नई दिल्ली: शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की हालिया बैठक में भारत ने अपनी कूटनीतिक ताकत का शानदार प्रदर्शन किया। बैठक के समापन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एक ही गाड़ी में सवार होकर द्विपक्षीय वार्ता के लिए प्रस्थान किया। यह दृश्य न केवल भारत-रूस की गहरी मित्रता का प्रतीक है, बल्कि वैश्विक मंच पर भारत की बढ़ती साख को भी रेखांकित करता है।
यह कदम पश्चिमी देशों और उनकी साम्राज्यवादी नीतियों के लिए एक स्पष्ट संदेश है। भारत की यह कूटनीति केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि एक नए विश्व व्यवस्था के उदय का प्रतीक है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम उदारवाद (लिब्रलिज्म) की हार और बहुध्रुवीय विश्व के निर्माण की दिशा में एक मजबूत कदम है। इस प्रक्रिया में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का भी योगदान रहा है, जिन्हें भारत ने एक संतुलित दृष्टिकोण के साथ देखा है।
भारत और अमेरिका के बीच संबंध सामान्य रहेंगे, लेकिन भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह किसी भी देश के दबाव में नहीं आएगा। साथ ही, चीन की बढ़ती आक्रामकता पर नकेल कसने की रणनीति पर भारत का रुख दृढ़ है। एससीओ बैठक में भारत ने क्षेत्रीय स्थिरता और आर्थिक सहयोग पर जोर देते हुए अपनी स्थिति को और मजबूत किया।
मोदी और पुतिन की यह मुलाकात न केवल द्विपक्षीय संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगी, बल्कि वैश्विक मंच पर भारत की स्वतंत्र और मजबूत विदेश नीति को भी स्थापित करेगी। यह भारत की कूटनीतिक परिपक्वता और वैश्विक नेतृत्व की दिशा में एक और कदम है।