पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले सियासी माहौल गरमाया हुआ है। विपक्षी दल, खासकर कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद), चुनाव आयोग पर ‘वोट चोरी’ का आरोप लगाकर एक बार फिर विवादों के केंद्र में हैं। इन दलों के नेताओं और प्रवक्ताओं की ओर से संवैधानिक संस्था के खिलाफ इस्तेमाल की जा रही भाषा और रवैये ने न केवल लोकतंत्र की गरिमा को ठेस पहुंचाई है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि क्या ये दल अपनी बार-बार की हार से बौखलाकर अराजकता फैलाने की साजिश रच रहे हैं?
‘वोट चोरी’ का शोर और भाषा की मर्यादा का हनन
कांग्रेस नेता राहुल गांधी और राजद नेता तेजस्वी यादव ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए हैं। राहुल गांधी ने इसे ‘वोट चोरी’ की साजिश करार देते हुए कहा कि आयोग भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ मिलकर बिहार में चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने अपनी ‘वोटर अधिकार यात्रा’ शुरू की, जो 16 दिनों तक बिहार के 23 जिलों में चलेगी। इस यात्रा को उन्होंने ‘लोकतंत्र और संविधान की रक्षा’ की लड़ाई बताया, लेकिन उनकी भाषा और उनके समर्थकों के बयानों ने संवैधानिक संस्था की मर्यादा को तार-तार कर दिया।
हाल ही में एक टीवी डिबेट शो में राजद की एक युवा प्रवक्ता ने चुनाव आयोग के खिलाफ ‘लुच्चपना’, ‘कमीनगी’, और ‘ढीठाई’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया। इन शब्दों को शो के होस्ट संदीप चौधरी ने भी ‘गैर-जरूरी’ करार दिया। राजद प्रवक्ता की इस भाषा ने न केवल उनकी पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाया, बल्कि यह भी सवाल उठाया कि क्या राजद अपने प्रवक्ताओं को चुनते समय भाषाई मर्यादा और शिष्टाचार का ध्यान नहीं रखता? इस प्रवक्ता की ओर से बार-बार ‘वोट चोर’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल और वरिष्ठ नेताओं के प्रति असम्मानजनक रवैया राजद की संस्कृति को उजागर करता है।
चुनाव आयोग का जवाब और विपक्ष की बौखलाहट
चुनाव आयोग ने इन आरोपों का कड़ा जवाब दिया है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने 17 अगस्त 2025 को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि ‘वोट चोरी’ के आरोप निराधार हैं और आयोग सभी राजनीतिक दलों के साथ समान व्यवहार करता है। उन्होंने कहा कि मतदाता सूची में गलतियों को ठीक करने का मौका सभी दलों को दिया गया था, लेकिन विपक्ष ने समय रहते इसकी जांच नहीं की। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि SIR का उद्देश्य मतदाता सूची को शुद्ध करना है, न कि किसी की वोटिंग ताकत को कम करना।
चुनाव आयोग ने राहुल गांधी से उनके आरोपों को औपचारिक रूप से हलफनामे के साथ पेश करने को कहा, लेकिन राहुल ने इसे खारिज करते हुए कहा कि उन्होंने पहले ही संविधान की शपथ ली है। इस रवैये को आयोग ने ‘गंदे शब्दों’ के जरिए झूठी कहानी गढ़ने की कोशिश करार दिया।विपक्ष की यह रणनीति उनकी बार-बार की हार से उपजी हताशा को दर्शाती है। चौकीदार चोर’ से लेकर ‘ईवीएम गड़बड़ी’ तक के उनके पुराने शगूफों को जनता ने ठुकरा दिया था। अब ‘वोट चोरी’ का नया नारा उनकी बौखलाहट का सबूत है। बिहार के मंत्री नीरज सिंह बबलू ने कांग्रेस और राजद पर भ्रम फैलाने का आरोप लगाते हुए कहा कि ये दल अपनी हार को छिपाने के लिए संवैधानिक संस्थाओं को बदनाम कर रहे हैं।
बूथ लूट से वोट चोरी तक: विपक्ष का इतिहास
यह विडंबना ही है कि जिन दलों ने मतपत्र के दौर में बूथ लूटने की कुख्याति हासिल की थी, वे आज ‘वोट चोरी’ का आरोप लगा रहे हैं। राजद और कांग्रेस का इतिहास बिहार में बूथ कैप्चरिंग और चुनावी अनियमितताओं से भरा पड़ा है। अब जब चुनावी प्रक्रिया पारदर्शी और तकनीकी रूप से मजबूत हो चुकी है, तब ये दल अपनी हार को पचा नहीं पा रहे। केंद्रीय मंत्री प्रतापराव जाधव ने कहा कि राहुल गांधी को बिहार चुनाव में हार का डर सता रहा है, इसलिए वे आयोग पर बेबुनियाद आरोप लगा रहे हैं।
अराजकता की साजिश और एनजीओ का खेल
बिहार में ‘वोट चोरी’ के मुद्दे को हवा देने में कुछ यूट्यूबर्स और गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) की भूमिका भी संदिग्ध है। विदेशी फंडिंग पर प्रतिबंध और विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (एफसीआरए) के तहत सख्ती ने कई एनजीओ को बौखला दिया है। ये संगठन, जो पहले विदेशी फंड के जरिए अपनी गतिविधियां चलाते थे, अब मोदी सरकार के खिलाफ माहौल बनाने में जुटे हैं। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि ये समूह 2029 के लोकसभा चुनाव को ‘अंतिम लड़ाई’ मानकर 2025 से ही राहुल गांधी के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
राहुल गांधी, जो अब 55 वर्ष के हैं, 2029 में 59 वर्ष के होंगे। यदि तब भी उन्हें सत्ता नहीं मिली, तो 2034 में वे 64 वर्ष के होंगे। विपक्ष को लगता है कि मोदी सरकार और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के मजबूत नेटवर्क को बहुमत से हराना असंभव है। इसलिए, वे हिंदू समाज को बांटने और मुस्लिम-ईसाई वोटों को एकजुट करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। साथ ही, ‘वोट चोरी’ जैसे शब्दों के जरिए वे चुनावी प्रक्रिया को ही विवादित बनाकर अराजकता का माहौल बना रहे हैं।