अवैध मतान्तरण को रोकने के लिए राष्ट्रव्यापी संकल्प की आवश्यकता

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डॉ सुरेन्द्र कुमार जैन,

दिल्ली । एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते समय माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अवैध मतान्तरण के दुष्परिणामों पर चिन्ता व्यक्त करते हुए चेतावनी दी कि यह धार्मिक स्वतन्त्रता के मूलभूत अधिकार और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता है। उन्होंने केवल चिन्ता ही व्यक्त नहीं की, अपितु केन्द्र सरकार को निर्देश भी दिए कि वह स्पष्ट रूप से बताए कि इस समस्या के समाधान के लिए क्या कदम उठाएंगे। पिछले काफी समय से अवैध मतान्तरण में संलग्न शक्तियों की आक्रामक रणनीतियां और उनके दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं।

कश्मीर में दो सिख लड़कियों का जबरन मतान्तरण, पंजाब में मिशनरियों द्वारा किए जा रहे मतान्तरण पर अकाल तख्त द्वारा चिन्ता व्यक्त करना, गुरुग्राम व लोनी में मूक-बधिर बच्चों का भी मतान्तरण करना, सम्पूर्ण देश में हिन्दू देवी-देवताओं व आस्थाओं के अपमान की सामग्री प्रकाशित होना या सोशल मीडिया पर अपलोड करना, कोरोना काल में भी चर्च का अप्रत्याशित व आक्रामक रूप से प्रसार होना आदि घटनाएं सम्पूर्ण देश को उद्वेलित कर रही हैं। अवैध मतान्तरण के ही एक वीभत्स रूप लव जिहाद शब्दों के उपयोग पर मजाक उड़ाने वाले भी दिल्ली में आफताब द्वारा श्रद्धा का कत्ल कर उसके शव को 35 टुकड़ों में जिस तरह बांटा गया, उससे स्तब्ध रह गए। अभी इस क्रूर हत्याकांड पर आक्रोश व्यक्त करने की समाज तैयारी कर ही रहा था कि लखनऊ में सूफियान ने अपनी प्रेमिका निधि गुप्ता को चौथी मन्जिल से धक्का देकर सिर्फ इसलिए मार दिया, क्योंकि उसने इस्लाम स्वीकार करने से मना कर दिया था।

अवैध मतान्तरण की यह विभीषिका भारत 13 सौ वर्षों से झेल रहा है। इसी कारण भारत में 10 करोड़ हिन्दुओं का नरसंहार हुआ। लगभग इतनों का ही जबरन मतान्तरण हुआ। भारत का दुर्भाग्यजनक विभाजन हुआ और कश्मीर की त्रासदी हुई। आतंकवाद और कई नरसंहारों की विभीषिका अवैध मतान्तरण के कारण ही भारत को झेलनी पड़ रही है। स्वामी विवेकानन्द, स्वामी दयानन्द, महात्मा गांधी, डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर आदि कई महापुरुषों ने समय-समय पर इस मानवता विरोधी त्रासदी पर नियन्त्रण करने की आवश्यकता व्यक्त की है। पहले मतान्तरण बल प्रयोग या लालच से ही होता था, परन्तु अब तकनीक का उपयोग कर कई कुटिल तरीकों से मतान्तरण किया जाता है। विदेशों से मिल रही अकूत धन राशि और निजी स्वार्थों के कारण विशेष वर्ग का समर्थन इस समस्या को और जटिल बना देता है। इसके नए-नए स्वरूप देश के लिए नए-नए खतरों का निर्माण कर रहे हैं। इनका सामना करने के लिए केन्द्र सरकार, राज्य सरकारों व देश के साधु-सन्तों और राष्ट्रभक्त समाज को मिलकर समन्वित योजना के अन्तर्गत काम करना होगा।

