चंडीगढ़। पंजाब में आई भयंकर बाढ़ ने पंजाब सरकार के एक गलत फैसले को उजागर किया है, जो उसकी अदूरदर्शिता और राजनीतिक हठ को दर्शाता है। भाखड़ा बांध प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) ने अप्रैल 2025 में बांध से पानी छोड़ने की सलाह दी थी ताकि बाढ़ का खतरा टाला जा सके। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी थी कि बांध में पानी का स्तर खतरनाक हो सकता है। लेकिन पंजाब सरकार ने इस सलाह को ठुकराते हुए पानी को सिर्फ अपने राज्य के लिए इस्तेमाल करने की मांग की और हरियाणा व राजस्थान के साथ साझा करने से इनकार कर दिया। एक मंत्री ने तो बांध पर कब्जे की धमकी तक दे डाली।

इस गलत फैसले का नतीजा अब सामने है। भारी बारिश के बाद बांध से 20,000 क्यूसेक से अधिक पानी छोड़ना पड़ा, जिससे पंजाब के कई इलाके बाढ़ की चपेट में आ गए। अप्रैल में बीबीएमबी ने केवल 4,300 क्यूसेक पानी छोड़ने का सुझाव दिया था, लेकिन सरकार के दबाव में यह नहीं हुआ। अब बाढ़ ने फसलों को तबाह कर दिया, घर डूब गए, और लोग विस्थापन का दर्द झेल रहे हैं। अनुमान के मुताबिक, अकेले फसलों का नुकसान 50,000 करोड़ रुपये से अधिक का है।
पंजाब सरकार का यह रवैया उसके दोहरे चरित्र को दर्शाता है। एक तरफ वह किसानों और जनता की भलाई की बात करती है, दूसरी तरफ विशेषज्ञों की सलाह को नजरअंदाज कर अपने ही लोगों को संकट में डाल दिया। यह फैसला न केवल तकनीकी भूल थी, बल्कि राजनीतिक अहंकार का भी परिणाम था। भगवंत मान सरकार की यह नादानी पंजाब की जनता को भारी पड़ रही है।
यह घटना सिखाती है कि प्रशासन को भावनाओं और राजनीति से ऊपर उठकर तर्क और विज्ञान पर आधारित फैसले लेने चाहिए। यदि सरकार समय पर विशेषज्ञों की सलाह मान लेती, तो शायद यह तबाही टाली जा सकती थी। अब, जब हालात बेकाबू हो चुके हैं, सरकार को अपनी गलती का एहसास हो रहा होगा, लेकिन इसका खामियाजा जनता भुगत रही है। भविष्य में ऐसे फैसलों से बचने के लिए दूरदर्शिता और जिम्मेदारी जरूरी है।