पहलगांव में आतंकी हमले के बाद पूरे भारत में पाकिस्तान को सबक सिखाने की आवाज उठ रही है। विपक्षी नेताओं के साथ मुस्लिम धर्मगुरु भी आगे आये हैं। कहीं कहीं तो आतंकवाद के विरुद्ध काली पट्टी बाँधकर नमाज अदा की गई। लेकिन विरोध के इन स्वरों के बीच आतंकवादियों और पाकिस्तान समर्थन के स्पष्ट दृश्य भी देखे गये। कहीं कोई पाकिस्तान के झंडे सहेजता दिखाई दिया तो कहीं पाकिस्तान जिन्दाबाद की ध्वनि भी सुनाई दी गई।
पहलगांव में यह आतंकी हमला साधारण नहीं था। यह पिछले लगभग सभी आतंकी हमलों से बहुत अलग था। अब तक हुये हमलों में आतंकवादी या तो घात लगाकर हमला करते थे अथवा ब्लास्ट करके लौट जाते थे। लेकिन इस हमले में ऐसा नहीं हुआ। आतंकवादी सीना तानकर पहलगांव के बैसरन मैदान में आये। उन्होंने पहले हिन्दुओं को कतारबद्ध खड़ा किया। फिर पहचान पूछकर गोली मारी। आतंकवादियों ने हिन्दुओं पहचान सामान्य रूप से नहीं पूछी। पहचान पूछने का यह तरीका क्रूर और निम्नतम था। पहले कलमा पढ़वाया फिर पेन्ट की जिप खुलवाकर पहचान सुनिश्चित करने की नौटंकी की गई। अब तक जो विवरण सामने आये हैं उनके अनुसार अप्रैल के प्रथम सप्ताह से आतंकवादी इस क्षेत्र में सक्रिय थे। कुछ खच्चरवालों से भी उनका संपर्क था। दो लोग तो खुलकर उनके साथ थे। उनके पास एक एक पर्यटक का विवरण था। फिर भी पहचान देखने केलिये पेन्ट की जिप खुलवाई गई। पेन्ट की जिप खुलवाना और कलमा पढ़वाना उनकी सुनियोजित कार्रवाई थी। इसके द्वारा वे भारत के कट्टरपंथी मुसलमानों का मानसिक समर्थन प्राप्त करना चाहते थे। इसमें वे बड़ी सीमा तक सफल भी रहे। इसकी झलक पूरे देश में देखी भी गई। एक ओर आतंकवादियों और पाकिस्तान पर निर्णयात्मक कार्रवाई की आवाज उठी तो वहीं वहीं कुछ लोग भी सामने आये जिनकी गतिविधि पाकिस्तान और आतंकवाद का समर्थन में मानी गई। आतंकवाद और पाकिस्तान के समर्थन में ये स्वर किसी एक प्रदेश या किसी एक क्षेत्र में नहीं, पूरे भारत में सुने गये। सुदूर असम में भी और मध्यप्रदेश में भी। कर्नाटक में भी और उत्तर प्रदेश में भी। दिल्ली में भी और केरल में भी। इस श्रंखला में विधायक, पार्षद, पत्रकार, विद्यार्थी, वकील और सेवानिवृत्त शिक्षक जैसे सभी स्तर के लोग देखे हैं। एक आश्चर्यजनक बात यह भी देखी गई महाराष्ट्र, कर्नाटक और उत्तरप्रदेश में पाकिस्तान का झंडा सहेजते हुये महिलाएँ देखीं गईं।
सामान्यतः उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक के समाज जीवन में बहुत भिन्नता है। भाषा और भूषा ही नहीं भोजन में भी अंतर है फिर भी इन तीनों प्रदेशों में पाकिस्तान का झंडा सहेजते हुये महिलाएँ देखी गई। वस्तुतः पहलगांव में हुये आतंकी हमले के विरुद्ध देशभर में प्रदर्शन हुये और पाकिस्तान का झंडा फाड़कर फेका गया। कहीं कहीं बीच सड़क पर चिपकाया भी गया ताकि लोग उसके ऊपर से निकले। ऐसा करके प्रदर्शनकारी पाकिस्तान को अपना कड़ा विरोध संदेश देना चाहते थे। ऐसा उत्तरप्रदेश के सहारनपुर में भी हुआ। बजरंग दल ने प्रदर्शन करके पाकिस्तान का झंडा जलाया था। प्रदर्शनकारी तो चले गये लेकिन पाकिस्तानी झंडे के टुकड़े सड़क पर बिखरे रहे। लोग उनके ऊपर गाड़ियों से अथवा पैर रखकर निकल रहे थे। उस सड़क से एक मुस्लिम छात्रा स्कूटी से निकल रही थी। उसने अपनी स्कूटी रोकी और पाकिस्तानी झंडे को सड़क से हटाने लगी । लोगों ने रोका तो उसने छुपाया भी नहीं और झंडे के टुकड़े उठाने केलिये रुकना स्वीकार किया।
