महान शूरवीर राणा सांगा को “राष्ट्र अधिनायक” और उनके पूर्वज बाप्पा रावल को “मध्ययुग का राष्ट्रपिता” घोषित किया जाना चाहिए!
औरंगज़ेब को लेकर ही विवाद थमा नहीं था कि अब सोलहवीं सदी के राजा राणा सांगा को लेकर भी विवाद शुरू हो गया, इस बार ये विवाद शुरू किया है समाजवादी पार्टी के सांसद रामजी लाल सुमन ने, जिन्होंने राज्यसभा में अपने भाषण के दौरान राणा सांगा को गद्दार बता दिया । बयाना में जहां राणा सांगा ने बाबर को हराया था, उस जगह को पूछने वाला कोई नहीं है। जिस ऐतिहासिक किले पर राणा सांगा ने कब्ज़ा किया था, वो खंडहर हो रहा है, बस एक साइनबोर्ड ही दिखता है, जो बता रहा है कि यहीं बयाना की ऐतिहासिक लड़ाई हुई थी । राजनीति करने तो सब आ रहे हैं, लेकिन राणा सांगा की विरासत को यादगार बनाने के लिए कुछ नहीं किया जा रहा। राणा सांगा ने लोदी सहित सभी समकालीन सुल्तानों को हराया था, तो उन्हें बाबर को भारत आमंत्रित करने कि आवश्यकता ही नहीं थी। यह दौलत खान लोदी ही था जिन्होंने बाबर को भारत आमंत्रित किया था। पंजाब के गवर्नर दौलत खान लोदी, दिल्ली के अंतिम लोदी सुल्तान इब्राहिम लोदी के चाचा थे और इब्राहिम के पतन में एक प्रमुख व्यक्ति थे, जिन्होंने अंततः बाबर को आक्रमण करने और उसे उखाड़ फेंकने के लिए आमंत्रित किया था ।
वामपंथी इतिहासकारों का दावा है कि राणा सांगा 16 मार्च 1527 को खानवा की लड़ाई हार गए थे, लेकिन सच्चाई यह है कि राणा सांगा ने युद्ध के मैदान में पहली बार तोपों के हमलों का सामना करने के बावजूद यह लड़ाई जीती थी और उसके बाद बाबर ने राणा सांगा को जहर देने की साजिश रची थी क्योंकि बाबर लड़ाई हारने के कारण राणा सांगा के साथ बातचीत में कमजोर पड़ रहा था था। वामपंथी इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास को विकृत किया है। भारतीय डीप स्टेट इतिहासकारों द्वारा की गई गलतियों को सुधारने के लिए इतिहास बोर्ड बनाने के लिए राष्ट्रवादी भावना को वापस लाने का समय आ गया है। यही कारण है कि किसी देश के इतिहास को बदनाम करने का सबसे पक्का तरीका उसके प्रमुख नायकों के वर्ग को बदनाम करना है – नायक और नायिकाएँ जिन्होंने कभी सांस्कृतिक और राजनीतिक मुक्ति के लिए बलिदान देने की अपनी क्षमता से देश का प्यार और सम्मान अर्जित किया था। उन पर छल, अहंकार, अंधराष्ट्रवाद और विश्वासघात का आरोप लगाओ – इस प्रकार नायकों को खलनायक बना दो, और बस! वामपंथी इतिहासकार लोगों की ऐतिहासिक धारणा को उलटने में सफल रहे हैं। वामपंथी इतिहासकार इस बात को बहुत अच्छी तरह समझते हैं। उन्होंने भारतीय लोगों की ऐतिहासिक धारणा को विकृत करने के लिए इस उपकरण का उदारतापूर्वक इस्तेमाल किया है – खासकर राणा सांगा जैसे हमारे राष्ट्रीय नायकों को निशाना बनाकर।
