डॉ. प्रवेश चौधरी
आज देश में एक बार पुनः राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को लेकर खूब चर्चा हो रही है। आज भी देश के कमतर बुद्धि एवं वामी गैंग के साथी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को निशाना बनाने से नही चूक रहे है। बार-बार संघ को लेकर मीडिया डिबेट में प्रश्न करने लगते है की संघ का आज़ादी की लड़ई में क्या? योगदान है, तो कभी कहते है संघ तो देश के तिरंगे का ही सम्मान नही करता। ऐसे सब में देश कई राजनीतिक दलो के नेता भी ऐसे ही कुछ प्रश्न खड़े करते है कभी यही दल डॉ०अम्बेडकर और स्वतंत्रता की लड़ाई में उनके योगदान को चिन्हित ही नही करते थे, उन्हें केवल ओर केवल दलित नेता के रूप में दिखाते थे।
आज वही दल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के योगदान पर प्रश्न खड़े कर रहे है। ऐसे में मुझे जैसे कार्यकर्ता के मन में आता है की समाज को ये ज्ञात हो की संघ ने आज़ादी की लड़ाई में भी बढ़-चढ़ कर भाग लिया वही तिरंगे का सम्मान भी उस दिन से करत आ रहा जब से कांग्रेस ने इस तिरंगे को मान्यता दी थी। हम सभी जानते है की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है देश और समाज में सबसे ज़्यादा स्वाकरिता भी संघ और उसके स्वयंसेवकों की ही है। 1925 में जिस संघ का बीज रोपण ही भारत राष्ट्र को पुनः उसके विश्व में गुरु के रूप स्थापित करना था, जिसके एक-एक कार्यकर्ता का ध्येय समरस भारत सशक्त भारत निर्माण हो ऐसा ही हो, जो सदैव संघ गीत गुन गुनाते हुए कहता है की “देश हमें देता है सब कुछ हम भी तो कुछ देना सीखे”। जो कार्यकर्ता सदैव संघ की प्रार्थना में कहता “ नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमेत्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोहम्।महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे। पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते” इसके अर्थ को देखे तो ज्ञात होता है की एक संघ कार्यकर्ता प्रार्थना में करता क्या है।
हे वात्सल्यमयी मातृभूमि, तुम्हें सदा प्रणाम! इस मातृभूमि ने हमें अपने बच्चों की तरह स्नेह और ममता दी है। इस हिन्दू भूमि पर सुखपूर्वक मैं बड़ा हुआ हूँ। यह भूमि महा मंगलमय और पुण्यभूमि है। इस भूमि की रक्षा के लिए मैं यह नश्वर शरीर मातृभूमि को अर्पण करते हुए इस भूमि को बार-बार प्रणाम करता हूँ। अगली ही पंक्ति में कहा जाता है की “त्वदीयाय कार्याय बध्दा कटीयम्” आपके ही कार्य के लिए हम कटिबद्ध हुवे है। जिस संगठन का निर्माण ही भारत की पुरातन हिंदू संस्कृति को पुन: जागृत कर भारत के ज़न मानस के भीतर राष्ट्र गौरव का जागरण कर एक सशक्त राष्ट्र का निर्माण करना भला हो वो संगठन कैसे देश की आज़ादी की लड़ाई से अपने को भिन्न कर सकता है। हम देखे की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार अपने बाल्य काल से ही एक राष्ट्र भक्त थे। उनके विद्यालय में ब्रिटेन की रानी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में बटने वाले मिठाई को लेने से माना कर देते है, जिसके लिए उन्हें विद्यालय प्रबंध समिति द्वारा दंड भी दिया जाता है। अपनी युवा अवस्था में कलकता में पढ़ते हुए वे अनुशीलन समिति के सक्रिय सदस्य है, अंग्रेज़ी पुलिस उन पर नज़र रखे है। महाराष्ट्र में वे कांग्रेस के बड़े नेता है नागपुर में हो रहे कांग्रेस अधिवेशन की प्रबन्ध समिति में है वही स्वागत समिति के सचिव है।
1921 में हेडगेवार असहयोग आंदोलन में शामिल हुए जिस कारण उन्हें एक वर्ष के करावास में रहना पड़ा। जब हेडगेवार जी ज़ैल से निकल कर आए तो तमाम कांग्रेस नेताओ ने उनका स्वागत किया, उनके स्वागत हेतु बुलाई सभा में मोतीलाल नेहरू जैसे दिग्गज कांग्रेसी नेता भी थे। ज़ैल में किए उनके चिंतन ने उनके मन में ये विचार जागृत किया की बिना संगठित हिन्दू शक्ति के भारत सशक्त नही हो सकता। हमारी प्रतंत्रता का कारण हमारा एक संगठित शक्ति ना होना है,इस लिए 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की गई।
