रवीश जी,
आप मेरा शो इतना ध्यान से देखते हैं।
बस एक हीं शिकायत है कि आप तो चुनावी निकलें, मैं सालों से ठेठ देसी बोली/भाषा में अपने इसी शो के जरिए बिहार के खेत-खलिहान,सड़कों और गलियों में लोगों से हर मुद्दे पर बतियाती रहती हूँ। आपसे और आपकी Research team से ये उम्मीद नहीं थी। पता नहीं,आपकी बिहार चुनाव के दौरान हीं मेरे शो पर नजर पड़ी। चलिए,देर से हीं आएं..मेरा शो नियमित रूप से देखते रहिए।
बाकी आपने बहुत पहले एक बार मेरे एक performance पर 👇 सराहना भरे शब्द लिखे थें तो मुझे लगा था कि आपकी शख्सियत Progressive सोच की है और महिलाओं को आगे बढ़ते देख, आपको अच्छा लगता है। लेकिन अफसोस कि आप भी उसी पुरूषवादी मानसिकता से ग्रसित हैं, जिस मानसिकता से पान की दुकान पर सिगरेट फूंकते लड़के महिलाओं को ‘वस्तु’ समझ कर टिप्पणी करते हैं।
सालों से मुझे इसी “भाभीजी” नाम से स्नेह और सम्मान मिला। छोटे बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक किसी ने कभी भी मेरे साथ कोई गंदा मजाक या दुर्व्यवहार नहीं किया। शायद,इसका कारण यह है कि हमारे बिहार और हमारी भारतीय संस्कृति में ‘भाभी’ की तुलना सीता से की गई है। माँ और स्नेह की प्रतिमूर्ति के रूप में देखा गया है।
अंत में एक बार फिर से बिहार की इस महिला पत्रकार “भाभीजी” की तरफ से असीम शुभकामनाएं।
बाकी आप इसी तरह मेरा शो देखते रहिये और राहुल गाँधी को शांति का ‘नोबेल पुरस्कार’ दिलाने के लिए अपनी कड़ी मेहनत जारी रखिये।
नेहा निहारिका चौहान