अजीत सरकार हत्याकांड और पप्पू यादव: एक विवादास्पद मामले

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पूर्णिया  (बिहार) : अजीत सरकार हत्याकांड बिहार की सियासत और अपराध के इतिहास में एक चर्चित और विवादास्पद प्रकरण है। यह घटना 14 जून, 1998को पूर्णिया में हुई, जब मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई-एम) के नेता और विधायक अजीत सरकार की दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस हत्याकांड में तत्कालीन सांसद और बिहार के प्रभावशाली नेता राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव को मुख्य आरोपी बनाया गया। इस मामले ने न केवल बिहार की राजनीति को हिलाकर रख दिया, बल्कि अपराध और सत्ता के गठजोड़ पर भी गंभीर सवाल खड़े किए।

 

हत्याकांड का विवरण

14 जून, 1998 को पूर्णिया के सुभाष नगर में अजीत सरकार एक जनसभा को संबोधित करने जा रहे थे। दोपहर करीब 1:30 बजे, जब वह अपनी जीप में सवार थे, तभी बाइक सवार हमलावरों ने उन पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं। प्रत्यक्षदर्शियों और पुलिस रिपोर्ट्स के अनुसार, इस हमले में एके-47 और अन्य स्वचालित हथियारों से 100 से अधिक गोलियां चलाई गईं। अजीत सरकार के शरीर पर 17 गोलियां लगीं, और उनकी मौके पर ही मौत हो गई। इस हमले में उनके ड्राइवर और एक अन्य व्यक्ति भी घायल हुए। इस घटना ने पूर्णिया में सनसनी फैला दी और पूरे बिहार में आक्रोश की लहर दौड़ गई।

पप्पू यादव पर आरोप

पप्पू यादव, जो उस समय पूर्णिया से सांसद थे और क्षेत्र में अपनी दबंग छवि के लिए जाने जाते थे, पर इस हत्याकांड का मुख्य आरोपी होने का आरोप लगा। अभियोजन पक्ष का दावा था कि अजीत सरकार और पप्पू यादव के बीच राजनीतिक और व्यक्तिगत रंजिश थी। अजीत सरकार, जो सीपीआई-एम के प्रभावशाली नेता थे, पूर्णिया में उनकी बढ़ती लोकप्रियता और पप्पू यादव के प्रभाव क्षेत्र में टकराव को इस हत्या का कारण बताया गया। पुलिस ने दावा किया कि पप्पू यादव ने इस हत्या की साजिश रची और अपने गुर्गों के जरिए इसे अंजाम दिलवाया।

कानूनी प्रक्रिया और सजा

पप्पू यादव को 1998 में गिरफ्तार किया गया। इस मामले में लंबी कानूनी लड़ाई चली। 2008 में पूर्णिया की निचली अदालत ने पप्पू यादव को हत्या का दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई। अदालत ने सबूतों के आधार पर माना कि पप्पू यादव ने इस हत्या की साजिश रची थी। हालांकि, इस फैसले के खिलाफ पप्पू यादव ने पटना हाई कोर्ट में अपील दायर की। हाई कोर्ट ने 2013 में सबूतों की कमी और गवाहों के बयानों में विरोधाभास का हवाला देते हुए उन्हें बरी कर दिया। इस फैसले ने एक बार फिर इस मामले को सुर्खियों में ला दिया।

सबूतों की कमी और विवाद

हाई कोर्ट के फैसले में कहा गया कि अभियोजन पक्ष पप्पू यादव के खिलाफ ठोस सबूत पेश करने में नाकाम रहा। कई गवाह या तो अपने बयानों से पलट गए या उनके बयानों में विश्वसनीयता की कमी पाई गई। इसके अलावा, हत्या में इस्तेमाल हथियारों और अन्य फोरेंसिक सबूतों को भी ठोस तरीके से पप्पू यादव से जोड़ने में पुलिस विफल रही। इस वजह से हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलट दिया। हालांकि, अजीत सरकार के समर्थकों और परिवार ने इस फैसले को अन्यायपूर्ण बताया और दावा किया कि सत्ता और प्रभाव के दबाव में यह फैसला लिया गया।

सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव

इस हत्याकांड और पप्पू यादव की बरी होने की घटना ने बिहार की राजनीति में गहरे निशान छोड़े। पप्पू यादव, जो पहले से ही अपराध और राजनीति के गठजोड़ के लिए चर्चित थे, इस मामले के बाद और अधिक विवादास्पद हो गए। उनके खिलाफ 41 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें हत्या, अपहरण और मारपीट जैसे गंभीर आरोप शामिल हैं। हालांकि, वह अपने क्षेत्र में यादव समुदाय के बीच एक जननेता के रूप में भी लोकप्रिय रहे हैं। दूसरी ओर, अजीत सरकार की हत्या ने सीपीआई-एम और अन्य वामपंथी दलों को पूर्णिया में कमजोर किया।

अजीत सरकार हत्याकांड बिहार के आपराधिक और राजनीतिक इतिहास का एक काला अध्याय है। इस मामले में पप्पू यादव पर लगे आरोप, उनकी सजा और बाद में बरी होना कई सवाल खड़े करता है। क्या यह हत्या राजनीतिक रंजिश का नतीजा थी? क्या सबूतों की कमी के पीछे साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ थी? इन सवालों के जवाब आज भी अस्पष्ट हैं। यह मामला न केवल न्यायिक प्रक्रिया की सीमाओं को उजागर करता है, बल्कि बिहार की सियासत में अपराध और सत्ता के गहरे रिश्तों को भी दर्शाता है।

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