अकबरुद्दीन या औरंगजेब, नाम में क्या रखा है

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पटना/ मुम्बई। नाम में क्या रखा है? एक नाम ही तो है, जो जन्म से मृत्यु तक हमारे साथ चिपका रहता है, फिर भी हम उसे लेकर इतना हो-हल्ला क्यों मचाते हैं?

इकबाद और सोनाक्षी सिन्हा के घर नन्हा मेहमान आने वाला है। सोशल मीडिया पर तुरंत दंगल शुरू हो गया—बच्चे का नाम तैमूर 2.0 रखेंगे या जहांगीर? कोई बोला औरंगजेब भी अच्छा रहेगा, क्योंकि “ट्रेंड में है”। लोग अभी से बच्चे को इतिहास की किताब में घुसेड़ने पर तुले हैं, जबकि बच्चा अभी अल्ट्रासाउंड में भी शायद ठीक से पोज नहीं दे पा रहा होगा।

अरे भाई, थोड़ा ठहरो। सोनाक्षी के अपने घर में देख लो। उनके पिता महान शत्रुघ्न सिन्हा हैं। बड़े भाई हैं लव सिन्हा और कुश सिन्हा। यानी घर में रामायण का पूरा सेट—राम नहीं, सिर्फ लव-कुश। राम तो कहीं नजर ही नहीं आते। फिर भी किसी ने कभी नहीं पूछा कि “अरे, राम का अपमान कर रहे हो क्या?” कोई ट्रोल आर्मी नहीं उतरी होकर नहीं आई कि “लव-कुश रख लिया, राम को भुला दिया!” घर में रामायण चल रही है, पर बिना राम के भी चल रही है। कोई बवाल नहीं, कोई फतवा नहीं, कोई ट्रेंडिंग हैशटैग नहीं।

तो फिर हम दूसरों के बच्चे के नाम पर क्यों कुदाल लेकर कूद पड़ते हैं? तैमूर रखा तो सैफ-करीना को गाली पड़ी। अब इकबाल-सोनाक्षी को पहले से ही चेतावनी दी जा रही है—नाम “सही” रखना वरना देख लेंगे। सही से मतलब? जो हमारी विचारधारा को सूट करे वही सही, बाकी सब गलत।
नाम सिर्फ एक पहचान है। वो बच्चे का अपना है, माँ-बाप का अधिकार है। अगर सोनाक्षी चाहें तो अपने बच्चे का नाम “शॉटगन जूनियर” भी रख सकती हैं—उनके पिता को तो अच्छा ही लगेगा। या अगर इकबाल चाहें तो ‘अकबरुद्दीन’ भी रख सकते हैं। हमें क्या? हम तो बस ट्रोल करने के लिए जी रहे हैं।
जब तक बच्चा खुद बड़ा होकर न कहे कि “मम्मी-पापा, ये नाम मुझे पसंद नहीं”, तब तक हम अपनी कुंठा अपने पास रखें। लव-कुश वाले घर में कोई बवाल नहीं हुआ, तो तैमूर या जहांगीर वाले घर में क्यों होना चाहिए?

खामोश!

नाम में सचमुच कुछ नहीं रखा। रखा है तो सिर्फ हमारी छोटी सोच। बच्चे को आने दो, नाम बाद में देख लेंगे। अभी तो बस दुआ करें—स्वस्थ आए, खुश रहे।

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