दूसरी घटना मुम्बई के विले पारले स्टेशन की है। महाराष्ट्र की राजधानी मुम्बई में भी अनेक स्थानों पर पाकिस्तान के विरुद्ध प्रदर्शन हुये। पाकिस्तान के झंडे जलाये गये अथवा कागज के झंडों को फाड़कर फेका गया। ऐसा ही प्रदर्शन विले पारले स्टेशन क्षेत्र में हुआ। वहाँ स्टेशन के बाहर सीढ़ियों पर पाकिस्तानी झंडा लगा दिया गया। लोग उसपर पैर रखकर निकल रहे थे। तभी एक मुस्लिम महिला वहाँ पहुंची उसने झंडे पर इस प्रकार पैर रखकर निकलने का कड़ा विरोध जताया और उन टुकड़ों को वहाँ से हटाया भी। यही दृश्य कर्नाटक में भी देखा गया। वहाँ भी सड़क पर विखरे पाकिस्तानी झंडे के टुकड़ों को दो महिलाएँ सहेजते देखी गई। यदि किसी ने टोका तो दोनों महिलाओं ने कड़क कर उत्तर भी दिया। ये तीन घटनाएँ वे हैं जिनके वीडियो और बातचीत मीडिया और सोशल मीडिया पर वायरल हुई। ऐसी और कितने स्थान होंगे जहाँ लोग खुलकर पाकिस्तानी झंडे को अपमान से बचाने केलिये सामने आये होंगे। इन तीनों घटनाओं में महिलाओं का होना इस संदेह को भी जन्म देता है कि पाकिस्तानी झंडे के टुकड़े सहेजने की कोई अंतर्धारा देशभर में समान रूप से बह रही है। जिसने महिलाओं को आगे किया। चूँकि भारतीय जन मानस महिलाओं का सम्मान करता है। यह रणनीति वर्ष 2019 में दिल्ली के शाहीनबाग के प्रदर्शन में भी देखी गई थी जिसमें महिलाओं को आगे करके प्रदर्शन को आक्रामक बनाया गया था। अब पुनः भारत के विभिन्न स्थानों में पाकिस्तानी झंडे के टुकड़े सहेजने के लिये महिलाएँ ही सामने आईं। जिन तीन स्थानों के वीडियो वायरल हुये इन तीनों स्थानों पर झंडे के टुकड़े सहेजने वाली महिलाओं के तेवर भी समान रूप से तीखे थे। हो सकता है वीडियो वाली तीनों घटनाओं में कोई योजना न हो। यदि योजना नहीं है और केवल संयोग है तो बहुत आश्चर्यजनक संयोग। सड़क पर पाकिस्तानी झंडा सहेजने की ऐसी घटनाओं के समाचार दिल्ली, बंगाल और मध्यप्रदेश से भी आये। लेकिन प्राँतों में सड़क पर झंडे के टुकड़े उठाने केलिये किशोर वय के विद्यार्थी सामने आये।
सड़क पर पड़े पाकिस्तानी झंडा सहेजने की इन घटनाओं के अतिरिक्त सोशल मीडिया पर पाकिस्तान और आतंकवादियों के समर्थन में पोस्ट डालने की सौ से अधिक घटनाएँ सामने आईं। इनमें सबसे अधिक असम प्राँत से आईं। असम में अबतक 42 एफआईआर दर्ज हो चुकीं हैं। इनमें ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के विधायक अमीनुल इस्लाम भी हैं। विधायक अमीनुल इस्लाम ने सोशल मीडिया पर अपनी पोस्ट में पहलगांव हमले को भी पुलवामा हमले की भाँति “सरकार की साजिश” बताया था। इसके अतिरिक्त कश्मीर से लेकर केरल तक कुछ स्वर ऐसे भी सुनाई दिये जिनमें भारत सरकार से पहलगांव आतंकी हमले का बदला लेने केलिये पाकिस्तान पर आक्रमण न करने की अपील की गई। इसे मानवीयता से जोड़कर कहा गया कि इससे सामान्य नागरिकों को कष्ट होगा। ऐसी अपील करने वाले अधिकांश राजनेता और कथित सामाजिक कार्यकर्ता रहे।
