अमित श्रीवास्तव।
दिल्ली। भारत की सुदृढ़ आर्थिक व्यवस्था के पीछे विवाह व्यवस्था, परिवार, सनातन संस्कृति तथा धार्मिक अनुष्ठान प्रमुख है। विवाह व्यवस्था, परिवार को केंद्र में रखने का एक विशेष कारण है। परिवार की इस शक्ति पर चर्चा कम होती है। विवाह व्यवस्था से परिवार बनता है। परिवार से जिम्मेदारियां आती है, जिम्मेदारियां बचत को प्रेरित करती हैं। परिवार गहने, कैश, बैंक तथा अन्य उपक्रमों में बचत भारत को अंदर से मजबूत करता हैं। भारत की महिलाओं के श्रृंगार की पेटी में जमा रकम कठिन समय में परिवार के काम आता है। भारत में यह सामान्य घटना है। जिन देशों में परिवार का महत्व नहीं वहां सरकारों पर नागरिकों को सामाजिक सुरक्षा देने का बड़ा दबाव होता है। जिस कारण ऐसे देशों का एक बड़ा बजट इन स्कीमों पर खर्च होता है और परिवार जिम्मेदारियां से रहित हो जाता है। वहीं भारत में परिवार खुद की चिंता कुछ हद तक स्वयं करता है जिस कारण भारत में आर्थिक संकट का असर बहुतायत परिवारों पर कम पड़ता है । परिवारों द्वारा किया गया बजट उसे आर्थिक संकटों से बचाते हैं वहीं सरकारें परिवार पर खर्च करने से ज्यादा अन्य विकास कार्यों में बजट तय करती है।
वहीं मंदिर, धार्मिक प्रयोजन, धार्मिक यात्राएं / तीर्थ भारत में निहित वो शक्तियां है जो भारत की अर्थव्यवस्था को चलाने में भूमिका निभाती है। परिवार एवं धर्म ये दोनों ही कारक भारत को आर्थिक रूप से मजबूत करने में कितनी भूमिका निभाते हैं । धार्मिक अनुष्ठान तथा तीर्थ यात्राओं से बाजार में पैसे आते हैं जिससे आर्थिक गतिविधियां चलती हैं। काशी शहर का बढ़ा बजट तथा हाल ही में हुए महाकुंभ इसके ताजा उदाहरण हैं।
आर्थिक गतिविधि चलाने में इनका योगदान कितना है इसे मांपने का कोई अंतरराष्ट्रीय पैमाना है ही नहीं। जो कुछ हैं भी वो मानक सिद्धांत है, प्रमाणिक नहीं हैं। किंतु इन दोनों ही कारकों के महत्व को दुनिया समझ रही है और सदैव इन पर ही आघात करने के लिए षड्यंत्र रचे जाते हैं।
भारत को कमजोर करने वाली शक्तियां समय समय पर परिवार, विवाह व्यवस्था तथा भारतीय संस्कृति के विरुद्ध षड्यंत्र रचती हैं।
परिवार के केंद्र में महिलाएं होती हैं और धर्म के केंद्र में ब्राह्मण अथवा पंडित हैं। ब्राह्मण अपना धर्मकाज नहीं छोड़ सकते इसलिए इससे समाज ही अलग करने का षड्यंत्र होता है, इन्हें विलेन के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। महिला को परिवार से अलग करना भी कठिन है इस कारण विवाह व्यवस्था को बदनाम करने की साजिश रची जाती है। महिलाओं की स्वस्त्रता एवं आत्म निर्भरता का छलावा दिखा इन्हें परिवार से दूर करने की साजिश रची जाती है। समय समय पर My Life My Choice जैसे नारों को हवा दी जाती है। बच्चियों के बीच विवाह व्यवस्था को उसकी गुलामी का कारक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। ये सब भारत को आर्थिक रूप से कमजोर करने की साजिश का टूलकिट है।
परिवार एवं परिवार में धार्मिक कार्य दोनों की जिम्मेवारी महिलाओं पर ज्यादा निर्भर करती है अतः महिलाओं को स्वतंत्रता का छलावा दिखा कर महिलाओं को हथियार बनाया जाता है।
इन साजिशों में भारत का स्वयंसिद्ध बौद्धिक समाज जिनकी एक विशेष विचारधारा है, अपनी तरफ से योगदान देता है।
इस गुट के सदस्य स्वयं तथा गुट के अन्य सदस्यों को बुद्धिजीवी कह कर संबोधित करते हैं, अनवरत कहते हैं और तब तक करते हैं जब तक आम आदमी भी उन्हें बुद्धिजीवी न कहने लगे। आम आदमी कहते सुनते मानने भी लगते हैं।
इनकी पुस्तकों अथवा लेखों को इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता है कि इनकी बातों से सहमत न होने वाला निरीह मूर्ख साबित कर दिया जाता है। ऐसे बुद्धिजीवी सदैव विवाह व्यवस्था, परिवार एवं धर्म का विरोध करते नजर आते हैं इसका कारण भी भारत को कमजोर करना है। कमजोर राष्ट्र इनके फलने फूलने के लिए उत्तम परिस्थिति है, यही कारण है कि ये वर्ग धर्म एवं विवाह व्यवस्था पर चोट करता है।
