कोलकाता की गलियों में राम नवमी की धूम मच रही थी। हिंदू युवा भगवा झंडे लहराते, मंदिरों की घंटियां बज रही थीं। तभी, मुरशिदाबाद के बेल्डंगा में एक पोस्टर चिपका मिला—’बाबरी मस्जिद का शिलान्यास 6 दिसंबर को’। यह घोषणा तृणमूल कांग्रेस के विधायक हुमायूं कबीर की थी। “तीन साल में मस्जिद पूरी हो जाएगी, मुस्लिम नेता आएंगे,” उन्होंने कहा। दूर अयोध्या में राम मंदिर की भव्यता का जश्न मनाते हिंदू समाज के लिए यह चुभन थी। बीजेपी नेता सुकंता मजुमदार ने इसे “हिंदुओं के लिए खुली धमकी” कहा। बिहार के डिप्टी सीएम विजय सिन्हा ने चेतावनी दी, “भारत माता के बच्चे जाग चुके हैं, बाबर का कोई समर्थक अब बाबरी नहीं बना सकेगा।”
यह घटना 2025 की है, लेकिन 2026 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों की नींव इसी पर रखी जा रही है। ममता बनर्जी की तृणमूल सरकार पर मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोप सालों से लगते रहे हैं। अब ‘पश्चिम बंगाल’ को ‘पश्चिम बांग्लादेश’ कहना बीजेपी का नया हथियार बन गया है। कारण? अवैध घुसपैठ, जनसांख्यिकीय बदलाव और हिंदू असुरक्षा। बीजेपी की नजर में, यह तुष्टीकरण बंगाल को ‘ईस्ट पाकिस्तान’ की तरह विभाजित करने की साजिश है। 1947 में बंगाल का धार्मिक आधार पर बंटवारा हुआ था—पूर्वी हिस्सा मुस्लिम बहुल ईस्ट बंगाल (बाद में बांग्लादेश) बना, पश्चिमी हिस्सा हिंदू बहुल वेस्ट बंगाल। आज, बीजेपी दावा करती है कि ममता की नीतियां उसी इतिहास को दोहरा रही हैं।
कबीर का बयान कोई पहला उदाहरण नहीं। तृणमूल का मुस्लिम तुष्टीकरण लंबे समय से विवादों में रहा है। 2012 में, ममता सरकार ने 77 मुस्लिम समुदायों को OBC कोटा में शामिल किया—इनमें से 75 शुद्ध मुस्लिम थे। कलकत्ता हाईकोर्ट ने इसे “अल्पसंख्यक तुष्टीकरण” करार देते हुए रद्द कर दिया।
बीजेपी नेता सुवेंदु अधिकारी ने कहा, “OBC का मतलब अब ‘वन साइडेड बेनिफिशरी’ हो गया—केवल मुसलमानों के लिए।” इससे पहले, इमामों को 2500 रुपये मासिक भत्ता दिया गया, जबकि हिंदू पंडितों को सिर्फ 1000। सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक ठहराया। ममता ने खुद 2019 में कहा, “मैं मुसलमानों का तुष्टीकरण करती हूं, और सौ बार करूंगी। दूध देने वाली गाय की लात खाने को तैयार हूं।” फुरफुरा शरीफ दावत-ए-इफ्तार में उनकी मेजबानी, वक्फ एक्ट विरोध में मुसलमानों को “दीदी आपकी संपत्ति की रक्षा करेगी” का आश्वासन—ये सब तुष्टीकरण के प्रमाण हैं।
‘पश्चिम बांग्लादेश’ की उपाधि का आधार जनसांख्यिकीय आंकड़े हैं। 2011 की जनगणना में मुसलमान 27% थे, लेकिन अब अनुमान 30% से ऊपर। बीजेपी का आरोप है कि बांग्लादेश से अवैध घुसपैठ ममता सरकार की आंखें बंदी से बढ़ी। 2025 में SIR (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन) अभियान में 10 लाख नए वोटर जोड़े गए—जिनमें से अधिकांश मुस्लिम। बीजेपी अध्यक्ष समिक भट्टाचार्य ने कहा, “यह चुपचाप जनसांख्यिकीय आक्रमण है। 2026 का चुनाव बंगाल और बंगाली हिंदुओं के अस्तित्व का फैसला करेगा।” मुरशिदाबाद में Waqf एक्ट विरोध के दौरान हिंसा हुई—तीन मौतें, 150 गिरफ्तारियां। बीजेपी ने इसे “इस्लामिस्ट भीड़” कहा, जबकि TMC ने “बीजेपी की साजिश”। संदेशखाली हिंसा, जहां हिंदू महिलाओं पर अत्याचार हुए, ने हिंदू मतदाताओं को झकझोर दिया।
बीजेपी के लिए यह सुनहरा अवसर है। 2024 लोकसभा में 38.73% वोट शेयर के साथ, वे 2026 में 7-8% की बढ़ोतरी चाहते हैं। हिंदू ध्रुवीकरण उनकी रणनीति है—राम मंदिर जश्न, हनुमान जयंती पर भगवा झंडे। सुवेंदु अधिकारी कहते हैं, “ममता हिंदू-विरोधी हैं, बंगाल को बांग्लादेश बना देंगी।” RSS की घासफूस मजबूत हो रही है, गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों (ईसाई, बौद्ध) को लुभाया जा रहा। लेकिन चुनौती बाकी: मुस्लिम 30% वोट TMC के पक्के हैं, 100 सीटों पर वे निर्णायक। बीजेपी को 150+ सीटें चाहिए, जो TMC की बूथ-स्तरीय ताकत से मुश्किल।
फिर भी, कबीर का बयान बीजेपी का ट्रंप कार्ड है। यह हिंदू असंतोष को भुनाएगा—जैसे हरियाणा, महाराष्ट्र में हुआ। ममता का ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ (मंदिर दर्शन, दुर्गा पूजा) जवाब है, लेकिन घुसपैठ और हिंसा के सवालों से बचना मुश्किल। 2026 में बंगाल ‘NRC चुनाव’ से ‘SIR चुनाव’ बनेगा। हिंदू जागेंगे, बीजेपी मजबूत। ममता की कुर्सी डगमगाएगी। बंगाल की मिट्टी में राम का नाम गूंजेगा, बाबर का नहीं। क्या यह ‘पश्चिम बांग्लादेश’ को ‘मां भारती का अभिन्न अंग’ बना देगा? समय बताएगा, लेकिन बीजेपी का संदेश साफ: “हम बंगाल बचाएंगे।”



