पटना। बिहार की राजनीति हमेशा से जटिल और चर्चा का विषय रही है। हाल के दिनों में, राज्य में अपराध के बढ़ते ग्राफ ने एक बार फिर राजनीतिक माहौल को गरमा दिया है। कई लोगों का मानना है कि राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और इसके नेता तेजस्वी यादव सत्ता में वापसी के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। आम धारणा है कि अपराध की बढ़ती घटनाएं वर्तमान नीतीश सरकार की नाकामी को उजागर करती हैं, जिसका फायदा राजद उठाने की कोशिश कर रहा है। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि यदि तेजस्वी सत्ता में लौटते हैं, तो यह अपराधियों के लिए स्वर्ण काल होगा, क्योंकि राजद का इतिहास अपराध और भ्रष्टाचार के आरोपों से भरा रहा है।
तेजस्वी यादव और उनके समर्थकों की बयानबाजी इस तरह की हो गई है, मानो बिहार की जनता ने पहले ही उन्हें सत्ता सौंप दी हो। राजद नेताओं के बढ़े हुए आत्मविश्वास और बिहार में अपराधियों के हौसले में इजाफा एक-दूसरे से जुड़ा प्रतीत होता है। लोग सवाल उठा रहे हैं कि तेजस्वी यादव, जिनके पिता लालू प्रसाद यादव भ्रष्टाचार के कई मामलों में सजायाफ्ता हैं, बिहार को अपराध मुक्त कैसे करेंगे? राजद की छवि एक ऐसी पार्टी की रही है, जिसका नेतृत्व और कार्यकर्ता बार-बार विवादों में घिरे हैं। ऐसे में, अपराध मुक्त बिहार का वादा जनता को खोखला लगता है।पार्टी के भीतर भी तेजस्वी ने अपनी स्थिति मजबूत की है। उनके बड़े भाई तेज प्रताप यादव, जो कभी उत्तराधिकार की दौड़ में बाधा बन सकते थे, को कुशलता से हाशिए पर धकेल दिया गया है।
अब राजद में उत्तराधिकार को लेकर कोई बहस नहीं बची। तेजस्वी ने यह साबित कर दिया कि वे न केवल राजनीतिक रणनीति में माहिर हैं, बल्कि पार्टी पर अपनी पकड़ भी मजबूत रख सकते हैं।
हालांकि, नीतीश कुमार की सरकार भी आलोचनाओं से अछूती नहीं है। अपराध पर नियंत्रण न कर पाने के कारण उनकी छवि को नुकसान पहुंचा है। बिहार की जनता अब यह देख रही है कि क्या मौजूदा सरकार अपराध पर लगाम लगा पाएगी या राजद की सत्ता में वापसी होगी। कुल मिलाकर, बिहार की राजनीति में अपराध और सत्ता का यह खेल जनता के लिए कई सवाल खड़े करता है।