पटना । यह भारत का मन है, वह मन, जिसमें कृतज्ञता जन्म से ही संस्कार बनकर बहती है। बिहार भारत से अलग कोई भूमि नहीं; यह उसी महान भारतवर्ष की तप्त मिट्टी है, जिसके पोर-पोर में आभार की सुगंध रची-बसी है। जिसने हमारे लिए कुछ किया—चाहे छोटा हो या बड़ा—भारत का मन उसे जीवन भर हृदय में संजोकर रखता है। स्वार्थ के इस दुष्काल में भी निःस्वार्थ सेवा का मर्म समझने वाले लोग कम नहीं, बहुत हैं।
इस वीडियो में दिख रही माताराम के शब्द सुनकर मन ठहर-सा जाता है। वे करुणा और कृतज्ञता के बीच झूलती हुई आवाज़ में कहती हैं— “अपनी ही गोद का जना, अपना बेटा, एक कौर तक नहीं पूछता। पर वो बेचारा… (मोदी) वह 30 किलो चावल देता है, अनाज देता है, 11–1100 रुपये देता है। मैं नमकहराम नहीं हूँ… वोट तो उसी को दूँगी। जिस बेटे को सींचकर बड़ा किया, वह पेट भरने को नहीं देता; पर वह, जो मेरा कुछ नहीं, वह इतना तो देता ही है। इसके अलावा और क्या चाहिए किसी बूढ़ी माँ को?”
वाह! यह दृश्य, यह स्वर, यह भाव – बार-बार देखने पर भी मन तृप्त नहीं होता। कृतज्ञता का ऐसा निर्मल, निष्कलुष रूप दुर्लभ है, अप्रतिम है। इस माताराम के कथन ने मन के किसी भीतरी कोने को छू लिया। मैं तो अब तक ‘मुफ़्त राशन’ योजना का घोर विरोधी रहा… पर इस एक माँ ने मुझे एक नए भावलोक तक पहुँचा दिया, एक नए सामाजिक यथार्थ से परिचित करा दिया! सामाजिक न्याय का मिथ्या नारा गढ़ने वाले क्या इस अंतर्मन की थाह ले पाएँगें? इस सामाजिक यथार्थ की टोह ले पाएँगें? ये एक नया वर्ग है, राजनीति की भाषा में “नई जाति” है। सचमुच के छूटे हुए लोगों की, वंचितों की, गाँव-देहात तक विस्तारित स्वजनों की कोई तो सुधि लेने वाला है। बात-बात में धमकी की भाषा बोलने वाले, विभाजन का विष बोने वाले ऐसे कृतज्ञ हृदय की गहराई कदाचित माप ही नहीं सकते। इसलिए बिहार ने उन्हें ठुकरा दिया, ठीक से ठुकरा दिया।
माता-पिता, वृद्ध-निराश्रित की सेवा से जो पुण्य उपजता है, वह अंततः आशीर्वाद बनकर लौटता ही है, चाहे व्यक्ति, समाज या शासन कोई भी क्यों न हो।
हमारा भारतवर्ष उदार है, विशालहृदय है; यहाँ लोग चाहे जैसे हों, पर कृतघ्न नहीं होते। वे नमक का हक अदा करना जानते हैं, और दिल से, पूरी निष्ठा के साथ अदा करते हैं। बिहार की इस ऐतिहासिक व प्रचंड जीत को सचमुच समझना है तो किसी चुनावी विश्लेषक की आँखों से नहीं, अपितु इस माताराम की आँखों से देखिए, तभी सही निष्कर्ष पर पहुँच सकेंगें।