अवैध मतान्तरण के राष्ट्रव्यापी षड्यंत्र को रोकने के लिए सबसे महत्वपूर्ण दायित्व केन्द्र सरकार का बनता है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी उससे ही अपेक्षा की है। वर्ष 1995 में सरला मुद्गल मामले में भी माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इसे रोकने के लिए केन्द्रीय कानून बनाने की आवश्यकता प्रकट की थी। संविधान सभा में इस विषय पर चर्चा के समय सरदार पटेल ने आश्वासन दिया था कि अगर संविधान के अनुच्छेद 25 का दुरुपयोग हुआ, तो उसे रोकने के लिए केन्द्रीय कानून लाया जाएगा।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद कुछ राज्य सरकारों ने इस दिशा में कदम उठाए परन्तु वोट बैंक की राजनीति ने राष्ट्रीय हितों की उपेक्षा कर दी। कई केन्द्र सरकारें इसे राज्य का विषय बताकर पल्ला झाड़ती रहीं। संविधान के अनुच्छेद 25 के अन्तर्गत मतान्तरण के अधिकार की बात करने वाले जानबूझकर इस अनुच्छेद के प्रतिबन्धात्मक प्रावधानों की चर्चा नहीं करते। सार्वजनिक व्यवस्था, स्वास्थ्य, नैतिकता के कानून केन्द्र सरकार के अन्तर्गत ही आते हैं। यह ठीक है कि भारत के आठ राज्यों में तत्सम्बन्धी कानून बने हैं परन्तु इस समस्या की भीषणता, व्यापकता और विदेशी शक्तियों के समर्थन को देखकर ऐसा महसूस होता है कि राष्ट्रव्यापी प्रभाव वाला सबल कानून बनना चाहिए। एक पृथक कानून बने या भारतीय दंड संहिता में कुछ संशोधन कर व्यवस्था बनाई जाए, इस पर चर्चा हो सकती है। 75 वर्षों से इस आवश्यकता की अनदेखी की जा रही है। समाज को विश्वास है कि स्वतन्त्रता के अमृत महोत्सव वर्ष में वर्तमान संकल्पवान सरकार, जो राष्ट्र को चुनौती देने वाले विषयों पर जीरो टॉलरेंस की नीति रखती है, इस दिशा में सबल कानून अवश्य बनाएगी।

13 सौ वर्ष पुरानी इस विकट समस्या का समाधान केवल कानून बनाकर नहीं हो सकता। जब भी देश के सामने इस प्रकार की चुनौतियां आती हैं, भारत के सन्त, महात्मा और चिन्तक प्रेरक व मार्गदर्शक के रुप में सामने आते हैं। देवल ऋषि, स्वामी विद्यारण्य, रामानुजाचार्य, रामानंद, चैतन्य महाप्रभु, गुरु तेग बहादुर गुरु गोविंद सिंह, स्वामी विवेकानन्द, स्वामी दयानन्द, स्वामी श्रद्धानन्द, स्वामी चिन्मयानन्द, महात्मा गांधी, डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर आदि कई सन्तों, महापुरुषों ने न केवल इस सम्बन्ध में जन-जागरण किया है, मतान्तरण की आंधी को रोकने का प्रयास किया है, अपितु भटके हुए बन्धुओं को अपनी जड़ों के साथ जोड़ने का प्रयास भी किया है।

आज कई पूज्य साधु-सन्त और चिंतक इस दिशा में सार्थक कदम उठा रहे हैं। देश के पूज्य साधु-सन्तों ने जिन उद्देश्यों को लेकर विहिप की स्थापना की थी, उनमें एक प्रमुख उद्देश्य मतान्तरण को रोकना और घर वापसी कराना था। इससे साधु-सन्तों की पीड़ा और प्राथमिकता स्पष्ट होती है। आज देश में लाखों साधु-सन्त हैं, जो इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि देश और हिन्दू बचेगा, तो ही उनका सम्मान और अस्तित्व सुनिश्चित रहेगा। चाणक्य ने जिस प्रकार विदेशी आक्रमणकारियों के संकट का सामना करने के लिए समन्वित अभियान चलाया था, आज समाज पूज्य सन्तों से वैसी ही अपेक्षा कर रहा है। अपनी कथाओं और प्रवचनों के माध्यम से जन जागरण, एक-एक जिले को दत्तक लेकर मतान्तरण के षडयंत्रों पर रोक लगाना और भटके बन्धुओं को अपने साथ जोड़ने का महा अभियान इस समय की आवश्यकता है। ऐसी हर चुनौती पर समाज ने पूज्य सन्तों के मार्गदर्शन में ही विजय प्राप्त की है और इस समय भी करेंगे, ऐसा विश्वास है।

