पृथक
शास्त्री जी को हम सब ने बचपन में अपनी पुस्तकों में एक ऐसे युवा के तौर पर पढ़ा था जो तैर करके गंगा जी पार करके अपने स्कूल पढ़ने जाता था। स्कूल पहुंचने की यह जद्दोजहद लगभग हर जगह है थोड़ी कम या ज्यादा मुझे याद है हमारे कृष्णा नगर, यमुनापार में बरसात के दिनों में पानी भर जाया करता था स्कूल बसे बंद हो जाती थी साइकिल स्कूटर इत्यादि भी ठीक से नहीं चल पाते थे मगर स्कूल पहुंचना था तो पहुंचा जाता था। अपने छोटे दुखों से हमने शास्त्री जी की विकट परिस्थितियों का अंदाजा अच्छे से लगाया।
शास्त्री जी, प्रधानमंत्री बनने के कोई नेचुरल विकल्प नहीं थे वह कांग्रेस में या कहे पूरे देश में ही सबसे कमजोर समझे जाने व्यक्ति आगे बढ़ाए जाने की नीति के अयाचित लाभार्थी थे। कमजोर समझे जाने वाले व्यक्ति को इसलिए आगे बढ़ाया जाता है ताकि वह पहले से ही ऊपर बैठे किसी मजबूत व्यक्ति को चुनौती न दे सके। शास्त्री जी का चयन इसी नीति के तहत हुआ बाद में हमने देखा कि पहले अस्वस्थ शंकर दयाल शर्मा को और उनके मना करने पर बाद में अस्वस्थ पीवी नरसिम्हा राव को भी इसी मकसद से चुना गया। फिर आज कल पप्पू यादव के साथ जो कुछ भी हो रहा है वह तेजस्वी यादव के सामने भविष्य में मजबूत यादव नेतृत्व के संकट को खत्म करने के लिए हो रहा हैं, अमिताभ बच्चन, माधवराव सिंधिया आदि भी वैसे ही विकटिमहुड उदाहरण हैं।
खैर इस अयाचित प्रधानमंत्री से शुरुवात में तो कांग्रेस के सिंडिकेट ( सात नेता जिनके ग्रुप लीडर के. कामराज थे ) ने अपने दबाव में काम करवा लिया पर 1965 के युद्ध में शारीरिक और सामाजिक राजनीतिक लोकेशन के आधार पर कमजोर समझे जाने वाले प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने दिखा दिया की उनमें कितना दम हैं। ऐसा दमखम एक व्यक्ति में तब भी आ पाता है जब वह सारे समाज को, अपने राजनैतिक विरोधियों को एक साथ लेकर के चलता है। युद्ध के समय प्रधानमंत्री रहते हुए लाल बहादुर शास्त्री ने पार्टी लाइन से ऊपर उठकर आरएसएस के सरसंघचालक श्री माधवराव सदाशिव गोलवलकर को सर्वदलीय बैठक में आमंत्रित किया। डॉ. हरीश चंद्र बर्थवाल ने अपनी पुस्तक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघः एक परिचय में कहा है कि इस आमंत्रण का उद्देश्य दिल्ली पुलिस को अधिक रणनीतिक गतिविधियों का कार्यभार सौंपना और उन्हें उनके नियमित कर्तव्यों से मुक्त करना था, जिन्हें बाद में आरएसएस कार्यकर्ताओं द्वारा संभाला गया। बर्थवाल ने यहां तक दावा किया कि शास्त्री के अनुरोध पर, आरएसएस कार्यकर्ताओं ने युद्ध के मोर्चे पर तैनात सैनिकों को भोजन और अन्य आवश्यक आपूर्ति भी प्रदान की।
अपनी आत्मकथा में भारतीय जनता पार्टी के शिखर पुरुष लाल कृष्ण आडवाणी लाल बहादुर शास्त्री का वर्णन करते हुए कहते हैं, “नेहरू के विपरीत, शास्त्री जी ने जनसंघ और आरएसएस के प्रति कोई वैचारिक शत्रुता नहीं रखी। वह अक्सर राष्ट्रीय मुद्दों पर परामर्श के लिए श्री गुरुजी को आमंत्रित करते थे।” आर्गनाइज़र’ में अपने संपादकीय लेख में आडवाणी जी ने कहा ‘नेहरू से उलट, शास्त्री ने जनसंघ और आरएसएस को लेकर किसी तरह का वैमनस्य नहीं रखा. वह श्री गुरुजी को राष्ट्रीय मुद्दों पर विचार-विमर्श के लिए बुलाया करते थे.’
इसी प्रकार शास्त्री जी का किस्सा संघ के चतुर्थ सरसंघचालक श्री रज्जू भैय्या के संस्मरण से भी मिलता है। दोनों लोग रज्जू भैय्या और प्रधानमंत्री शास्त्री उत्तर प्रदेश प्रयागराज से थे, स्थानिक होने की वजह से दोनों के घनिष्ठ सम्बन्ध थे। जब शास्त्री जी क्षेत्रीय यानी उत्तर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय थे, तब एक बार सरसंघचालक श्री गुरूजी की उपस्थिति में कुछ गणमान्य लोगों के लिए चायपान का कार्यक्रम आयोजित हुआ था। श्री रज्जू भैय्या ने शास्त्री जी को इस का निमंत्रण दिया, तब शास्त्री जी ने कहा कि मैं आना चाहता हूँ, पर नहीं आऊंगा कारण मेरे वहां आने से कांग्रेस में मेरे बारे में तरह-तरह की बातें शुरू हो जाएंगी।
इस पर श्री रज्जू भैय्या ने पूछा कि – “शास्त्री जी! आप जैसे व्यक्ति के बारे में भी लोग ऐसी बातें करेंगे?” तब उन्होंने कहा – “अरे! आप नहीं जानते राजनीति क्या होती है।” इस पर श्री रज्जू भैय्या ने कहा कि हमारे यहां संघ में ऐसा नहीं है। यदि कोई स्वयंसेवक मुझे आपके साथ देखता है तो वह सोचेगा कि – “रज्जू भैय्या शास्त्री जी को संघ समझा रहे होंगे।” शत्रुता नहीं रखने की वजह से ही शास्त्री जी अजात शत्रु भी कहलाये जाते थे
शास्त्री जी राजनीति में रहते हुए भी प्रधानमंत्री रहते हुए भी सादा बने रहे, उनकी लोन द्वारा ली गई कार यदा कदा सोशल मीडिया पर चर्चा में आ जाती है। यह कहानी इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि उनके ठीक सामने पाकिस्तान के अयूब खान थे जिनकी लाइफस्टाइल और रंगोलिया के किस्से इतिहास में बखूबी दर्ज हैं। 65 युद्ध में शास्त्री जी कठोर निर्णय कर चुके थे इसलिए शायद वह किसी षड्यंत्र का शिकार हुए।
2017 में प्रयागराज में शास्त्री जी एवं उनकी पत्नी ललिता जी की मूर्ति की अनावरण करते हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने उन्हें लोक नेता कहकर सम्बोधित किया तो 2019 में एक कदम आगे बढ़कर प्रधानमंत्री मोदी ने वाराणसी के एयरपोर्ट पर लालबहादुर शास्त्री जी की आदम कद मूर्ति लगवा कर उन्हें श्रद्धांजलि दी, इस प्रकार लार्जर देन लाइफ गांधियन प्रधानमंत्रियों की इमेज बिल्डिंग से इतर भारत के इस महान सपूत को विपक्ष ने अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की, आज उनकी जयंती पर उनको नमन श्रद्धांजलि ।