समय समय पर ऐसे लोग प्लांट किए जाते हैं जो इन साजिशों की अग्नि को प्रज्वलित करते रहे। ऐसे चेहरे को समाज में स्थापित कराने के लिए स्वयंसिद्ध बुद्धिजीवियों का यह वर्ग इनकी भूरू भूरी प्रशंसा करता है, इन्हें मंच दिया जाता है। इनके सच को दबा कर इनके झूठ को इतना प्रचारित एवं प्रसारित किया जाता है कि आम जन इनकी चकाचौंध में खोकर इनकी तरह ही अपना भी विचार बना लेते हैं। इनके आलेखों को इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता है कि पढ़ने वाला पढ़ने से पूर्व ही इसे महान रचना मन लेता है।
उदाहरण के रूप में दो व्यक्तियों को इस आलेख में समाहित कर रहा हूं। एक हैं इन दिनों सोशल मीडिया पर प्रवचन देने वाले आचार्य प्रशांत एवं दूसरे हैं लेखक राजेंद्र यादव।
आचार्य प्रशांत भारत में woke culture को प्रसारित कर रहे हैं। woke culture पश्चिम का विषदिंतर है जो भारत को अंदर से खोखला कर देगा।
प्रशांत सोशल मीडिया का सहारा लेकर परिवार एवं विवाह व्यवस्था पर आघात कर रहे हैं। महिलाओं को स्वतंत्रता का स्वप्न दिखा परिवार व्यवस्था से दूर कर रहे हैं। इनके अनुसार परिवार बनने अथवा विवाह का केवल और केवल कारण है शारीरिक भूख। इनके अनुसार विवाह महिलाओं के विरुद्ध षड्यंत्र हैं। विपत्ति काल में परिवार की महत्ता को समझने में ये अक्षम है शायद। महिलाओं को भारतीय संस्कृति को पाश्चात्य चश्में से दिखाने का प्रयास करते हुए प्रशांत भी उसी कार्य में लगे हैं जिसका एक ही ध्येय है भारत को अंदर से खोखला कर दो।
वहीं राजेंद्र यादव भारतीय संस्कृति के विरुद्ध खूब लिखते रहे हैं दोनों की एकसमान विचारधारा रही है। दोनों का लक्ष्य महिलाएं एवं नई पीढ़ी हैं, जिन्हें व्यक्तिगत स्वतंत्रता का छलावा दिखा कर मार्ग से भटकाने के कार्य में अपने अपने समय में काम कर रहे या कर चुके हैं।
इन दोनों को ही समाज में स्थापित करने के लिए इनके विचारधारा के कामरेड की एक फौज खड़ी है जो इनके सच को सामने लाने वालों पर टूट पड़ती है।
राजेंद्र यादव की पुस्तक सारा आकाश एक सटीक उदाहरण है। इन उपन्यास को दो भागों में बांटा जा सकता है। पहले अध्याय में उस हिस्से को रखा जा सकता है जिस पर ऋषिकेश मुखर्जी ने फिल्म बनाई। जब तक उपन्यास संयुक्त परिवार के किसी एक सदस्य के द्वारा किए जा रहे नाकारात्मक कार्यों को प्रमुखता देकर पूरे परिवार व्यवस्था पर ही प्रश्न चिह्न लगाए जाते हैं । वहीं उपन्यास का दूसरा अंश एक विशेष विचारधारा के प्रसार का मुखपत्र प्रतीत होता है। राजेंद्र यादव ने अपनी विचारधारा के प्रसार हेतु पहले हिस्से में पति पत्नी के प्रेम को आधार बना पाठक को पहले तो अपने वश में करते हैं ताकि पाठक उस मानसिक अवस्था में पहुंच जाए कि आगे पढ़ी जाने वाले कंटेंट में निहित विचारधारा की प्रचार सामग्री का निष्पक्ष विश्लेषण ही न कर पाए। फिर खेल शुरू होता है भारतीय संस्कृति के विरुद्ध विष प्रवाह का।
लेखक राजेंद्र यादव की पुस्तक बाद में पढ़ने को दी जाती है पहले उन्हें महान लेखक एवं उनकी रचना को महान रचना बता दिया जाता है। पाठक को इस मानसिक अवस्था में पहुंचा दिया जाता कि वह निष्पक्ष रह ही नहीं जाता। वह यह सोच कर पढ़ता है कि एक महान लेखक की एक महान रचना पढ़ रहा है। पाठन के उपरांत वो विश्लेषण भी उसी आधार पर विश्लेषण भी करता है किंतु यदि पाठक इस योगनिद्रा से बाहर आकर निष्पक्ष विश्लेषण कर भी दे तो विचारधारा के ये मौलाना टाइप बुद्धिजीवी वर्ग पाठक का चरित्र हनन करता हैं, उस पर इतने आघात होते हैं कि कोई दूसरा निष्पक्ष विश्लेषण करने की हिम्मत नहीं कर पाता।
इन उदाहरणों के बाद मुझ पर भी आघात संभव है किंतु बदले समय में अब इनका प्रभाव खत्म या कमजोर होता जा रहा है।।अतः निष्पक्ष विश्लेषण करने का उपयुक्त समय आ चुका है।
इन दोनों उदाहरणों से समझा जा सकता है कि भारत को अंदर से खोखला करने के लिए कैसे षड्यंत्र रचे जाते हैं, किसे हथियार बनाने का प्रयास चल रहा है और कैसे ऐसे लोगों को साज में झूठे प्रशंसाओं के आधार पर समाज में स्थापित किया जा रहा है। भारत को यदि शक्तिसंपन्न एवं सुदृढ़ बनाना है तो युवा को पिधिविशेषकर महिलाओं को इनसे बचने की आवश्यकता है।