अमेरिका और कांग्रेस की सांठ-गांठ: भारत पर चौतरफा हमला और तख्तापलट की साजिश

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Political Future of Rahul Gandhi, former Member of Parliament, and Donald Trump, former President - 1

दिल्ली। भारत आज एक अभूतपूर्व वैश्विक और आंतरिक चुनौती का सामना कर रहा है। एक तरफ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत के खिलाफ आक्रामक नीतियां और टैरिफ युद्ध की धमकियां हैं, तो दूसरी तरफ देश के भीतर विपक्षी दल कांग्रेस द्वारा चुनावी धांधली के आरोपों के जरिए अराजकता फैलाने की कोशिशें तेज हो रही हैं। यह स्थिति महज संयोग नहीं, बल्कि एक सुनियोजित रणनीति का हिस्सा प्रतीत होती है, जिसका मकसद भारत की आर्थिक और राजनीतिक स्थिरता को कमजोर करना और संभवतः तख्तापलट जैसी स्थिति पैदा करना है। हाल के घटनाक्रम, खासकर बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार के पतन से पहले की परिस्थितियों से इसकी समानता, इस खतरे को और गंभीर बनाती है। यह रिपोर्ट अमेरिका और कांग्रेस की भूमिका को बेनकाब करने का प्रयास करती है, जो भारत के खिलाफ एक साथ काम करते दिख रहे हैं।

ट्रंप का टैरिफ युद्ध: रूसी तेल या कुछ और?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में भारत पर 25% टैरिफ और अतिरिक्त जुर्माने की घोषणा की, जिसे बाद में बढ़ाकर 50% कर दिया गया। यह कदम कथित तौर पर भारत द्वारा रूस से तेल खरीदने के जवाब में उठाया गया। ट्रंप का तर्क है कि भारत का रूस से तेल और सैन्य उपकरणों की खरीद यूक्रेन युद्ध के बीच वैश्विक हितों के खिलाफ है। लेकिन क्या यह वास्तव में रूसी तेल का मामला है, या इसके पीछे कोई बड़ा मकसद छिपा है?

ट्रंप का एक बयान इस सवाल का जवाब देता है। जब एक पत्रकार ने उनसे पूछा कि यदि रूस यूक्रेन के साथ युद्धविराम पर सहमत हो जाता है, तो क्या वे भारत पर टैरिफ हटाएंगे, तो ट्रंप का जवाब था, “अभी तो हम टैरिफ और बढ़ाने जा रहे हैं।” यह बयान साफ करता है कि टैरिफ युद्ध का असली मकसद रूसी तेल नहीं, बल्कि भारत को आर्थिक दबाव में लाकर उसकी नीतियों को प्रभावित करना है। विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप भारत के कृषि, डेयरी, और मत्स्य क्षेत्रों को अमेरिकी कंपनियों के लिए खोलने का दबाव बना रहे हैं। यदि भारत इन क्षेत्रों में अमेरिकी उत्पादों के लिए बाजार खोल देता है, तो यह भारतीय किसानों, छोटे व्यवसायियों, और स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए विनाशकारी हो सकता है।

भारत ने इस दबाव को सिरे से खारिज कर दिया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने आत्मविश्वास के साथ कहा कि भारत अमेरिकी दबाव में नहीं आएगा और न ही अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को छोड़ेगा। भारत की यह सख्ती ट्रंप की हताशा का कारण बन रही है, जैसा कि उनके बयानों में दिखता है। उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था को “डेड” तक कह डाला, जबकि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के आंकड़े बताते हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था 2025-26 में 6.4% की दर से बढ़ेगी, जो अमेरिका की 1.9-2% की वृद्धि दर से कहीं अधिक है। यह दिखाता है कि ट्रंप का बयान तथ्यों से परे, भारत को नीचा दिखाने की कोशिश है।

कांग्रेस की अराजकता: आंतरिक मोर्चे पर हमला

जबकि ट्रंप बाहरी दबाव बना रहे हैं, कांग्रेस पार्टी देश के भीतर अराजकता फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही। विपक्षी नेता राहुल गांधी और अन्य कांग्रेस नेताओं ने हाल ही में 2024 के लोकसभा चुनावों में धांधली के गंभीर आरोप लगाए हैं। ये आरोप न केवल भारत की लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करने की कोशिश हैं, बल्कि इनका समय भी संदिग्ध है। बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार के खिलाफ भी तख्तापलट से पहले इसी तरह के आरोपों को हवा दी गई थी, जिसके बाद वहां हिंसा और अस्थिरता फैल गई।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने ट्रंप के टैरिफ को लेकर मोदी सरकार की विदेश नीति को “लड़खड़ा गई” बताते हुए तीखा हमला बोला। जयराम रमेश ने “हाउडी मोदी” और “नमस्ते ट्रंप” जैसे आयोजनों का जिक्र करते हुए दावा किया कि मोदी की ट्रंप से नजदीकी बेकार साबित हुई। सुप्रिया श्रीनेत ने टैरिफ को अर्थव्यवस्था के लिए “विनाशकारी” बताया, जबकि राहुल गांधी ने ट्रंप के “डेड इकोनॉमी” बयान का समर्थन करते हुए कहा कि वे इस बात से “प्रसन्न” हैं। यह रुख न केवल भारत की आर्थिक प्रगति को कमतर आंकने की कोशिश है, बल्कि ट्रंप की आलोचना का इस्तेमाल सरकार को अस्थिर करने के लिए भी किया जा रहा है।