हेडगेवार जी जहाँ एक और संघ की शाखा के माध्यम से युवा शक्ति के बीच राष्ट्र जागरण का कार्य कर रहे थे वही आज़ादी की लड़ाई में वे शामिल होते थे एवं तमाम संघ के कार्यकर्ता भी गाँधी जी एवं कांग्रेस के आवहन का अक्षरशः मानते हुए उन अभियानो में शामिल होते थे। 1930 में गाँधी जी द्वारा नामक सत्यग्रह में कुछ संघ कर्यकर्ताओ के साथ डॉ हेडगेवार भी शामिल हुए जिसमें उन्हें 9 महीने का कारावास का दंड भी मिला। 1928 में भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव को उमरेड नागपुर के संघ कार्यकर्ता भैय्या जी ढानी के यहाँ रुकने की व्यवस्था संघ प्रमुख हेडगेवार जी ने ही की थी। हेडगेवार जी को वन्दे मातरम कहने पर स्कूल से निकल दिया गया था अपने युवा अवस्था में अनुशीलन समिति के सक्रिय सदस्य रहे। इतना ही नही 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में संघ बहुत ही सक्रिय भूमिका रही 27-28 अप्रेल 1942 को संघ के तत्कालीन प्रमुख गुरु गोलवलकर ने कार्यकर्ताओं को संदेश देते हुए कहा की “ वर्तमान सरकार को स्वार्थवश यथासम्भव भरपूर सहयात देने वाले व्यक्तियों की हम निंदा करते है, वही अपने दूसरे भाषण में उन्होंने स्वयंसेवकों को साफ़ निर्देश दिए की “ स्वयंसेवकों को देश के उदेश्य के लिए अपने प्राणो के बलिदान के लिए तैयार रहना चाहिए ये सब 28/8/1942 अंग्रेज़ी सरकार की ख़ुफ़िया रिपोर्ट में उद्धृत है। जिस उत्तरप्रदेश में संघ को लेकर अनर्गल अलाप हुआ वही सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने अपना बलिदान दिया। उत्तरप्रदेश मेरठ के मवाना तहसील जहाँ अंग्रेज़ी पुलिस ने निहाते संघ के कार्यकर्ताओं पर लाढ़ी- ड़डो से मारा बाद में गोलियाँ चलाई गई जिसके परिणाम स्वरूप सैकड़ों कार्यकर्ता का बलिदान हुआ। जो कांग्रेस कहती है संघ का आज़ादी की लड़ाई में क्या योगदान तो इतिहास के पन्ने पलटे अरुणा आसाफली एवं जयप्रकाश जी को दिल्ली के उस समय के संघचालक लाला हंसराज गुप्ता जी ने ही अपने यहाँ छुपा रखा था। जिस सावरकर को लेकर कांग्रेस जन आलोचना करते है उनकी रिहाई को लेकर स्वयं महात्मा गाँधी कई बार चिट्ठी लिखते है, इतना ही नही इंदिरागाँधी जी सावरकर को भारत की आज़ादी के महान सपूत कहती है।
डॉ. अम्बेडकर, महात्मा गाँधी, सुभाष चंद्र बोस आदि संघ की शाखा पर गए, शिविर में गये वही भारत के पहले प्रधानमंत्री जवहारलाल नेहरू ने संघ की सहायता से कश्मीर जैसी समस्या का निदान किया एवं चीन युद्ध में संघ कर्यकर्ताओ के योगदान को कौन नकार सकता है इसी का परिणाम है की 1963 की गणतंत्र दिवस परेड में संघ ने भी भाग लिया। उत्तरप्रदेश के मेरठ की मवाना तहसीलमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं पर पुलिस ने लाढ़ी चार्ज कर दी, गोली चलाई, जिसमें कई कार्यकर्ता गम्भीररूप से घयाल हुए ।मैं पहले ही कह रहा इस आंदोलन में समाज के तमाम संगठनों ने भाग लिया, जिसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विशेष भूमिका रही है। इस प्रकार ये आंदोलन 1942 के अंत तक चला सैकड़ों लोगों ने इसमें अपनी शहादत दी परंतु अंग्रेज़ी शासन कीनींव ज़रूर हिला कर रखा दी।1942 में ही पटना में तिरंगा लहराने के जुर्म में बाला जी राय पुरकर को अंग्रेजो ने गोली मार दी जो संघ के कार्यकर्ता थे वही दादा नायक 1942 के आन्दोलन में शामिल होने के कारण अंग्रेज़ी सरकार द्वारा फाँसी की सजा दी गई। 1930 में संघ की प्रत्येक शाखा पर तिरंगा लहराया गया, ये भी इतिहास में इंगित है की जिस दिन पहली बार तिरंगा लहराया गया उस दिन भी किशन सिंह राजपूत ने ही इस पुनीत कार्य में सहयोग किया जिसकी प्रशंसा स्वयं नेहरू ने की ये कार्यकर्ता भी संघ का स्वयंसेवक था। संघ समाज स्वीकारीता को देखते हुए विवेकानंद मेमोरीयल एवं मूर्ति के विमोचन कार्यक्रम में संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता एकनाथ रानाडे जी के कहने पर इंदिरा गाँधी जी स्वयं शामिल हुई।
जयप्रकाश आंदोलन को जन-जन तक ले जाने का कार्य किसने किया तो वो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद था, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ था।आज भी देश में कितने ही सेवा कार्यों में संघ लगा है,अभी हाल के कोरोना संकट के दोरान संघ के द्वारा किए सेवा कार्यों ने उसकी स्वीकारित को और अधिक बढ़ा दिया है।इस सबके बावजूद समाजवादी समेत अन्य दल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को कटघरे में खड़ा करते है।