सवाल ये है कि अजीत जी, आप तेजस्वी के लिए सूत्र हैं या मूत्र? तेजस्वी ने तो साफ नहीं किया, लेकिन बिहार की जनता को चेतावनी दे दी कि ऐसे ‘मूत्रों’ से सावधान रहें। अब ये मूत्र है क्या बला? और अजीत जी इसमें कहां फिट बैठते हैं?
अजीत अंजुम, पत्रकारिता के वो ‘शहंशाह’ जिनके यूट्यूब चैनल पर बिहार से लेकर बेरूत तक की खबरें तैरती हैं, इन दिनों तेजस्वी उन्हें लेकर चिंतित हैं। अजीत पर बेगुसराय में एक अल्पसंख्यक मोहम्मद अंसारूलहक ने एफआईआर किया है। कांग्रेस भी इस बात पर चिंतित है कि अजीत को कुछ ना हो जाए। जबकि अजीत अंजुम भूमिहार है। एक भूमिहार को कांग्रेस और राजद सपोर्ट कर रही है, ऐसी स्थिति में जब एफआईआर करने वाला एक अल्पसंख्यक हैं। चुनावी साल में एक ‘वफादार सूत्र’ के लिए राजद और कांग्रेस कितना बड़ा खतरा मोल ले रही हैं। इससे स्पष्ट होता है कि पार्टी के ‘सूत्र’ भर नहीं हैं। तेजस्वी के लिए वे उससे आगे हैं।
तेजस्वी की नजर में क्या अजीत जी वो ‘सूत्र’ हैं, जो सियासी गलियारों से खबरें लाते हैं, या फिर वो ‘मूत्र’, जो उनकी छवि को धोने, पोछने और चमकाने की कोशिश में बिहार आए हैं। बेचारे अजीत जी! एक तरफ पत्रकारिता की मर्यादा, दूसरी तरफ तेजस्वी का तंज। अब वो बेचैनी जाहिर करें तो करें कैसे?
बिहार में एफआईआर की खबरें हों या कांग्रेस-राजद की सियासी हलचल, अजीत जी की ‘सूत्र-शक्ति’ हर जगह चर्चा में है। मगर तेजस्वी को लगता है कि ये सूत्र नहीं, कुछ और ही है। सोशल मीडिया पर कांग्रेस आईटी सेल और उससे जुड़े पत्रकारों की बेचैनी देखिए। लगता है जैसे कोई बड़ा राज खुलने वाला हो। अजीत जी, आप तो बिहार की जनता को सच दिखाने की बात करते हैं, लेकिन तेजस्वी कहते हैं, ”सावधान! ये मूत्र है!”
अब जनता कन्फ्यूज है कि वो आपकी खबरों को सूंघे या संभाले। बिहार की सियासत में ये नया ‘मूत्र-युद्ध’ छिड़ गया है, और अजीत जी, आप इसके बीचों-बीच खड़े हैं। तो अजीत जी, अब समय है साफ करने का—आप सूत्र हैं या मूत्र? अगर सूत्र, तो बिहार की जनता को सच दिखाइए। और अगर मूत्र, तो तेजस्वी की सलाह मानिए, थोड़ा सावधान रहिए! बिहार की हवा में ये गंध अब ज्यादा देर नहीं टिकेगी।