पहलगांव में हुये आतंकी हमले के बाद के इन तीन सप्ताहों में सामने आई ये घटनाएँ तीन प्रकार की हैं लेकिन तीनों का स्वर पाकिस्तान का बचाव ही है। पाकिस्तान प्रशिक्षित आतंकवादियों द्वारा हिन्दुओं पर यह हमला पहला नहीं है। जो पाकिस्तान बनने के बाद आरंभ नहीं हुये अपितु पाकिस्तान बनने की प्रक्रिया से ही शुरु हो गये थे। इसे 1921 की मालाबार में हुई हिन्दुओं के सामूहिक नरसंहार से लेकर लगातार हुये दंगों, मुस्लिम लीग के डायरेक्ट एक्शन और कश्मीर में कबाइलियों के नाम पर कई गई हिंसा कश्मीरी पंडितों की हत्याओं, कश्मीर में श्रमिकों की हत्या से लेकर देशभर हो रहे आतंकी हमलों से समझा जा सकता है। फिर भी पाकिस्तानी झंडे को अपमान से बचाना, सोशल मीडिया पर निसंकोच आतंकवादियों तथा लश्कर को बधाई लिखना और लोगों का ध्यान पाकिस्तान से हटाने केलिये भारत सरकार की साजिश लिखने का आशय क्या है और लगातार भारत विरोधी गतिविधियों के बाद भी पाकिस्तान के समर्थन अथवा सद्भाव की मानसिकता का कारण क्या है ?
इसके दो कारण हैं। एक तो पहलगांव में आतंकवादियों द्वारा अपनाई गई हिंसा की शैली में स्पष्ट दीख रहा है। और दूसरा पाकिस्तान निर्माण की मानसिकता में है। पहलगांव में आतंकवादियों ने पर्यटकों को सीधे गोली नहीं मारी। पहले पेन्ट की जिप खुलवाई, कलमा बुलवाया फिर गोली मारी। पहचान पूछने और कलमा पढ़वाने की यह नौटंकी आतंकी हिंसा को धर्म की चादर से ढँकने का षड्यंत्र है। ताकि धर्मभीरू मुसलमानों का समर्थन मिल सके अथवा उन्हें तटस्थ किया जा सके। यह वही शैली है जो सैकड़ों सालों से मध्य ऐशिया के लुटेरे अपना रहे हैं। भारत पर पहले हमले सत्ता के लिये नहीं बल्कि लूट केलिये ही हुये थे। सामूहिक नरसंहार, लूट और निर्दोष स्त्री बच्चों पर अत्याचार करने की अनुमति कोई धर्म नहीं देता। लेकिन सैकड़ों सालों से ऐसे अमानवीय कृत्यों को ढँकने केलिये धार्मिक नारा लगाने का खेल सैकड़ों सालों से चल रहा है। वही पहलगांव में खेला गया।
दूसरा पाकिस्तान की मानसिकता को सजीव रखना है। पाकिस्तान आज भले एक देश के रूप में स्थित है। लेकिन वह एक मानसिकता है। जिसका प्रकटीकरण अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के जनक सर सैय्यद अहमद ने अपने लेखन और व्याख्यानों में तब किया था जब न तो मुस्लिम लीग अस्तित्व में आई थी और न पाकिस्तान का स्वरूप स्पष्ट हुआ था। फिर भारत के मुसलमानों को भावनात्मक रूप से पाकिस्तान से जोड़ने का अभियान चला। जो अक्सर पर सड़कों पर दिखाई देता है। कभी क्रिकेट में पाकिस्तान की जीत पर मिठाई बँटते हुये कभी पाकिस्तानी झंडा फहराने के रूप में दिखाई देता है। इन्हें पाकिस्तान से जोड़ने केलिये धार्मिक आवरण ही दिया जाता है। जिस प्रकार युवाओं का ब्रेनवाॅश करके आतंकवादी बनाने का खेल चल रहा है ठीक उसी प्रकार समाज को किसी धार्मिक नारे से जोड़कर भारत के भीतर पाकिस्तान से भावनात्मक जुड़े रहने का अभियान चल रहा है। जो पहलगांव हमले के बाद देशभर में हुये विरोध प्रदर्शन के बीच पाकिस्तानी झंडे के टुकड़े सहेजने में, मानवता केलिये पाकिस्तान पर हमला न करने की सलाह अथवा कलमा पढ़वाने का समाचार सुनकर लश्कर को वधाई संदेश भेजने में झलक रहा है।