कांग्रेस की यह रणनीति नई नहीं है। 2019 और 2024 के चुनावों में भी उसने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाए थे। लेकिन इस बार, ट्रंप के बयानों और टैरिफ की आड़ में ये आरोप और तीखे हो गए हैं। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह एक सुनियोजित रणनीति हो सकती है, जिसमें बाहरी ताकतों (जैसे अमेरिका) और आंतरिक विपक्षी दलों का गठजोड़ भारत में अराजकता फैलाने की कोशिश कर रहा है।

बांग्लादेश का सबक: इतिहास दोहराने की कोशिश?

दिल्ली। बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार के पतन से पहले वहां भी इसी तरह का माहौल बनाया गया था। चुनावी धांधली के आरोपों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया, जिसके बाद हिंसक प्रदर्शन हुए और अंततः उनकी सरकार गिर गई। भारत में भी अब यही पैटर्न दिख रहा है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल चुनावी धांधली के आरोपों को हवा दे रहे हैं, और इनका समर्थन कुछ अंतरराष्ट्रीय ताकतों से मिलता दिख रहा है। ट्रंप के सहयोगी स्टीफन मिलर ने भारत पर “विशाल टैरिफ, रूसी तेल खरीद, और अमेरिकी वीजा सिस्टम के दुरुपयोग” का आरोप लगाया, जो भारत के खिलाफ एक व्यापक अभियान का हिस्सा लगता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में कहा, “मुझे पता है कि मुझे इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी।” यह बयान सामान्य नहीं है। यह संकेत देता है कि मोदी सरकार को इस साजिश की गहराई का अंदाजा है। भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और आत्मनिर्भरता की नीति, खासकर रूस से तेल खरीद और BRICS जैसे संगठनों में सक्रियता, वैश्विक शक्तियों के लिए असहज है। अमेरिका, जो अपनी मुद्रा (डॉलर) और व्यापारिक प्रभुत्व को बनाए रखना चाहता है, भारत जैसे उभरते देशों को दबाव में लाने की कोशिश कर रहा है।

भारत की प्रतिक्रिया: सख्ती और आत्मविश्वास

भारत ने ट्रंप की धमकियों का जवाब आत्मविश्वास और सख्ती से दिया है। विदेश मंत्रालय ने साफ किया कि भारत किसी भी दबाव में नहीं आएगा और अपनी नीतियों को अपने हितों के आधार पर तय करेगा। इसके अलावा, भारत ने 3.6 अरब डॉलर की बोइंग जेट डील पर ब्रेक लगाकर और रूसी Su-57 जेट्स की ओर रुख करके अमेरिका को स्पष्ट संदेश दिया है। यह दिखाता है कि भारत न केवल आर्थिक बल्कि रक्षा क्षेत्र में भी आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है।

कांग्रेस की अंदरूनी अराजकता को लेकर भी सरकार सतर्क है। विपक्ष के आरोपों का जवाब संसद में दिया जा रहा है, और जनता को यह समझाने की कोशिश की जा रही है कि ये आरोप भारत की प्रगति को रोकने की साजिश का हिस्सा हैं।

भारत पर खतरा, लेकिन दृढ़ता बरकरार

ट्रंप का टैरिफ युद्ध और कांग्रेस की अराजकता एक ही सिक्के के दो पहलू प्रतीत होते हैं। एक तरफ अमेरिका भारत को आर्थिक और कूटनीतिक दबाव में लाने की कोशिश कर रहा है, तो दूसरी तरफ कांग्रेस आंतरिक अस्थिरता पैदा करने का प्रयास कर रही है। लेकिन भारत की स्थिति मजबूत है। उसकी अर्थव्यवस्था, कूटनीति, और जनता का समर्थन उसे इन चुनौतियों का सामना करने की ताकत देता है। बांग्लादेश की तरह भारत में तख्तापलट की साजिश को कामयाब होने से रोकने के लिए सरकार और जनता को एकजुट रहना होगा। यह समय है कि भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता और आत्मनिर्भरता को और मजबूत करे, ताकि बाहरी और आंतरिक शक्तियों की साजिशों को नाकाम किया जा सके।

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