंचितों के लिए खोले गए आत्मसम्मान और भक्ति के मार्ग को भी रेखांकित करती है। इसका संगीत दर्शकों को आध्यात्मिक रंग में सराबोर कर भक्तिभाव से भर देता है। यह फिल्म 18 जुलाई से पीवीआर सिनेमाघरों में देखी जा सकती है।

आदित्य ओम की फिल्में हमेशा से सामाजिक सरोकारों से जुड़ी रही हैं। उनकी फिल्म मास्साहब में प्राथमिक शिक्षा के महत्व को प्रभावशाली तरीके से दर्शाया गया है। इस फिल्म ने उन्हें एक सशक्त निर्देशक के रूप में स्थापित किया और इसे कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले। इसी तरह शूद्र और बंदूक जैसी फिल्में उनकी बहुआयामी प्रतिभा का सबूत हैं। मैला में उन्होंने बुंदेलखंड में मैला ढोने की कुप्रथा को उजागर किया, जो समाज के उस अंधेरे पहलू को सामने लाती है, जिसे अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। दहनम एक ब्राह्मण पुजारी और डोम के बीच के संघर्ष को दर्शाती है, जो अंत में सामाजिक सौहार्द की ओर बढ़ता है। इस फिल्म में आदित्य ने पुजारी की यादगार भूमिका निभाई, जहां वह मंदिर की गद्दी एक डोम के पुत्र को सौंपते हैं। बंदी में उन्होंने एक हरे-भरे जंगल को कॉर्पोरेट के कब्जे से बचाने की जनजातियों की मार्मिक कहानी को बखूबी पेश किया।

आदित्य ओम का योगदान केवल सिनेमा तक सीमित नहीं है। उन्होंने तेलंगाना के कई गांवों को गोद लेकर उनकी तस्वीर बदली है। शिक्षा, वृक्षारोपण, डिजिटल जागरूकता और कोविड काल में लोगों की मदद जैसे कार्य उनके सामाजिक जुड़ाव को दर्शाते हैं। वह उन मुद्दों को अपनी फिल्मों में उठाते हैं, जिन्हें लोग घाटे का सौदा मानकर छोड़ देते हैं। संत तुकाराम भी ऐसा ही एक प्रयास है, जो हिंदी दर्शकों के लिए मराठी संत की कहानी को एक नए दृष्टिकोण से प्रस्तुत करता है।

आदित्य ओम का व्यक्तित्व और उनका सिनेमा दोनों ही प्रेरणादायक हैं। वह न केवल एक अभिनेता, निर्देशक, लेखक और गीतकार हैं, बल्कि एक समाजसेवी भी हैं, जो अपने काम से समाज में बदलाव लाने की कोशिश करते हैं। उनकी फिल्में हमें सोचने पर मजबूर करती हैं, सवाल उठाती हैं और एक बेहतर समाज की कल्पना को साकार करने की दिशा में प्रेरित करती हैं। संत तुकाराम देखना न केवल एक सिनेमाई अनुभव होगा, बल्कि यह हमें उस दौर में ले जाएगा, जब भक्ति और समानता के विचारों ने समाज को एक नई दिशा दी। आदित्य ओम जैसे सितारे सही मायनों में समाज के लिए एक प्रेरणा हैं, जो सिनेमा के जरिए न केवल मनोरंजन करते हैं, बल्कि समाज को एक नया नजरिया भी देते हैं।

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