पटना। बिहार में हाल के महीनों में अपराध की घटनाओं, खासकर हत्याओं में उल्लेखनीय वृद्धि ने राज्य की कानून-व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। विपक्षी नेता तेजस्वी यादव द्वारा बार-बार यह दावा किया जा रहा है कि नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार अपराध नियंत्रण में पूरी तरह विफल रही है। इसके साथ ही, कुछ लोग यह आरोप लगा रहे हैं कि अधिकांश अपराधी ‘माई’ (मुस्लिम-यादव) समीकरण से प्रेरित होकर बेखौफ हो रहे हैं, और उन्हें यह संदेश मिल रहा है कि तेजस्वी यादव के सत्ता में आने की संभावना के कारण अपराध करने का ‘लाइसेंस’ मिल गया है। दूसरी ओर, नीतीश कुमार की खराब सेहत और कथित कमजोर नेतृत्व को भी इस अराजकता का कारण बताया जा रहा है। इस जटिल स्थिति में, बिहार की जनता सबसे अधिक प्रभावित हो रही है, जो भय और असुरक्षा के माहौल में जीने को मजबूर है।
अपराध का बढ़ता ग्राफ और आंकड़े
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, बिहार में 2015 से 2022 तक हत्या के मामले उत्तर प्रदेश के बाद दूसरे स्थान पर रहे हैं। 2025 के पहले छह महीनों में ही 1,379 हत्याएं दर्ज की गईं, जिनमें व्यक्तिगत रंजिश (37.8%) और संपत्ति विवाद (10.2%) प्रमुख कारण रहे। हाल की घटनाएं, जैसे पटना में एक निजी अस्पताल में कुख्यात अपराधी की हत्या, सीतामढ़ी में व्यवसायी की गोलीबारी, और समस्तीपुर में सरपंच की हत्या, यह दर्शाती हैं कि अपराधी बेखौफ होकर खुले आम वारदातों को अंजाम दे रहे हैं। तेजस्वी यादव ने दावा किया है कि केवल सात दिनों में 97 हत्याएं हुईं, जो कानून-व्यवस्था की बदहाली को उजागर करता है।
माई समीकरण और अपराध का कथित संबंध
‘माई’ समीकरण, यानी मुस्लिम और यादव मतदाताओं का गठजोड़, लंबे समय से राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) की ताकत रहा है। कुछ लोग यह आरोप लगाते हैं कि इस समीकरण से जुड़े अपराधी बिहार में बढ़ते अपराधों के लिए जिम्मेदार हैं। यह धारणा इसलिए भी बल पकड़ रही है क्योंकि तेजस्वी यादव की ‘माई-बहिन मान योजना’ जैसे वादों ने उनके समर्थन आधार को और मजबूत करने की कोशिश की है। हालांकि, यह आरोप तथ्यपरक कम और राजनीतिक ज्यादा लगता है। अपराध के कारणों में व्यक्तिगत रंजिश और संपत्ति विवाद प्रमुख हैं, न कि किसी विशेष समुदाय का एकमात्र प्रभाव। फिर भी, यह धारणा कि तेजस्वी के संभावित सत्ता में आने से अपराधियों के हौसले बढ़ रहे हैं, बिहार की जनता में भय और अविश्वास पैदा कर रही है। यह स्थिति 1990 के दशक के ‘जंगलराज’ की यादें ताजा करती है, जब लालू-राबड़ी शासन में अपराध चरम पर था।
नीतीश कुमार की जिम्मेदारी और कमजोर छवि
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर अपराध नियंत्रण में नाकामी के गंभीर आरोप लग रहे हैं। उनकी खराब सेहत और कथित ‘सुषुप्त अवस्था’ को लेकर विपक्ष और सहयोगी दल, जैसे चिराग पासवान, भी सवाल उठा रहे हैं। नीतीश की उम्र और स्वास्थ्य को लेकर चर्चाएं उनकी नेतृत्व क्षमता पर संदेह पैदा कर रही हैं। तेजस्वी यादव ने आरोप लगाया है कि सरकार ‘रिमोट कंट्रोल’ से चल रही है और भ्रष्ट अधिकारी व बीजेपी के करीबी नेता बिहार को लूट रहे हैं। नीतीश सरकार का दावा है कि अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा रही है, लेकिन बार-बार होने वाली आपराधिक घटनाएं इस दावे को कमजोर करती हैं।
जनता की पीड़ा और राजनीतिक ध्रुवीकरण
बिहार की जनता इस बढ़ते अपराध के माहौल में सबसे अधिक प्रभावित है। शिक्षक, डॉक्टर, व्यवसायी, और आम नागरिकों की हत्याएं और गैंगरेप जैसी घटनाएं जनता में भय पैदा कर रही हैं। यह स्थिति न केवल कानून-व्यवस्था का सवाल है, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक ध्रुवीकरण को भी बढ़ावा दे रही है। अपराध की घटनाएं किसी खास समुदाय को निशाना बनाती दिखती हैं, तो यह वोटबैंक की राजनीति को और जटिल बनाती है। तेजस्वी यादव को लगता है कि नीतीश सरकार की कमजोरियां उन्हें सत्ता दिला सकती हैं, लेकिन ‘जंगलराज’ की छवि उनके लिए भी चुनौती बनी हुई है।
बिहार में बढ़ते अपराध और ‘माई’ समीकरण को जोड़ने का प्रयास राजनीतिक रणनीति का हिस्सा हो सकता है, लेकिन यह समस्या की जड़ को नहीं दर्शाता। अपराध के पीछे सामाजिक, आर्थिक और प्रशासनिक कारण ज्यादा प्रभावी हैं। नीतीश कुमार की सरकार को अपनी जिम्मेदारी स्वीकार कर सख्त कदम उठाने होंगे, वहीं तेजस्वी यादव को भी ‘जंगलराज’ की छवि से मुक्त होने के लिए ठोस नीतियां पेश करनी होंगी। बिहार की जनता को इस राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप से परे एक सुरक्षित और समृद्ध राज्य की आवश्यकता है।