अखिल भारतीय साहित्य परिषद अखिल भारतीय अध्यक्ष द्वारा जारी वक्तव्य

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डॉ. सुशील चंद्र त्रिवेदी

दिल्ली । भाषा केवल अभिव्यक्ति का ही माध्यम नहीं, अपितु संस्कृति की भी संवाहक होती हैं। किसी भी समाज की परम्परा और उसका जीवन दर्शन उसके द्वारा प्रयुक्त भाषा व्यवहार में प्रतिध्वनित होता है। भाषाएँ केवल संचार का साधन भी नहीं होती, वे स्मृति की संवाहक, विरासत का भंडार और पहचान की जीवनरेखाएं होती हैं। सारा विश्व बहुभाषिकता का समृद्ध समुच्चय है।

प्रत्येक भाषा का एक पारंपरिक समुदाय होता है, जिसका अपना देशज व्यवहार और सांस्कृतिक दृष्टि होती है, जो उसी भाषा में व्यक्त हो पाती हैं। अन्य भाषाओं में उनका रूपांतरण उसी तरह संभव नहीं है जैसे भारतीय भाषाओं के पोंगल, नवरात्र, दीपावली, होली, यज्ञ, पर्यूषण, धम्म जैसे शब्दों का अन्य भाषाओं में अनुवाद। इसीलिए प्रत्येक भाषा एक विश्वदृष्टि रखती है और जीवन की व्याख्या करने का एक विशिष्ट दृष्टिकोण प्रदान करती है।

भारत जैसे चिर पारंपरिक राष्ट्र में भाषाई गौरव तथा अपनी अपनी भाषा के प्रति प्रेम और लगाव का होना स्वाभाविक है। किन्तु इस भाषायी स्वाभिमान ने भारत देश में अपने से भिन्न भाषा और भाषा-भाषियों के प्रति प्रेम और सौहार्द का भाव रखा है।

हम भारतवासी प्राचीन काल से ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के प्रति आस्था रखते हैं अतः अथर्ववेद की इस मान्यता के प्रति हमारा दृढ़ विश्वास हैं कि, ‘जनं बिभ्रती बहुधा विवाचसं नानाधर्माणं पृथिवी यथौकसम्’ अर्थात् यह पृथ्वी कई तरह की भाषाएँ बोलने वाले और विभिन्न धर्मों का पालन करने वाले मनुष्यों को एक परिवार की तरह धारण करती है। अतः भाषाई वैविध्य हमारी समृद्धि का द्योतक है न कि पारस्परिक राग द्वेष का।

हमारी यह सुदृढ़ मान्यता है कि भारत की सभी भाषाएं राष्ट्र भाषा हैं। हिंदी अखिल भारतीय संपर्क भाषा है। लोक जीवन में भाषाई प्रतिद्वंदिता अथवा वैमनस्य को कभी कोई स्थान नहीं रहा। राजनैतिक स्वार्थ और दुराग्रहों के कारण कुछ राजनीतिक दल पारस्परिक द्वेष और संघर्ष का वातावरण भले ही बनाते हों किन्तु हम भारत के लोंग प्राचीन काल से यात्राओं, तीर्थाटनों, चलचित्रों और व्यापारिक मंडियों के माध्यम से भाषायी वैविध्य को स्वीकार करते हुए, इस विविधता में एकात्मता के दर्शन करते रहे है।

भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में वर्तमान में 22 भाषाओं को आधिकारिक मान्यता प्राप्त है। इन भाषाओं के अतिरिक्त देश के विभिन्न क्षेत्रों में सैकड़ों बोलियाँ प्रचलित हैं, जो भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और भाषाई विविधता की सजीव प्रतीक हैं। ये भाषाएँ प्रतिस्पर्धी पहचान नहीं बल्कि राष्ट्रीय जीवन के व्यापक फलक पर पूरक रंग हैं। इन भाषाओं का संरक्षण, संवर्धन और उत्सव प्रतिरोध का कार्य नहीं है-येसमावेशिता और स्वाभिमान के प्रति भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि हैं। अतः भारतीय भाषा दिवस (11दिसंबर) के उपलक्ष में पूरे देश में व्यापक समारोह आयोजित किए जाए।

भारत के जीवंत और निरंतर विकसित होते सांस्कृतिक ताने-बाने में भी भाषाई विविधता का स्वर अपनागौरवशाली स्थान रखता है।

(लेखक अखिल भारतीय साहित्य परिषद के अध्यक्ष हैं)

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