• हमारे देश के मूर्धन्य लोगों ने, विचारवान लोगों ने एकत्रित आकर विचार करके संविधान का निर्माण किया है, वह ऐसे ही नहीं बना। जिन विचारवान लोगों ने इस संविधान का निर्माण किया उन्होंने उसके एक-एक शब्द पर बहुत मंथन किया और सर्वसहमति उत्पन्न करने के पूर्ण प्रयास के बाद बनी सहमति के बाद यह संविधान बना। (भारत का भविष्य, पृष्ठ 56)
• भारतीय संविधान की एक प्रस्तावना (प्रियम्बल) है। उसमें नागरिक कर्तव्य बताए गए हैं, उसमें ‘डायरेक्टिव प्रिंसीपल्स’ हैं और नागरिक अधिकार भी हैं। (भारत का भविष्य, पृष्ठ 56)
• मैं केवल प्रियम्बल पढ़ देता हूँ- “WE, THE PEOPLE OF INDIA, having solemnly resolved to constitute India into a SOVEREIGN, SOCIALIST, SECULAR, DEMOCRATIC REPUBLIC (ये सोशलिस्ट सेक्यूलर शब्द बाद में आया है सबको पता है लेकिन अभी है। इसलिए मैंने उसको भी पढ़ा है।) and secure to all its citizens JUSTICE, social, economic and political; LIBERTY of thought, expression, belief, faith and worship; EQUALITY of status and of opportunity; (अब आगे एक महत्त्व की बात डॉक्टर आम्बेडकर साहब ने संविधान सभा के अपने भाषण में कही थी।) and to promote among them all FRATERNITY assuring the dignity of the individual and the unity and integrity of the Nation;संविधान सभा में डॉ. अंबेडकर ने यह भी कहा था कि हमारी आपस की लड़ाई के कारण विदेशी जीते और हमको गुलाम बनाया। (भारत का भविष्य, पृष्ठ 57)
• हमने अपने प्रजातांत्रिक देश में एक संविधान को स्वीकार किया है। यह संविधान हमारे लोगों ने तैयार किया और यह संविधान हमारा देश का consensus है इसलिए संविधान के अनुशासन का पालन करना सबका कर्तव्य है। संघ इसको पहले से ही मानता है। (भारत का भविष्य, पृष्ठ 56)
• प. पू. सरसंघचालक डॉ. श्री मोहन जी भागवत विजयादशमी उत्सव 2014 के अवसर पर कहते हैं- “देश के अंतिम पंक्ति में खड़े अंतिम मनुष्य के जीवन की स्थिति ही इस देश के विकास की निर्णायक कसौटी होगी तथा आत्मनिर्भरता देश की सुरक्षा व समृद्धि का अनिवार्य घटक है यह ध्यान में रखकर चलना पड़ेगा। जीवन का भिन्न दृष्टि से विचार करने वाला तथा उस विचार के आधार पर विश्व का सिरमौर देश बनकर सदियों तक जगत का नेतृत्व करने वाला अपना देश रहा है , इस तथ्य को निरंतर स्मृति में रखकर चलना पड़ेगा। उस दृष्टि में भारत में ही समस्त विश्व के कल्याण का सामर्थ्य विद्यमान है। उसका युगानुकूल आविष्कार नीतियों में प्रकट करना पड़ेगा। ऐसी नीतियॉं चलाकर देश के जिस स्वरूप के निर्माण की आंकांक्षा अपने संविधान ने दिग्दर्शित की है उस ओर देश को बढ़ाने का काम होगा, इस आशा और विश्वास के साथ सत्ता अपना कार्य करे इसके लिये उनको समय तो देना पड़ेगा”।
