बिहार चुनाव 2025: जनादेश का संदेश

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15 नवंबर 2025 को घोषित बिहार विधानसभा चुनाव परिणामों ने राज्य की राजनीति में एक नया अध्याय जोड़ दिया है। 243 सीटों वाली इस सभा में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने करिश्माई प्रदर्शन करते हुए 202 सीटें हासिल कर लीं, जो एक ऐतिहासिक बहुमत है। 89 सीटों के साथ भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, जबकि जनता दल (यूनाइटेड) के नेतृत्व वाले गठबंधन ने भी मजबूत आधार दिखाया। दूसरी ओर, विपक्षी इंडिया गठबंधन (महागठबंधन) को मात्र 35 सीटें ही मिल सकीं, जो उनकी अपेक्षाओं से कहीं कम है। यह जीत न केवल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पांचवीं सत्ता प्राप्ति का प्रतीक है, बल्कि बिहार की जनता का एक स्पष्ट संदेश भी है: नकारात्मक राजनीति को अब स्थान नहीं। इस परिणाम ने साबित कर दिया कि बिहार की जनता अब विकास, रोजगार और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर केंद्रित है, न कि पुरानी जातिगत समीकरणों पर।

चुनाव प्रचार के दौरान इंडिया गठबंधन, जिसमें राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और कांग्रेस प्रमुख थे, ने अपनी रणनीति को मुख्य रूप से नकारात्मक प्रचार पर केंद्रित रखा। विपक्ष ने एनडीए सरकार पर भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और विकास की कमी के आरोप लगाते हुए एक आक्रामक अभियान चलाया। तेजस्वी यादव के नेतृत्व में आरजेडी ने ‘नौकरी दो’ जैसे नारों को तो प्रमुखता दी, लेकिन इसे जातिगत तुष्टिकरण और एनडीए के खिलाफ व्यक्तिगत हमलों से जोड़ दिया। कांग्रेस ने भी केंद्र सरकार के खिलाफ बिहार को ‘उपेक्षित’ बताते हुए भावनात्मक अपील की। लेकिन बिहार की जनता ने इस नकारात्मकता को ठुकरा दिया। मतदान प्रतिशत 66.91% रहा, जो 1951 के बाद का सर्वोच्च है, जो दर्शाता है कि मतदाता सक्रिय थे और उन्होंने सकारात्मक विजन को प्राथमिकता दी।  यह परिणाम विपक्ष की रणनीति की विफलता का प्रमाण है, जहां नकारात्मकता ने विकास की आकांक्षाओं को दबाने का प्रयास किया, लेकिन जनता ने इसे नकारते हुए एनडीए को पूर्ण विश्वास प्रदान किया।

इस जीत के साथ एनडीए पर एक भारी जिम्मेदारी आ गई है। बिहार की जनता ने अपना पूरा विश्वास इस गठबंधन पर जताया है, और अब अगले पांच वर्ष बिहार के हैं। यह संदेश स्पष्ट है: राज्य को विकास और सशक्तिकरण की दिशा में ले जाना एनडीए की प्राथमिकता होनी चाहिए। सबसे पहले, उद्योग स्थापना पर फोकस जरूरी है। बिहार, जो कभी औद्योगिक पिछड़ापन का शिकार रहा, अब निवेशकों को आकर्षित करने के लिए नीतियां बना सकता है। नीतीश कुमार सरकार ने पहले ही ‘बिहार बिजनेस कनेक्ट’ जैसे कार्यक्रम शुरू किए हैं, लेकिन अब बड़े पैमाने पर औद्योगिक पार्कों का विकास, विशेष आर्थिक क्षेत्रों (एसईजेड) का विस्तार और एमएसएमई को प्रोत्साहन देना होगा। उदाहरणस्वरूप, पटना, बेतिया, पूर्णिया, भागलपुर और मुजफ्फरपुर जैसे शहरों में फूड प्रोसेसिंग और आईटी हब स्थापित हो सकते हैं, जो लाखों नौकरियां पैदा करेंगे।

रोजगार सृजन बिहार की सबसे बड़ी चुनौती है। 2025 के चुनाव में युवाओं ने इसे प्रमुख मुद्दा बनाया, और एनडीए को अब वादों को अमल में लाना होगा। सरकार ने पहले 10 लाख नौकरियों का वादा किया था; अब इसे वास्तविकता बनाना होगा। कौशल विकास कार्यक्रमों को मजबूत करना, आईटीआई और पॉलिटेक्निक संस्थानों का आधुनिकीकरण, तथा स्टार्टअप इकोसिस्टम को बढ़ावा देना आवश्यक है। इसके अलावा, कृषि-आधारित रोजगार को मजबूत करने के लिए सिंचाई परियोजनाएं जैसे गंगा नहर विस्तार और जैविक खेती को प्रोत्साहन दिया जाए। बिहार की 70% आबादी कृषि पर निर्भर है, इसलिए फसल विविधीकरण और कोल्ड चेन सुविधाएं रोजगार के नए द्वार खोलेंगी।

