रवि पाराशर
दिल्ली । भारत में कई सदियों से सनातन धर्म के अनुयायियों पर बहुआयामी प्रहार किए जा रहे हैं। समय-समय पर हिंदू समाज ऐसे हमलों का हरसंभव प्रतिकार करता रहा है। धर्म संबंधी बहुत से वैश्विक विचारों से इतर हिंदू या सनातन धर्म मूलत: कर्म या कर्तव्य और लौकिक-अलौकिक आस्था में इस तरह अंतर्निहित है कि दोनों को किसी भी स्तर पर अलग-अलग करना संभव ही नहीं है।
हिंदुओं के सनातन धर्म पर अडिग रहने का आशय व्यक्ति, समाज, राष्ट्र और अंतत: विश्व कल्याण के प्रति सुविचारित, सुसंगत मानवीय कर्तव्यों के प्रति प्रतिपल अडिग रहना ही है। सनातन समाज जीवनदायी संपूर्ण प्रकृति का समभाव से उपासक हैं। यही कारण है कि बहुत से संकट आए, बहुत से प्रहार हुए, किंतु विस्तारवादी न होते हुए भी हिंदू विचार संपूर्ण विश्व में सम्मानित हुआ। हर भारतीय को विश्वास है कि सनातन कर्तव्य और आस्था का ऊर्ध्वमुखी नैसर्गिक अटूट अस्तित्व विश्व भर में नई ऊष्मा, नई ऊर्जा, नई सुगंध के साथ सदैव पुष्पित और पल्लवित होता रहेगा।
परतंत्रता के समय हिंदुओं के दमन और मतांतरण के बहुत से दुष्चक्र चले। भारत माता के अनेक सुपूतों ने प्रतिकार स्वरूप सर्वोच्च बलिदान दिया। भारत अपनी सकारात्मक मौलिकता के कारण संपूर्ण विश्व में सद्गुरु के रूप में स्वीकार्य न रहे, इस उद्देश्य से भारतीय अस्मिता पर दिग्भ्रमित ईसाइयत और इस्लाम के हमले अब भी जारी हैं।
स्वतंत्रता के बाद भी भारत राष्ट्र की उदात्त उदारता और विशाल हृदयता की आड़ लेकर हिंदुओं को मतांतरित करने के अनेक षड्यंत्र रचे जा रहे हैं। ऐसा तब हो रहा है, जबकि भारत के संविधान में हर पूजा पद्धति के प्रति पूर्ण सम्मान व्यक्त किया गया है। वयस्क भारतीय नागरिक अपने विवेक से किसी भी धर्म को अपना सकता है। किंतु भारत में धर्म के प्रचार-प्रसार की स्वीकार्यता के संवैधानिक अभयदान का अर्थ यह नहीं हो सकता कि हिंदुओं को कन्वर्जन के लिए तरह-तरह के प्रलोभन या लालच देकर, बहला-फुसला कर स्वार्थ सिद्धि की जाए और हम मूक-दर्शक बने रहें।
भारत लोकतांत्रिक गणराज्य है, इसलिए अवैध कन्वर्जन के दानवी दुष्चक्र को विफल करने के लिए शक्तिशाली कानूनी व्यवस्था सुनिश्चित होनी चाहिए। भारतीय संविधान में विधि-व्यवस्था राज्यों का विषय है, इस कारण अवैध कन्वर्जन पर अंकुश लगाने के लिए कई राज्यों ने कानून बनाए हैं। किंतु षड्यंत्र की अंतरराष्ट्रीय व्यापकता के कारण ऐसे सभी कानून भारतीय समाज व्यवस्था की आस्थागत सहजता को क्षीण करने वाले अवैध कन्वर्जन पर प्रभावी अंकुश नहीं लगा पा रहे हैं।
अब तो ऐसे बहुत से षड्यंत्रों के कर्ताधर्ता विदेश में बैठ कर जाल बुन रहे हैं। कन्वर्जन या मतांतरण के माध्यम से भारतीयता को क्षीण करने के लिए पाकिस्तान समेत कई इस्लामिक देशों से भारत में सक्रिय षड्यंत्रकारियों को बड़ी मात्रा में फंडिंग की जा रही है। विदेश में बैठ कर भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करने के उद्देश्य से हिंदुओं का कन्वर्जन कराने के षड्यंत्र रचने और इसके लिए विदेशी फंडिंग करने वालों पर लगाम लगाने के लिए राज्यों के कानून पर्याप्त नहीं हैं। कन्वर्जन कराने वालों के तार तार आतंकवाद के दानव से भी सीधे जुड़े दिखाई देने लगे हैं। इस सारे चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए कड़ा केंद्रीय कानून ही एकमात्र विकल्प है।
विश्व चेतना का सर्वाधिक मौलिक और प्रखर प्रतीक हिंदुत्व ही है। भारतीयता के सूर्य की विलक्षणता, प्रखरता और पावनता को बनाए रखना हर हिंदू का सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक कर्तव्य है। हिंदू समाज सदैव सचेत रहा है। यही कारण रहा कि मुगल काल में राज्याश्रय में दीन-ए-इलाही जैसा धर्म प्रचलित करने के प्रयास भारतीय धरती पर धड़क कर लहलहा नहीं सके। सजग और सतर्क हिंदू समाज अपनी ओर से आज भी ऐसे दुष्चक्रों को भेदने के लिए तत्पर है, किंतु बिना वैधानिक अस्त्र-शस्त्रों के ऐसा कर पाना कठिन है।
जिन कुछ राजनैतिक स्वार्थों ने समाज के प्रति अपने कर्तव्यों की ओर से आंखें मूंद ली हैं, उन्हें समझना चाहिए कि अनैतिक और अवैध कन्वर्जन संपूर्ण भारतीय अस्मिता को धूमिल करने का ही षड्यंत्र है। इसलिए इस राष्ट्र विरोधी गतिविधि पर रोक लगाने के लिए भारत सरकार को कड़े प्रावधानों वाला मतांतरण विरोधी केंद्रीय कानून जल्द से जल्द बनाना चाहिए, ताकि अनेकता में एकता और वसुधैव कुटुंबकम् जैसी विश्व कल्याण की भावना की जड़ें हर हिंदू के मन में सदैव चेतन रह सकें और देशद्रोहियों को मुंहतोड़ उत्तर दिया जा सके।



