पटना । बिहार ने एक बार फिर अपने राजनीतिक इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा है। 14 नवंबर, 2025 को घोषित विधानसभा चुनाव के नतीजों ने स्पष्ट कर दिया कि राज्य की जनता अब विकास, सुरक्षा और स्थिरता के मुद्दों को सबसे ऊपर रखती है। 243 सीटों वाली विधानसभा में एनडीए की प्रभावशाली जीत ने न सिर्फ नीतीश कुमार को एक बार फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुँचाया, बल्कि पूरे देश के सामने ‘सुशासन के बिहार मॉडल’ को फिर से रेखांकित किया है।
इस जीत की असली कहानी महिलाओं और युवाओं के बदले हुए मतदान व्यवहार में छिपी है। इस बार महिलाओं ने रिकॉर्ड संख्या में मतदान किया, और उनका यह शांत पर दृढ़ हस्तक्षेप चुनाव का सबसे बड़ा ‘टर्निंग प्वाइंट’ साबित हुआ।
दरभंगा की सामाजिक कार्यकर्ता विद्या चौधरी इस बदलाव की पुष्टि करती हैं, “2020 की तुलना में महिला मतदान में जबरदस्त उछाल देखने को मिला। गाँव से लेकर कस्बे तक, महिलाओं ने सुरक्षा, शांति और घरेलू स्थिरता को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए एनडीए को भारी समर्थन दिया। शराबबंदी की नीति, जिस पर अक्सर सवाल उठते रहे, महिलाओं के बीच अभूतपूर्व लोकप्रिय हुई। परिवारों में हिंसा में कमी, आर्थिक बचत और सामाजिक सुरक्षा की भावना ने उन्हें एक संगठित राजनीतिक ताकत में बदल दिया।”
वहीं, युवा मतदाताओं ने भी इस चुनाव में जातीय समीकरणों से ऊपर उठकर फैसला किया। पहली और दूसरी बार वोट डालने वाले युवाओं ने बेहतर शिक्षा, रोजगार और कौशल विकास के अवसरों को प्राथमिकता दी। नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय छवि, डिजिटल अभियानों की व्यापक पहुँच और रोजगारोन्मुखी वादों ने इस वर्ग को विशेष रूप से आकर्षित किया। इस बारे में राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर पारस नाथ चौधरी कहते हैं, “यह बदलाव साफ संकेत देता है कि बिहार का युवा अब जाति नहीं, बल्कि अवसर को तरजीह दे रहा है। बिहार में यह परिवर्तन रातों-रात नहीं आया। 2005 से पहले का बिहार ‘जंगलराज’ और पिछड़ेपन की छवि से जूझ रहा था, जहाँ अपहरण, भ्रष्टाचार और अपराध आम बात थे। उस समय राज्य का सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) महज ₹75,608 करोड़ था और आधी से अधिक आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रही थी। महिला साक्षरता दर निराशाजनक थी।”
लेकिन पिछले दो दशकों में बिहार ने जिस गति से खुद को बदला है, वह किसी चमत्कार से कम नहीं है। आज राज्य का जीएसडीपी ₹11 लाख करोड़ के करीब पहुँच चुका है, गरीबी दर में उल्लेखनीय गिरावट आई है, महिला साक्षरता दोगुनी हो चुकी है और ग्रामीण इलाकों में बिजली व सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं ने जीवन-स्तर को नया आयाम दिया है। यह सब कानून-व्यवस्था में सुधार, शिक्षा व स्वास्थ्य पर केंद्रित नीतियों और केंद्र-राज्य की योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन का नतीजा है।
बिहार के शिक्षाविद टी.पी. श्रीवास्तब इस जीत के पीछे एक और कारक बताते हैं, “लालू-राबड़ी के दौर की स्मृतियाँ आज भी लोगों के जेहन में ताजा हैं। ग्रामीण इलाकों के लोग, खासकर महिलाएँ और युवा, उस समय की असुरक्षा और अराजकता को भूला नहीं हैं। इस बार उन्होंने एक ऐसी सरकार को चुना, जो स्थिरता और सुरक्षा की गारंटी देती है। इसी वजह से तेजस्वी यादव के रोजगार संबंधी वादे और जाति आधारित राजनीति युवाओं को उतना प्रभावित नहीं कर पाई। प्रशांत किशोर के राजनीतिक प्रयोगों ने कुछ क्षेत्रों में सराहना तो पाई, लेकिन पूरे राज्य पर असर नहीं दिखा।”
2025 का बिहार चुनाव इस बात का प्रमाण है कि जाति-धर्म आधारित राजनीति का प्रभाव घट रहा है। महिलाओं का स्वतंत्र मतदान, युवाओं की विकास-केंद्रित आकांक्षाएँ और शहरी-ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में बदलती प्राथमिकताएँ दर्शाती हैं कि राज्य की राजनीति एक नई दिशा में आगे बढ़ रही है। मुस्लिम मतदाताओं का एक वर्ग भी इस बार ध्रुवीकरण से हटकर कल्याणकारी योजनाओं और रोजगार के मुद्दों से प्रभावित हुआ।
अब सबसे बड़ी चुनौती एनडीए सरकार के सामने है कि वह मतदाताओ के इस भरोसे को ठोस परिणामों में बदल सके। रोजगार सृजन, औद्योगिकीकरण, कृषि आधारित उद्योगों का विस्तार और शिक्षा-स्वास्थ्य का आधुनिकीकरण—ये वे क्षेत्र हैं जहाँ अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। यदि राज्य इस दिशा में निरंतर प्रगति करता है, तो निस्संदेह यह देश के अग्रणी राज्यों में शामिल हो सकता है।
इस चुनाव ने एक बात स्पष्ट कर दी है—बिहार का मतदाता बदल चुका है। नारी शक्ति और युवा ऊर्जा ने यह संदेश दे दिया है कि विकास, सुरक्षा और सम्मान अब किसी भी पारंपरिक समीकरण से बड़े हैं। जाति-धर्म की दीवारें भले ही पूरी तरह न ढही हों, लेकिन उनमें गहरी दरारें जरूर पड़ गई हैं। 2025 का यह जनादेश घोषित करता है कि बिहार अपना भविष्य बदलने को तैयार है—और यह भविष्य विकास की राह से ही गुजरेगा।