सुरक्षा का मुद्दा भी उतना ही महत्वपूर्ण है। लंबे समय से बिहार ‘जंगलराज’ की छाया में रहा, जहां अपराध, माफिया राज और सामाजिक अस्थिरता ने विकास को बाधित किया। एनडीए को वादा करना होगा कि अगले पांच वर्षों में जंगलराज का पूर्ण खात्मा हो। पुलिस सुधार, सीसीटीवी नेटवर्क का विस्तार, महिला सुरक्षा कानूनों का कड़ाई से अमल और साइबर क्राइम से निपटने के लिए विशेष यूनिट्स गठित करना जरूरी है। नीतीश कुमार की पिछली सरकारों ने अपराध दर में कमी लाई है, लेकिन अब इसे शून्य के करीब ले जाना होगा। ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायत स्तर पर सुरक्षा समितियां और युवाओं को पुलिस भर्ती में प्राथमिकता देकर बिहार को सुरक्षित राज्य बनाया जा सकता है। यह न केवल निवेशकों का विश्वास बढ़ाएगा, बल्कि महिलाओं और अल्पसंख्यकों को सशक्त भी करेगा।

एनडीए की इस जीत ने बिहार को सशक्तिकरण की नई दिशा दी है। शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश बढ़ाकर, बिहार को पूर्वी भारत का विकास इंजन बनाया जा सकता है। सात निश्चय योजना को अपग्रेड करते हुए डिजिटल शिक्षा और टेलीमेडिसिन को ग्रामीण स्तर तक पहुंचाना होगा। पर्यटन को बढ़ावा देकर, बोधगया, चंपारण और नालंदा जैसे स्थलों को वैश्विक हब बनाना भी सशक्तिकरण का हिस्सा है। कुल मिलाकर, एनडीए को यह साबित करना होगा कि बिहार अब ‘बीमारू’ राज्यों की श्रेणी से बाहर हो गया है, और यह जनता के विश्वास का इनाम है।

दूसरी ओर, इस चुनाव परिणाम ने आरजेडी और कांग्रेस को एक कड़ा सबक दिया है। दशकों पुराना जाति-आधारित फॉर्मूला और तुष्टिकरण की राजनीति अब बिहार में काम नहीं आएगी। आरजेडी, जो यादव और मुस्लिम वोट बैंक पर निर्भर रही, को मात्र 22 सीटें मिलीं, जो उनके दशक के सबसे खराब प्रदर्शन का संकेत है। कांग्रेस की स्थिति और भी दयनीय रही, मात्र 5 सीटें। विपक्ष ने जातिगत जनगणना और आरक्षण जैसे मुद्दों को हवा दी, लेकिन जनता ने इसे नकार दिया। बिहार का युवा वर्ग अब जाति से ऊपर उठकर विकास चाहता है। यह परिणाम दर्शाता है कि तुष्टिकरण की पुरानी किताबें अब अप्रासंगिक हो गई हैं। विपक्ष को अब अपनी रणनीति बदलनी होगी – सकारात्मक वैकल्पिक एजेंडा पर फोकस करना होगा, न कि केवल आलोचना पर।

यह जीत दोनों गठबंधनों के लिए अगले पांच वर्षों की परीक्षा है। एनडीए को न केवल डिलीवर करना होगा, बल्कि पारदर्शिता बनाए रखनी होगी। विकास परियोजनाओं में भ्रष्टाचार की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए, और जनता की भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी। वहीं, विपक्ष को अपनी नकारात्मकता भुलाकर बिहार के विकास में सहयोगी बनना होगा। जहां सरकार से गलती हो, वहां राह दिखानी होगी – जैसे पर्यावरण संरक्षण या ग्रामीण विकास में सुझाव देना। यदि पब्लिक के साथ कोई ठगी हो, जैसे भूमि अधिग्रहण में अनियमितताएं, तो उसे एक्सपोज करना विपक्ष का कर्तव्य है। लोकतंत्र की मजबूती इसी में है, जहां विपक्ष सरकार का आईना बने, न कि बाधा। प्रशांत किशोर की जन सुराज जैसी नई ताकतों का उदय भी दर्शाता है कि बिहार की राजनीति बहुलवादी हो रही है, और सभी को इसमें स्थान मिलना चाहिए।

बिहार चुनाव 2025 के परिणाम एक नई सुबह का आगमन हैं। एनडीए की प्रचंड जीत ने न केवल प्रधानमंत्री मोदी और नीतीश कुमार की जोड़ी की लोकप्रियता को पुनः स्थापित किया, बल्कि राज्य को विकास की रेल पर चढ़ाने का अवसर प्रदान किया।  लेकिन यह जिम्मेदारी का बोझ भी है। यदि एनडीए उद्योग, रोजगार, सुरक्षा और सशक्तिकरण पर खरा उतरा, तो बिहार भारत का सबसे तेजी से बढ़ता राज्य बनेगा। विपक्ष को भी आत्ममंथन करना होगा, ताकि जाति की बेड़ियां टूटें और विकास का चक्रव्यूह बने। बिहार की 13 करोड़ जनता का सपना अब साकार होने का समय है – एक समृद्ध, सुरक्षित और सशक्त बिहार। यह चुनाव न केवल राजनीतिक था, बल्कि सामाजिक परिवर्तन का सूचक भी। अगले पांच वर्ष बिहार के हैं, और यही जनादेश की सच्ची व्याख्या है।

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आशीष कुमार अंशु

आशीष कुमार अंशु

आशीष कुमार अंशु एक पत्रकार, लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता हैं। आम आदमी के सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों तथा भारत के दूरदराज में बसे नागरिकों की समस्याओं पर अंशु ने लम्बे समय तक लेखन व पत्रकारिता की है। अंशु मीडिया स्कैन ट्रस्ट के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं और दस वर्षों से मानवीय विकास से जुड़े विषयों की पत्रिका सोपान स्टेप से जुड़े हुए हैं

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