पटना। बिहार की राजनीति को समझने वाला हर व्यक्ति जानता है कि यहाँ जाति ही सबसे बड़ा राजनीतिक ब्रांड है। लेकिन अधिकांश जातियाँ जब अपनी राजनीति करती हैं तो अंतर्कलह, गुटबाजी और एक-दूसरे को काटने-खसोटने में इतनी व्यस्त हो जाती हैं कि सत्ता के खेल में पीछे छूट जाती हैं। ठीक इसके उलट बिहार का भूमिहार समाज एक ऐसा उदाहरण पेश करता है जहाँ जातीय एकता और आपसी प्रेम ने उन्हें लगातार सत्ता के शिखर पर बनाए रखा है। दूसरे समाजों और दूसरे प्रदेशों के नेताओं को इसी से सबक लेना चाहिए।
एक निजी कार्यक्रम की तस्वीर ही काफी है बिहार के भूमिहार पॉलिटिक्स को समझने के लिए। उस तस्वीर में केंद्रीय मंत्री और भाजपा के फायरब्रांड नेता गिरिराज सिंह मुस्कुराते हुए खड़े हैं। उनके बगल में हैं कांग्रेस के राज्यसभा सांसद डॉ. अखिलेश प्रसाद सिंह। पास में जहानाबाद से नवनिर्वाचित राजद विधायक राहुल शर्मा और डॉ. अखिलेश सिंह के पुत्र, महाराजगंज से कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ चुके युवा नेता आकाश सिंह। अलग-अलग पार्टियाँ-भाजपा, कांग्रेस, राजद और एक युवा चेहरा—लेकिन सब एक फ्रेम में, बिना किसी बनावटी मुस्कान के। यही तस्वीर बिहार के भूमिहार समाज की असली ताकत है : वैचारिक मतभेद के बावजूद निजी और सामुदायिक स्तर पर अटूट एकता।
आज बिहार की सत्ता में भूमिहार समाज की स्थिति देखिए। केंद्र में गिरिराज सिंह और राजद कोटे से केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह, राज्य में उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा, मंत्री विजय चौधरी, कांग्रेस में डॉ. अखिलेश प्रसाद सिंह, चिराग पासवान की पार्टी में हुलास पांडेय—हर बड़े गठबंधन में प्रभावशाली चेहरे मौजूद हैं। यह संयोग नहीं, सोची-समझी रणनीति का नतीजा है। यहाँ कोई बड़ा नेता किसी नए या उभरते हुए नेता का पाँव नहीं खींचता। उल्टे, हर कोई अगली पीढ़ी को आगे बढ़ाने में लगा रहता है। आकाश सिंह, अभिराज सिंह, अभय कुशवाहा, शानवी सिंह जैसे युवा चेहरों को विभिन्न पार्टियों में लगातार मौका मिल रहा है।
सोशल मीडिया पर भी यही नजारा है। जहाँ दूसरी जातियों के लोग एक-दूसरे को गाली देने और नीचा दिखाने में व्यस्त रहते हैं, वहीं भूमिहार समाज के युवा सिर्फ और सिर्फ अपने समाज को संगठित करने, अपनी बात रखने और एक-दूसरे को सपोर्ट करने में लगे रहते हैं। नफरत की राजनीति नहीं, एकता की राजनीति चलती है। यही कारण है कि बिहार में आज भी पावर के लिहाज से भूमिहार समाज नंबर एक की कुर्सी पर काबिज है, जबकि कई बड़ी आबादी वाली जातियाँ आपसी फूट के कारण हाशिए पर हैं।
दूसरे समाजों को समझना चाहिए कि जाति आधारित राजनीति में भी अगर आप एकजुट रहेंगे, एक-दूसरे के युवाओं को आगे बढ़ने देंगे और वैचारिक मतभेद को निजी संबंधों पर हावी नहीं होने देंगे, तो सत्ता से कोई विस्थापित नहीं कर सकता। बिहार का भूमिहार समाज इसका जीता-जागता सबूत है। एकता ही स्थायी सत्ता की गारंटी है-बिहार के भूमिहार इसे साबित कर चुके हैं।



