बालकृष्ण शर्मा नवीन एक ऐसे स्वाधीनता संग्राम सेनानी का नाम है जिन्होंने स्वतंत्रता के लिये सामूहिक संघर्ष किया, अपने लेखन से समाज को जाग्रत किया और अपनी पत्रकारिता से अंग्रेजों के अत्याचारों के विरुद्ध आवाज उठाई।
पत्रकारिता में नवीनजी के आदर्श गणेश शंकर विद्यार्थी और माखनलाल चतुर्वेदी थे । वे कानपुर के उस समाचारपत्र प्रताप से जुड़े थे जो अहिसंक और क्राँतिकारी आँदोलन दोनों का केन्द्र था । 1942 के आँदोलन के बाद उनकी धारा बदली और वे पूरी तरह साहित्य सेवा की ओर मुड़ गये । स्वतंत्रता के बाद राजनीति से जुड़े और चुनाव जीतकर पहले लोकसभा सदस्य और फिर राज्यसभा सदस्य भी बने ।
ऐसे सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार, राजनीतिज्ञ और हिंदी साहित्य सेवी बालकृष्ण शर्मा का जन्म 8 दिसंबर 1897 को मध्य प्रदेश के शाजापुर जिले के अंतर्गत गांव भयाना में हुआ था । पिता जमनादास शर्मा स्थानीय स्तर शिक्षकीय कार्य करते थे । माता राधाबाई धार्मिक और साँस्कृतिक विचारों की घरेलू महिला थीं । आर्थिक दृष्टि से परिवार सामान्य था पर वौद्धिक दृष्टि से उन्नत । नवीन जी की आरंभिक शिक्षा जिला मुख्यालय शाजापुर में हुई । 1915 में मिडिल और फिर उज्जैन से 1917 में मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की । उन्हें लेखन का शौक बचपन से था । अपने नाम के आगे “नवीन” उपनाम छात्र जीवन से ही लगाया करते थे । अनेक रचनाएँ समाचार पत्रों में भी छपीं। इसी बीच उनकी भेंट अपने समय के सुप्रसिद्ध साहित्यकार और पत्रकार माखनलाल चतुर्वेदी से हुई । माखनलाल जी मध्यप्रदेश के नर्मदापुरम के निवासी थे पर उन दिनों कानपुर के समाचार पत्र प्रताप से जुड़े हुये थे । बालकृष्ण जी के लेखन से माखनलाल जी बहुत प्रभावित हुये और अपने साथ कानपुर ले गये । यहाँ उनकी भेंट गणेशशंकर विद्यार्थी जी हुई और नवीन जी प्रताप पत्रिका के संपादकीय विभाग से जुड़ गए। “प्रताप” में काम करने के साथ उन्होंने विद्यार्थी जी की सलाह पर आगे की पढ़ाई के लिये कानपुर के क्राइस्ट चर्च कॉलेज में प्रवेश ले लिया। यह महाविद्यालय यद्यपि चर्च द्वारा संचालित था पर उसमें पढ़ने वाले विद्यार्थियों का मानस स्वाधीनता के प्रति आकर्षित था । इसका कारण कानपुर की पृष्ठभूमि थी । कानपुर स्वाधीनता के लिये एक जाग्रत नगर था । 1857 की क्रांति के समय भी कानपुर में भारी तूफान उठा था । क्रान्ति का भले दमन हो गया था लेकिन जन भावनाओं में स्वाधीनता की ललक थी । जिन दिनों नवीनजी महाविद्यालय में बी ए कर रहे थे तब असहयोग आंदोलन का आव्हान हुआ । नवीनजी ने युवाओं की टोली बनाई और आँदोलन में सहभागी बने । प्रभात फेरी निकाली, सभाएँ की और गिरफ्तार हुये और इसी के साथ पढ़ाई छूट गई। लेखन पत्रकारिता और लेखन यथावत रहा । प्रताप समाचारपत्र मानों क्राँतिकारियों का प्रमुख केन्द्र था । अपने अज्ञातवास के समय सुप्रसिद्ध क्राँतिकारी भगतसिंह ने भी छद्म नाम से प्रताप में ही काम किया था । चंद्रशेखर आजाद का भी प्रताप और कानपुर से गहरा संबंध था ।