• प.पू. सरसंघचालक डॉ. श्री मोहन जी भागवत ने विजयादशमी उत्सव दिनांक 11 अक्टूबर, 2016 के अवसर पर दिए गए उद्बोधन में कहा कि “देश की व्यवस्था के नाते हमने अपने संविधान में संघराज्यीय कार्यप्रणाली का स्वीकार किया है। ससम्मान व प्रामाणिकता पूर्वक उसका निर्वाह करते समय हम सभी को विशेषकर विभिन्न दलों द्वारा राजनीतिक नेतृत्व करने वालों को यह निरन्तर स्मरण रखना पडे़गा कि व्यवस्था कोई व कैसी भी हो, सम्पूर्ण भारत युगों से अपने जन की सभी विविधताओं सहित एक जन, एक देश, एक राष्ट्र रहा है, तथा आगे उसको वैसे ही रहना है, रखना है। मन, वचन, कर्म से हमारा व्यवहार उस एकता को पुष्ट करने वाला होना चाहिए, न कि दुर्बल करने वाला”।
• प. पू. सरसंघचालक डॉ. श्री मोहन जी भागवत विजयादशमी उत्सव (रविवार दि. 25 अक्तूबर 2020) के अवसर पर अपनेउद्बोधन में कहते हैं कि “शासन-प्रशासन के किसी निर्णय पर या समाज में घटने वाली अच्छी बुरी घटनाओं पर अपनी प्रतिक्रिया देते समय अथवा अपना विरोध जताते समय, हम लोगों की कृति, राष्ट्रीय एकात्मता का ध्यान व सम्मान रखकर, समाज में विद्यमान सभी पंथ, प्रांत, जाति, भाषा आदि विविधताओं का सम्मान रखते हुए व संविधान कानून की मर्यादा के अंदर ही अभिव्यक्त हो यह आवश्यक है। दुर्भाग्य से अपने देश में इन बातों पर प्रामाणिक निष्ठा न रखने वाले अथवा इन मूल्यों का विरोध करने वाले लोग भी, अपने आप को प्रजातंत्र, संविधान, कानून, पंथनिरपेक्षता आदि मूल्यों के सबसे बड़े रखवाले बताकर, समाज को भ्रमित करने का कार्य करते चले आ रहे हैं। 25 नवम्बर, 1949 के संविधान सभा में दिये अपने भाषण में श्रद्धेय डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने उनके ऐसे तरीकों को “अराजकता का व्याकरण”(Grammer of Anarchy) कहा था। ऐसे छद्मवेषी उपद्रव करने वालों को पहचानना व उनके षड्यंत्रों को नाकाम करना तथा भ्रमवश उनका साथ देने से बचना समाज को सीखना पड़ेगा”।
• इसी क्रम में वे आगे कहते हैं-“भारत की विविधता के मूल में स्थित शाश्वत एकता को तोड़ने का घृणित प्रयास हमारे तथाकथित अल्पसंख्यक तथा अनुसूचित जाति जनजाति के लोगों को झूठे सपने तथा कपोलकल्पित द्वेष की बातें बता कर चल रहा है। ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ ऐसी घोषणाएँ देने वाले लोग इस षड्यंत्रकारी मंडली में शामिल हैं, नेतृत्व भी करते हैं। राजनीतिक स्वार्थ, कट्टरपन व अलगाव की भावना, भारत के प्रति शत्रुता तथा जागतिक वर्चस्व की महत्वाकांक्षा, इनका एक अजीब सम्मिश्रण भारत की राष्ट्रीय एकात्मता के विरुद्ध काम कर रहा है। यह समझकर धैर्य से काम लेना होगा। भड़काने वालों के अधीन ना होते हुए, संविधान व कानून का पालन करते हुए, अहिंसक तरीके से व जोड़ने के ही एकमात्र उद्देश्य से हम सबको कार्यरत रहना पड़ेगा। एक दूसरे के प्रति व्यवहार में हम लोग संयमित, नियम कानून तथा नागरिक अनुशासन के दायरे में, सद्भावनापूर्ण व्यवहार करते हैं तो ही परस्पर विश्वास का वातावरण बनता है। ऐसे वातावरण में ही ठण्डे दिमाग से समन्वय से समस्या का हल निकलता है”।
• प. पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत ने विजयादशमी उत्सव (बुधवार दि. 05 अक्तूबर 2022) के अवसर पर दिए गएउद्बोधन में कहा कि “संविधान के कारण राजनीतिक तथा आर्थिक समता का पथ प्रशस्त हो गया, परन्तु सामाजिक समता को लाये बिना वास्तविक व टिकाऊ परिवर्तन नहीं आएगा, ऐसी चेतावनी पूज्य डॉ. बाबासाहब आंबेडकर जी ने हम सबको दी थी”।



