भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध हमेशा से तनावपूर्ण रहे हैं, और हाल के वर्षों में यह कड़वाहट और गहरी हुई है। 1947 के विभाजन से शुरू हुई यह प्रतिद्वंद्विता कश्मीर विवाद, सीमा संघर्ष, और आतंकवाद जैसे मुद्दों के कारण जटिल बनी हुई है। हालिया घटनाओं, जैसे पहलगाम आतंकी हमला (अप्रैल 2025), ने दोनों देशों के बीच तनाव को चरम पर पहुंचा दिया है। भारत ने इसके जवाब में सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया और वाघा-अटारी सीमा को बंद कर दिया, जो उसके कड़े रुख को दर्शाता है।
सिंधु जल संधि, जो 1960 में दोनों देशों के बीच जल बंटवारे का आधार रही, अब भारत के लिए रणनीतिक हथियार बन गई है। जल शक्ति मंत्री सी.आर. पाटिल ने कहा, “पाकिस्तान को एक बूंद पानी नहीं मिलेगा।” यह निर्णय भारत की उस नीति को दर्शाता है, जिसमें वह आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता और अपनी संप्रभुता की रक्षा को प्राथमिकता दे रहा है। इसके अलावा, भारत ने पाकिस्तानी दूतावास बंद करने और राजनयिक संबंध सीमित करने जैसे कदम उठाए, जो दोनों देशों के बीच संवाद की संभावनाओं को और कम करते हैं।
पाकिस्तान ने भी जवाबी कार्रवाई की है, जिसमें शिमला समझौते सहित सभी द्विपक्षीय समझौतों को निलंबित करना और व्यापारिक संबंध खत्म करना शामिल है। हालांकि, पाकिस्तान की आंतरिक अस्थिरता, जैसे राजनीतिक संकट और आर्थिक तंगी, उसे इन टकरावों में कमजोर स्थिति में ला खड़ा करती है। दूसरी ओर, भारत की बढ़ती वैश्विक साख और सैन्य-आर्थिक शक्ति उसे इस टकराव में मजबूत बनाती है।
कश्मीर मुद्दा दोनों देशों के बीच तनाव का मूल रहा है। भारत का मानना है कि पाकिस्तान आतंकवाद को प्रायोजित करता है, जबकि पाकिस्तान कश्मीर को अपनी जमीन मानता है। इन मतभेदों ने दोनों देशों के बीच विश्वास की कमी को और गहरा किया है। भारत का हालिया कड़ा रुख, जैसे पाकिस्तानी नागरिकों के लिए वीजा रद्द करना, यह संदेश देता है कि वह अब केवल कूटनीति पर निर्भर नहीं रहेगा।
निष्कर्षतः, भारत-पाकिस्तान संबंधों में कड़वाहट का यह दौर दोनों देशों के लिए दीर्घकालिक चुनौतियां प्रस्तुत करता है। भारत अपनी ताकत और दृढ़ता के साथ वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है, जबकि पाकिस्तान की कमजोर स्थिति उसे और अलग-थलग कर सकती है। शांति की राह मुश्किल है, और इसके लिए दोनों पक्षों को संवाद और विश्वास-निर्माण की दिशा में कदम उठाने होंगे।