मधुबनी। सामा चकेवा को लेकर मिथिला एवं बिहार समेत मिथिला के लोग जहाँ है मनाते है इस पर्व के पीछे भगवान श्री कृष्ण उनकी पुत्री सामा और पुत्र चकेवा की कहानी है शैलेन्द्र कुमार मिश्रा अध्यक्ष अंतर्राष्ट्रीय मैथिली परिषद एवं RWA सेक्टर 82 नोएडा ने बताया कि इसकी शुरुआत छठ के पारण के दिन से हो जाती है। सभी अपने अपने घर में इस दिन से सामा चकेवा बनाना शुरु कर देती हैं। जो भी इस दिन बना नहीं पाती हैं वो देवउठान एकादशी के दिन बनाती हैं। जिसमें सामा, चकेवा, वृंदावन, चुगला, सतभैया, पेटी, पेटार आदि मिट्टी से बनाया जाता है। उस दिन से नियमित रात्रि के समय आंगन में बैठ कर खूब खेलती हैं, नियमित गीत गाती हैं। जिसमें भगवती गीत, ब्राम्हण गीत और अंत में बेटी विदाई का समदाउन गाती हैं।
यह सिलसिला कार्तिक पूर्णिमा के दिन तक चलता है। उसके बाद कार्तिक पूर्णिमा की रात में सामा का विसर्जन किया जाता है। जिसमें महिला के संग संग घर के पुरुष वर्ग भी शामिल रहते हैं।ऐसा मान्यता है कि सामा भगवान श्री कृष्ण की पुत्री थी जो कि प्रत्येक दिन वृंदावन के जंगल में खेलने जाया करती थी। एक दिन चुगला नाम का एक व्यक्ति श्री कृष्ण को झूठा बोल दिए कि आपकी बेटी कोई साधु से मिलने जाती है। इस पर भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी बेटी यानी सामा को श्राप दे देते हैं पक्षी बनने का। अब वो सामा रूपी पक्षी वृंदावन के जंगल में ही रहती थी।एक दिन सामा के भाई चकेवा को पता चला जो मेरी बहन को चुगला ने चुगल्पन कर के श्राप दिलवा दिया तो वो भी उसी दिन तपस्या में बैठ गया और भगवान को प्रसन्न किया। फिर भगवान ने वर मांगने को कहा तो वे अपनी बहन को वापस मांग लिया। इसलिए इस पर्व को भाई बहन के प्रेम और स्नेह के रूप में मनाया जाता है। हरेक बहन अपने भाई की दीर्घायु की कामना करती हैं।सामा चकेवा का पर्व गांव में होता ही है। हमलोग शहर में भी मनाते हैं।
आप सभी को भाई बहन के प्रेम और विश्वास का पर्व सामा चकेवा की हार्दिक बधाई



