भारत की श्रीलंका के प्रति मानवीय सहायता: एक संवेदनशील और रणनीतिक कदम

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29 नवंबर 2025 को चक्रवात ‘दित्वाह’ ने श्रीलंका को तबाही के मुहाने पर ला खड़ा किया। अब तक 123 से अधिक लोगों की मौत, 130 से ज्यादा लापता, ढाई लाख से अधिक लोग बेघर और 35 प्रतिशत इलाकों में बिजली गुल – यह श्रीलंका का पिछले कई दशकों का सबसे भयावह प्राकृतिक संकट है। ऐसे में भारत ने जिस तेजी और जिस पैमाने पर मदद भेजी, वह केवल मानवीय सहायता नहीं, बल्कि ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति की जीवंत मिसाल है।

‘ऑपरेशन सागर बंधु’ के तहत भारत ने 28-29 नवंबर की दरम्यानी रात से ही कार्रवाई शुरू कर दी। सबसे पहले भारतीय नौसेना के विमानवाहक पोत INS विक्रांत और फ्रिगेट INS उदयगिरी ने समुद्री रास्ते से 6.5 टन सूखा व ताजा राशन, दवाइयाँ और अन्य जरूरी सामान श्रीलंका पहुंचाया। इसके तुरंत बाद वायुसेना ने हिंदन एयरबेस से एक साथ दो भारी परिवहन विमान – C-130J और IL-76 – रवाना किए। इन विमानों ने 21 टन राहत सामग्री, 80 से अधिक NDRF कर्मी और 8 टन विशेष उपकरण कोलंबो पहुंचाए। रात 1:30 बजे कोलंबो एयरपोर्ट पर उतरते ही भारतीय उच्चायोग के अधिकारी और श्रीलंकाई वायुसेना ने सामग्री ग्रहण की – यह तस्वीरें अपने आप में भारत-श्रीलंका की गहरी मित्रता की गवाह हैं।

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने स्वयं लिखा, “ऑपरेशन सागर बंधु शुरू हो गया है।” प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शोक संतप्त परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि भारत जरूरत पड़ने पर और भी मदद देने को तत्पर है। यह केवल कूटनीतिक वक्तव्य नहीं, बल्कि पिछले दस साल की नीति का निरंतरता है – चाहे 2019 का ईस्टर बम धमाका हो, 2022 का आर्थिक संकट हो या अब यह प्राकृतिक आपदा – हर बार भारत सबसे पहले और सबसे बड़े पैमाने पर आगे आया है।

इस सहायता के तात्कालिक प्रभाव तो स्पष्ट हैं। NDRF की 80+ सदस्यीय टीम खोज-बचाव और चिकित्सा सहायता में श्रीलंकाई सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही है। टेंट, कंबल, हाइजीन किट और रेडी-टू-ईट भोजन से हजारों विस्थापित परिवारों को तुरंत राहत मिली। केंद्रीय पहाड़ी जिलों कैंडी और बदुल्ला में भूस्खलन से फंसे लोगों को निकालने में भारतीय उपकरण और विशेषज्ञता काम आ रही है।

परंतु इस सहायता का प्रभाव केवल राहत सामग्री तक सीमित नहीं है। इसके चार बड़े दीर्घकालिक प्रभाव हैं:

कूटनीतिक विश्वसनीयता में अभूतपूर्व वृद्धि
2022 के आर्थिक संकट के दौरान जब चीन और इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड (IMF) ने भी देर की थी, भारत ने 4 बिलियन डॉलर से अधिक की सहायता देकर श्रीलंका को दिवालियेपन से बचाया था। अब यह आपदा राहत उस विश्वास को और पुख्ता करती है। श्रीलंका की जनता और राजनीतिक वर्ग में भारत के प्रति जो सद्भावना बढ़ी है, वह आने वाले दशकों तक भारत के हितों की रक्षा करेगी।

हिंद महासागर में भारत की ‘फर्स्ट रिस्पॉन्डर’ छवि मजबूत
मालदीव हो, मॉरीशस हो या अब श्रीलंका – हर बार भारत सबसे तेज और सबसे प्रभावी HADR (Humanitarian Assistance and Disaster Relief) क्षमता दिखाता है। इससे न केवल क्षेत्रीय देश भारत पर भरोसा करते हैं, बल्कि चीन की ‘डेट-ट्रैप डिप्लोमेसी’ को भी करारा जवाब मिलता है। हैमबनटोटा बंदरगाह और कोलंबो पोर्ट सिटी जैसे प्रोजेक्ट में चीन की बढ़ती पकड़ के बावजूद श्रीलंका की जनमानस भारत को सच्चा मित्र मानता है।
सॉफ्ट पावर और पीपल-टू-पीपल संपर्क में वृद्धि

श्रीलंका में 25 लाख से अधिक तमिल मूल के लोग हैं। भारत की यह मदद सीधी सहायता उनके मन में भी गहरी छाप छोड़ती है। साथ ही, सोशल मीडिया पर #SagarBandhu और #IndiaWithSriLanka ट्रेंड कर रहे हैं – यह भारत की सॉफ्ट पावर का नया आयाम है।

स्वयं भारत की आपदा प्रबंधन क्षमता का प्रदर्शन

एक साथ नौसेना के विमानवाहक पोत और वायुसेना के दो भारी परिवहन विमान तैनात करना आसान नहीं होता। यह भारतीय सशस्त्र बलों की त्वरित प्रतिक्रिया क्षमता (Rapid Reaction Capability) को दुनिया के सामने रखता है।
‘ऑपरेशन सागर बंधु’ केवल 30-40 टन राहत सामग्री नहीं है यह भारत की उसकी ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति, उसकी मानवीय संवेदना और उसकी सामरिक दूरदर्शिता का जीवंत प्रमाण है। जब श्रीलंका संकट से उबरेगा, तो उसके पुनर्निर्माण में भी भारत सबसे बड़ा साझेदार बनेगा – जैसा 2004 की सुनामी के बाद बना था। यही कारण है कि श्रीलंका के लोग आज कह रहे हैं – “दुख की इस घड़ी में भारत सचमुच सागर का बंधु साबित हुआ।”

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