नवीनजी का जीवन पूरी तरह स्वाधीनता आँदोलन, लेखन और पत्रकारिता केलिये समर्पित हो गया । वे साहित्यिक और राष्ट्र जागरण दोनों प्रकार का लिखते थे । नवीन जी 1921 से 1944 के बीच कुल छह बार गिरफ्तार हुये और जेल भेजे गये । तीन बार आँदोलन में और तीन बार प्रताप में अपने लेखन के लिये । तत्कालीन अंग्रेज सरकार ने उन्हें खतरनाक कैदी घोषित किया था और रिहाई के बाद निगरानी भी की गई । मार्च 1931 में प्रताप के संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी का कानपुर के दंगे में बलिदान हुआ तो उनके स्थान पर प्रताप के संपादक के रूप में नवीन जी को ही दायित्व सौंपा गया । 1942 के आँदोलन के बाद उनकी धारा बदली और स्वयं को पूरी तरह साहित्य सेवा के लिये ही समर्पित कर दिया । किन्तु सार्वजनिक जीवन से बहुत दूर न रह सके । स्वतंत्रता के बाद उन्होंने कांग्रेस की विधिवत सदस्यता लेकर सक्रिय राजनीति में कदम रखा । 1952 में देश का पहला चुनाव जीतकर लोकसभा पहुँचे। इस चुनाव में उन्होंने समाजवादी पार्टी के श्री चन्द्रशेखर को हराया था । 1957 में राज्यसभा के लिए चुने गये और मृत्यु पर्यन्त राज्यसभा सदस्य रहे। 1955 में राजभाषा आयोग के सदस्य बने और सांस्कृतिक प्रतिनिधिमंडल के सदस्य के रूप में अनेक विदेश यात्राएँ कीं।
नवीनजी कहीं भी रहे हों, प्रताप के संपादकीय विभाग में, जेल में या फिर संसद में। उनका लेखन अनवरत रहा । अपने छात्र जीवन में समसामायिक रचनाएँ लिखते तो युवा अवस्था में देशभक्ति की और जीवन के उत्तरार्द्ध में पूरी तरह सामाजिक और साहित्यिक विषयों पर ही कलम चली । उनकी कुमकुम , रश्मिरेखा , अपलक , क्वासी , विनोबा स्टावन और उर्मिला जैसी रचनाएँ हिन्दी साहित्य की धरोहर बनीं । प्रताप के बाद वे साहित्यिक हिन्दी पत्रिका प्रभा के संपादक भी रहे । 1960 में भारत सरकार ने उन्हें तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया । इसी वर्ष 29 अप्रैल 1960 को उनका निधन हो गया । कुछ कविताओं का प्रकाशन तो उनकी मृत्यु के बाद ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशन किया गया । बालकृष्ण शर्मा गद्य रचनावली पाँच खंडों और बालकृष्ण शर्मा काव्य रचनावली तीन खंडों में प्रकाशित हुई । भारत सरकार ने वर्ष 1989 में उनकी स्मृति एक स्मारक टिकट जारी किया । उनका कर्मक्षेत्र उत्तर प्रदेश था इसलिए उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान ने उनके सम्मान में “बाल कृष्ण शर्मा नवीन पुरस्कार” की स्थापना की है। उनका जन्म मध्यप्रदेश के शाजापुर में हुआ था । मध्यप्रदेश सरकार ने शाजापुर में शासकीय बालकृष्ण शर्मा नवीन स्नातकोत्तर महाविद्यालय की स्थापना की ।