यह फोटो संजीव चन्दन के सौजन्य से उपलब्ध हुआ. बांग्लादेश की कल तक प्रधानमंत्री रही शेख हसीना के सरकारी आवास को प्रदर्शनकारियों ने अपने कब्जे में लिया और जम कर लूट-पाट मचाई. इस फोटो में एक ‘क्रांतिकारी-आंदोलनकारी ‘ का धज देख सकते हैं. झमाठ अरबी स्टाइल की दाढ़ी, हरे रंग का ड्रेस और … गौर कीजिए हाथों में क्या लहरा रहा है वह? यह शेख हसीना का ब्रा है. 76 वर्षीया हसीना इस छोकरे की दादी नहीं, तो माँ की उम्र की तो जरूर होंगी. देखिए किस उन्माद के साथ यह उन्हें लहरा रहा है.
मैंने फ्रांसीसी क्रांति के किस्से और ब्योरे भी पढ़े हैं. उस पर आधारित कुछेक फ़िल्में देखी है. रानी मेरी अन्तोइनोट के कटे सिर का खिलौना रूप भी वहां प्रचलित था. यह राजतन्त्र और उस शाही परंपरा से जनता के बड़े हिस्से के नफरत का द्योतक था.
हमने अपने देश में भी ऐसे आंदोलन देखे हैं. 1977 में इंदिरा गाँधी पटना के गाँधी मैदान में बोल रही हैं और चारों तरफ से उन्हें गंदी गलियां दी जा रही है. बीच में काली झंडी है, इंदिरा गाँधी .. है. और ‘ रूसी बिल्ली दिल्ली छोडो, इटली जाकर होटल खोलो’ जैसे नारे.
1978 में कर्पूरी ठाकुर ने जब मुंगेरी लाल आयोग की सिफारिशें लागू की, जिस में पिछड़ेवर्गों केलिए आरक्षण का प्रावधान था, तब ‘ जेपी आंदोलनकारी ‘ सडकों पर आ गए. कर्पूरी ठाकुर के आवास में लोग घुस गए. अफरातफरी तक बात आ कर रह गई ,क्योंकि कर्पूरी ठाकुर के समर्थक भी जुट गए.
फिर वीपी सिंह का हाल देखा 1990 में. आरक्षण विरोधियों ने दिल्ली घेर लिया और नागरिक जीवन को अपने कब्जे में ले लिया. दिल्ली शहर में भी उनके सहयोगी उनका इंतज़ार कर रहे थे. प्रेस-फोटोग्राफर तो उनके थे ही.
तो बहरहाल इस फोटो को देखिए. यह आंदोलनकारियों का चरित्र खोलने केलिए काफी है. उनकी नेता लेडी जिया उल हक़ को सेना ने जेल से बाहर कर दिया है. चीन और पाकिस्तान की बांछें खिल रही हैं. जिन लोगों ने बंगलादेश मुक्ति संग्राम के समय पाकिस्तान का साथ दिया था उनकी बल्ले-बल्ले है. भारत में उनके कॉउंटरपार्ट भी खुश हैं.
आप कहाँ है तय कीजिए.
(फेसबुक से साभार)