बात सिंदूर के नाम पर पैदा किए जा रहे विवाद की

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कोई पिता या बड़ा भाई बनकर अपनी बेटी या छोटी बहन के लिए सिंदूर भेज रहा है तो इतना शोर क्यों मचाया जा रहा है?

भारतीय संस्कृति में, खासकर हिंदू विवाह परंपराओं में, सिंदूर को अक्सर ससुराल की तरफ से दुल्हन को भेजा जाता है। यह आमतौर पर विवाह के समय या उसके बाद की रस्मों में होता है, जैसे कि विदाई के बाद या गृह प्रवेश के दौरान। सिंदूर को सुहागिन स्त्री के लिए पति की लंबी उम्र और वैवाहिक जीवन की खुशहाली का प्रतीक माना जाता है।

कुछ समुदायों में, ससुराल पक्ष की ओर से सिंदूर, चूड़ियाँ, कपड़े और अन्य सुहाग की सामग्री दुल्हन को दी जाती है, जिसे “सिंदूर दान” या “सुहाग सामग्री” के रूप में जाना जाता है। यह प्रथा क्षेत्र और समुदाय के अनुसार थोड़ी भिन्न हो सकती है।

जबसे बीजेपी ने घर घर सिंदूर पहुंचाने के अभियान का संकल्प लिया है, इससे सबसे अधिक समस्या उन्हें हो रही है, जो नए नए कन्वर्टेड हुए है या जिन्होंने क्रिश्चियन मां या क्रिश्चियन पत्नी से सिंदूर का महत्व समझा है।

वैसे यह देश एक दूसरे की परंपराओं को सम्मान देकर महान बना है लेकिन जिन्हें अपनी पहचान को लेकर ही डाउट हो अथवा बच्चे का नाम रखते हुए पिता का सरनेम लगाना है या क्रिश्चियन ससुर का सरनेम लगाना है तक की समझ ना हो, वे सिंदूर का महत्व क्या समझेंगे और क्या समझा पाएंगे?

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आशीष कुमार अंशु

आशीष कुमार अंशु

आशीष कुमार अंशु एक पत्रकार, लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता हैं। आम आदमी के सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों तथा भारत के दूरदराज में बसे नागरिकों की समस्याओं पर अंशु ने लम्बे समय तक लेखन व पत्रकारिता की है। अंशु मीडिया स्कैन ट्रस्ट के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं और दस वर्षों से मानवीय विकास से जुड़े विषयों की पत्रिका सोपान स्टेप से जुड़े हुए हैं

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