जिन लोगों का अपना इतिहास नहीं है, वे वोट की राजनीति के निहित स्वार्थ के लिए राणा सांगा की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहे हैं, उन्हें समाज से बहिष्कृत कर देना चाहिए और संसद को हमारे राष्ट्रीय नायकों के गौरव को बनाए रखने के लिए कानून बनाना चाहिए जिसके वे हकदार हैं। राणा सांगा के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने वाले राज्यसभा सांसद रामजी लाल सुमन के खिलाफ कार्रवाई शुरू की जानी चाहिए। संग्राम सिंह, जिन्हें आमतौर पर राणा सांगा के नाम से जाना जाता है, 1508 से 1528 तक मेवाड़ के राणा थे। सिसोदिया राजवंश के सदस्य, उन्होंने चित्तौड़ को अपनी राजधानी के साथ वर्तमान राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों को नियंत्रित किया। उनके शासनकाल की उनके कई समकालीनों ने प्रशंसा की, जिनमें प्रथम मुगल सम्राट बाबर भी शामिल था, जिन्होंने उन्हें उस समय का “सबसे महान भारतीय शासक” बताया था
अपने सैन्य करियर में, सांगा ने अठारह भीषण युद्धों में दिल्ली, मालवा और गुजरात के सुल्तानों को हराया और वर्तमान राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात के उत्तरी भाग पर विजय प्राप्त करके अपने क्षेत्र का विस्तार किया। उन्होंने हरियाणा, उत्तर प्रदेश और अमरकोट, सिंध के कुछ हिस्सों पर भी नियंत्रण किया। राजगद्दी पर बैठने के बाद, सांगा ने कूटनीति और वैवाहिक गठबंधनों के माध्यम से राजपूताना के युद्धरत कुलों को फिर से एकजुट किया। राणा सांगा को तराइन की दूसरी लड़ाई के बाद पहली बार कई राजपूत शासकों को एकजुट करने और बाबर की हमलावर सेनाओं के खिलाफ़ मार्च करने का श्रेय दिया जाता है। सांगा ने करीब 100 लड़ाइयाँ लड़ी थीं और उनमें से एक भी नहीं हारी।
भारत के लोग भारत पर इस्लामी आक्रमण को रोकने के लिए राणा सांगा और उनके पूर्वज बप्पा रावल के ऋणी हैं। सिंध में अरबों का शासन स्थापित हो जाने के बाद जिस वीर ने उनको न केवल पूर्व की ओर बढ़ने से सफलतापूर्वक रोका था, बल्कि उनको कई बार करारी हार भी दी थी, उसका नाम था बप्पा रावल। जब अरबों का पहला आक्रमण सिंध में हुआ और सिंध के राजा दाहिर की हत्या करके आक्रमणकारी राजा दाहिर की पुत्री को उठाकर ले गए उस समय भारतीय इतिहास के लिए यह एक दुर्दांत घटना थी। यहां युद्ध होते थे, हार- जीत भी होती थी लेकिन उसके बाद औरतो के साथ जीता हुवा राजा सम्मान पूर्वक पेश आता था। इस घटना से विचलित होकर बप्पा रावल ने राजस्थान के आस – पास के राजाओ को एकत्रित कर अरबो को खदेड़ते हुए अरब तक ले गए। लौटने के क्रम में उन्होंने जगह -जगह अपनी चौकी स्थापित की और वहां पर चौकीदार नियक्त किया। इसके कारन अगले लगभग ४५० वर्षो तक अरब से भारत पर कोई आक्रमण नहीं हुआ। इस प्रकार लगभग ४५० – ५०० वर्षो तक भररत के सीमा की सुरक्षा बप्पा रावल के पराक्रम और दूरदर्शित से मिली।
राणा सांगा और बप्पा रावल के योगदान को देखते हुए भारत सरकार को उन्हें क्रमशः “राष्ट्र अधिनायक” और “मध्यकालीन भारत का पिता” घोषित करना चाहिए।