बंगाल नहीं बंकिम ने भारत के लिए लिखा माँ

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मनोज श्रीवास्तव

भोपाल । मुझे मालूम था कि यह तर्क लाया जाएगा कि यह बंगाल का गीत है, भारत का नहीं क्योंकि सप्तकोटि जनसंख्या तत्कालीन बंगाल की थी।

पर बंकिमचंद्र ने खुद स्पष्ट किया था कि माता बंगाल नहीं, भारत है। बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने १८८२ में आनन्दमठ का दूसरा संस्करण प्रकाशित करते समय प्रस्तावना में लिखा: “यह समस्त भारतवर्ष की माता के लिए लिखा गया है।” (स्रोत: आनन्दमठ, १८८२ संस्करण, पृष्ठ ४–५)

गीत में एक भी शब्द “बंगाल विशिष्ट नहीं है
पूरा गीत पढ़ लीजिए – “वन्दे मातरम्, सुजलां सुफलां, मलयजशीतलाम्, शस्यशामलाम्…” – कहीं बंगाल, गंगा, पद्मा, सुंदरवन, कुछ नहीं।

बंकिम ने “सप्तकोटि” काव्य अलंकार के लिए लिखा, जैसे वेदों में सहस्रशीर्ष लिखा जाता है, न कि सटीक गिनती के लिए)।

श्री अरविंद ने १९०७ में लिखा था:
“बंकिम ने बंगाल को भारत का प्रतीक बनाया है। जिस तरह गीता में कृष्ण अर्जुन के माध्यम से समस्त मानवता को उपदेश देते हैं, उसी तरह बंकिम ने बंगाल के माध्यम से समस्त भारत को जागृत किया।”
(बंदे मातरम् अखबार, ११ अप्रैल १९०७)

रवीन्द्रनाथ ने १९१७ में Nationalism पुस्तक में लिखा:
“बंकिम की माता बंगाल की नहीं, सम्पूर्ण भारत की माता है। वह हिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक फैली हुई है।”

नेताजी ने १९४३ में सिंगापुर में आजाद हिंद सरकार बनाई और पूरे छह छंद वाले मूल वन्दे मातरम् को ही राष्ट्रगान घोषित किया। वहाँ बंगाली, तमिल, पंजाबी, मराठी, मलयाली सब सैनिक एक साथ पूरे गीत को गाते थे। क्या नेताजी बंगाल को छोड़कर पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया में सिर्फ बंगाल का गीत गवाते?

कांग्रेस ने १८९६ से ही इसे राष्ट्रीय सलामी गीत माना
• १८९६ कलकत्ता अधिवेशन (रहीमतुल्ला सयानी की अध्यक्षता) – पहली बार वन्दे मातरम् गाया गया।
• १९०५ बनारस अधिवेशन – औपचारिक रूप से “राष्ट्रीय सलामी गीत” घोषित।
• १९०६ कलकत्ता अधिवेशन (दादाभाई नौरोजी) – हर सत्र की शुरुआत वन्दे मातरम् से।
• १९१५ बॉम्बे अधिवेशन – गांधीजी ने पहली बार सुना और तुरंत कहा: “यह गीत मेरी रगों में दौड़ गया।”

ब्रिटिश सरकार ने इसे “राष्ट्रीय खतरा” माना और प्रतिबंधित किया
• १९०८ में वन्दे मातरम् गाने-बजाने पर ६ महीने तक की जेल।
• १९३१ में गांधीजी गिरफ्तार हुए तो जेल में भी वन्दे मातरम् गाते रहे।
• १९४२ भारत छोड़ो आंदोलन में लाखों लोग गिरफ्तार हुए सिर्फ इसलिए कि वे वन्दे मातरम् बोल रहे थे। क्या ब्रिटिश सरकार बंगाल के किसी प्रादेशिक गीत से इतना डरती?

डॉ. राजेंद्र प्रसाद (सभापति) ने प्रस्ताव रखा:
“यह सभा निर्णय करती है कि भारत का राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ होगा तथा ‘वन्दे मातरम्’ को राष्ट्रगान के समकक्ष सम्मान प्राप्त होगा। यह गीत स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक रहा है और इसे समान दर्जा दिया जाता है।”
(संविधान सभा वाद-विवाद, खंड १२, पृष्ठ ९९३–९९४)
यह प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हुआ। आज भी भारत सरकार के सभी आधिकारिक दस्तावेजों में लिखा रहता है।

पूरे भारत में इसकी स्वीकार्यता के प्रमाण हैं :
• तमिलनाडु में सुब्रह्मण्य भारती ने १९१० में तमिल अनुवाद किया और गाया।
• पंजाब में लाला लाजपत राय और भाई परमानंद ने पंजाबी में गवाया।
• महाराष्ट्र में लोकमान्य तिलक और विनायक दामोदर सावरकर ने मराठी में प्रचार किया।
• केरल में वक्खम अब्दुल खादर और केलप्पन ने मलयालम में गाया।
• उत्तर प्रदेश में पंडित मदन मोहन मालवीय और गोविंद वल्लभ पंत हर सभा में गवाते थे।
क्या ये सब नेता बंगाल का प्रादेशिक गीत गाकर अपना समय बर्बाद कर रहे थे?

(लेखक राज्य निर्वाचन आयुक्त, मध्यप्रदेश हैं)

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