सर्वविदित तथ्य है कि समाज के सहयोग के बिना कोई भी कानून फलीभूत नहीं हो सकता। दहेज विरोधी कानून का हश्र सबसे प्रबल उदाहरण है। इसलिए समाज को प्रेरित करने और व्याप्त जन जागरण हेतु सभी महापुरुषों और संगठनों को समन्वित अभियान चलाने की आवश्यकता है। परिवार के मुखिया परिवार की सदस्यों को अपने पूर्वजों के गौरव व परम्पराओं के सम्बन्ध में अवश्य बताते हैं। अपने परिवारों की परम्परा और समाज का गौरव जिस धर्म के कारण है, उसके प्रति स्वाभिमान निर्माण करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। सर्व पन्थ समादर हिन्दू समाज की विशेषता है। यह विशेषता हमारी कमजोरी नहीं बननी चाहिए। जो हमारे धर्म का आदर न करें, मतान्तरित करने के लिए हमारे श्रेष्ठ धर्म को अपमानित करें, उन पन्थों का आदर करते रहना आत्मघाती सद्गुण विकृति है, कुछ और नहीं। हमारी इस सद्गुण विकृति का दुरुपयोग कर हमारे समाज और धर्म को नष्ट करने का षड्यंत्र सफल नहीं होनी चाहिए। यह जागृति आज के समय की आवश्यकता है।

आज सम्पूर्ण विश्व के मतान्तरित समाजों में अपनी जड़ों से जुड़ने का स्वयं स्फूर्त अभियान चल रहा है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। परन्तु समाज की हिचक इसमें बाधा बनती है। अपने घर में वापस आने वाले बांधवों का शेष समाज के साथ रोटी-बेटी का सम्बन्ध जल्दी स्थापित नहीं हो पाता है। कुछ वर्ष पूर्व हरियाणा के रोहतक में आयोजित सर्व खाप पंचायत ने यह निर्णय लिया था कि जिनके पूर्वज जिस गोत्र से गए थे, वापस आने पर उनका वही जाति गोत्र माना जाएगा। उसके अनुसार ही उनका रोटी-बेटी का सम्बन्ध स्थापित होगा। इस प्रकार का जागरण अब समय की मांग है।

भारत में प्रतिदिन लव जिहाद की घटनाएं प्रकाश में आती रहती हैं। कोई न कोई श्रद्धा, निकिता, निधि, अंकिता, शिवानी आदि इन दरिन्दों का शिकार होती रहती है। इनमें वे भी मामले हैं, जिनके साथ जबर्दस्ती की जाती है। ऐसी घटनाएं मुस्लिम बहुल इलाकों में ज्यादा होती हैं। लव जिहाद के वे भी प्रकरण है, जिनमें हिन्दू लड़कियों को बहला-फुसलाकर षड्यंत्र के अन्तर्गत फंसाया जाता है। ऐसे में हिन्दू संगठनों व माता-पिता की भूमिका दोगनी हो जाती है। हमें अपनी लड़कियों की सुरक्षा करनी है, तो उन्हें स्वतन्त्रता और स्वच्छन्दता में अन्तर सिखाना पड़ेगा।

आज प्रत्येक माता-पिता अपने बच्चों को अच्छा स्पर्श (good touch), बुरा स्पर्श (bad touch) का अन्तर सिखाते हैं। ऐसे में क्या यह सिखाना आवश्यक नहीं है कि मित्रता किससे करनी चाहिए और किससे नहीं? आधुनिक कहलाने या “अपने बच्चों को स्वयं निर्णय लेने की क्षमता निर्माण कर दी है” की मृग मरीचिका कितनी आत्मघाती बन चुकी है, यह लव जिहाद पीड़ित युवतियों के माता-पिता से अवश्य जानना चाहिए। इस मृग मरीचिका के कल्पना लोक का काल्पनिक आनन्द क्या हमारी बहन-बेटी के जीवन से ज्यादा महत्वपूर्ण है? सभी सन्तों, प्रवचनकारों, शिक्षाविदों, समाजिक संगठनों व जनप्रतिनिधियों को इस सम्बन्ध में अपना दायित्व समझना होगा और इस जन-जागरण को सतत रूप से चलाना होगा।

मतान्तरण को अपना मिशन या देव प्रदत्त अधिकार मानने वाले मौलवी व मिशरियों को समझना होगा कि मतान्तरण का मिशन और शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व एक साथ नहीं चल सकते। अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, सीरिया, इराक, ईरान, नागालैंड, मिजोरम में इनकी जोर-जबर्दस्ती चलती है। वहां के अल्पसंख्यक समाज के सामने समर्पण या पलायन के अलावा जीवित रहने का कोई और विकल्प नहीं बचता है। वहां इनके इस चरित्र को किसी भी दृष्टि से मानवीय नहीं कहा जा सकता। परन्तु भारत में जहां ये अल्पसंख्यक हैं, वहां इनके अनुयायियों के अतिरिक्त कोई अन्य समाज इनकी पूजा-अर्चना में बाधा डालता है? क्या इनके चर्च या मस्जिद में जाने से इन्हें कोई रोकता है? क्या उनके धर्म प्रवर्तक या उनकी आस्थाओं के बारे में दुष्प्रचार करने में कोई पहल करता है? इसके विपरीत ईसाई व मुस्लिम नेताओं के द्वारा हिन्दू देवी-देवताओं और आस्थाओं के अपमान से सम्बन्धित सामग्री सोशल मीडिया व लेखन जगत में भरी पड़ी है। क्या धार्मिक सहिष्णुता और शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व का दायित्व एकपक्षीय हो सकता है?

अवैध मतान्तरण व उसके विभिन्न प्रकार न केवल दूसरों की आस्थाओं का अपमान करते हैं, अपितु सह-अस्तित्व के लिए भी खतरे का निर्माण करते हैं। सन्तों, महात्माओं से लेकर महात्मा गांधी, डॉ भीमराव आम्बेडकर आदि ने इस पर कई बार चिन्ता भी व्यक्त की है। नियोगी कमीशन, वेणुगोपाल कमीशन और वधवा कमीशन ने भी मतान्तरण के इस दुष्परिणाम पर स्पष्ट रूप से लिखा है। संविधान सभा में भी इन परिणामों पर आशंका व्यक्त की गई, तो संसद के दोनों सदनों में भी बार-बार ये मुद्दे उठाए जा चुके हैं।

मतान्तरण को अपना अधिकार मानने वाले समाजों को भी समझना पड़ेगा कि अवैध मतान्तरण दोधारी तलवार है। यह उनके समाज के लिए भी घातक है। यह उनके अनुभव में बार-बार आया भी है। उन्हें अपनी नई पीढ़ी को उज्जवल भविष्य निर्माण करने के लिए प्रेरित करना चाहिए न कि अवैध मतान्तरण और लव जिहाद के षड्यंत्रों की अंधेरी गलियों में जाने के लिए। इन गलियों की दिशा केवल विनाश की ओर ही जाती है, विकास की ओर नहीं। विहिप अवैध मतान्तरण के इन सब पक्षों पर कई वर्षों से काम कर रही है। अब चुनौतियां बढ़ रही हैं, तो दायित्व भी बढ़ रहे हैं। सन्तों के मार्गदर्शन में और सामाजिक धार्मिक संगठनों के सहयोग से इस चुनौती पर अवश्य विजय प्राप्त करेंगे।

(लेखक विहीप के संयुक्त महामंत्री हैं)

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