दिल्ली। हाल के दिनों में सोशल मीडिया और यूट्यूब पर यह चर्चा जोरों पर है कि क्या वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम और उनके जैसे कई यूट्यूबर्स कांग्रेस पार्टी के लिए प्रचार करने में लगे हैं? यह सवाल न केवल पत्रकारिता की निष्पक्षता पर सवाल उठाता है, बल्कि डिजिटल युग में सोशल मीडिया के प्रभाव और इसके पीछे की संभावित साजिशों को भी उजागर करता है। कुछ सूत्रों और आरोपों के आधार पर यह दावा किया जा रहा है कि अजीत अंजुम और अन्य यूट्यूबर्स को कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाने के लिए मोटी रकम दी जा रही है। आइए, इस मुद्दे को गहराई से समझने की कोशिश करते हैं।
अजीत अंजुम एक चर्चित नाम हैं, जिन्होंने मुख्यधारा की पत्रकारिता में लंबे समय तक काम किया है। आरोप है कि उनकी पहचान और करियर को कांग्रेस के बड़े नेता, विशेष रूप से राजीव शुक्ला जैसे लोगों का समर्थन प्राप्त रहा है। कहा जाता है कि राजीव शुक्ला ने उन्हें न केवल नौकरी दी, बल्कि पत्रकारिता जगत में उनकी पहचान बनाने में भी मदद की। इस दावे के आधार पर कुछ लोग मानते हैं कि अजीत अंजुम ने हमेशा कांग्रेस के इकोसिस्टम के लिए काम किया है। यह भी सवाल उठता है कि क्या वह और उनके जैसे अन्य यूट्यूबर्स अब खुले तौर पर कांग्रेस के पक्ष में प्रचार कर रहे हैं, और क्या इसके पीछे आर्थिक लेन-देन का खेल चल रहा है?
सूत्रों के हवाले से दावा किया जा रहा है कि अजीत अंजुम समेत कई यूट्यूबर्स को एक संस्था के माध्यम से मोटी रकम दी जा रही है। इस संस्था का उद्देश्य कथित तौर पर कांग्रेस के पक्ष में दिन-रात प्रचार करना और सोशल मीडिया पर पार्टी की छवि को मजबूत करना है। यह भी कहा जा रहा है कि इन यूट्यूबर्स को न केवल पैसा दिया जा रहा है, बल्कि उनके चैनलों पर व्यूज और सब्सक्राइबर्स बढ़ाने का आश्वासन भी मिला है। कुछ लोगों का मानना है कि इन यूट्यूबर्स के वीडियो के तेजी से वायरल होने और उनके चैनलों की असामान्य वृद्धि के पीछे एक सुनियोजित रणनीति काम कर रही है।
आरोपों के मुताबिक, एक वीडियो के लिए यूट्यूबर्स को 20 हजार से लेकर डेढ़ लाख रुपये तक की राशि दी जा रही है। यह रकम इतनी आकर्षक है कि कई बड़े चेहरे दिन-रात कांग्रेस की तारीफ में लगे रहते हैं। इसके अलावा, यह भी खबर है कि कुछ लोग अपने सोशल मीडिया हैंडल, खासकर एक्स (पूर्व में ट्विटर) हैंडल, किराए पर दे रहे हैं, ताकि उनके जरिए कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाया जा सके। इनमें से कुछ लोग हर टिप्पणी पर नजर रखते हैं और अपनी सहमति के बाद ही उसे शेयर करने की अनुमति देते हैं, जबकि कुछ ने अपने हैंडल पूरी तरह से संस्था के हवाले कर दिए हैं।
हालांकि, इन दावों को साबित करना आसान नहीं है। यह दो पक्षों के बीच आपसी सहमति का मामला हो सकता है, जिसके कारण इसे कानूनी रूप से चुनौती देना मुश्किल है। दूसरी ओर, जो लोग बिना किसी आर्थिक लेन-देन के यूट्यूब पर कंटेंट बना रहे हैं, उनके लिए यह स्थिति चिंताजनक हो सकती है। वे देख रहे हैं कि कुछ यूट्यूबर्स के वीडियो असामान्य रूप से तेजी से वायरल हो रहे हैं, जिससे यह संदेह पैदा होता है कि कोई संगठित तंत्र इनके पीछे काम कर रहा है।
यह पूरा मामला न केवल पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है, बल्कि डिजिटल युग में प्रचार और प्रभाव के नए तरीकों को भी उजागर करता है। अगर ये आरोप सही हैं, तो यह सोशल मीडिया के दुरुपयोग का एक बड़ा उदाहरण हो सकता है। दूसरी ओर, यह भी संभव है कि ये आरोप किसी खास एजेंडे के तहत लगाए जा रहे हों। सच्चाई जो भी हो, यह जरूरी है कि ऐसी खबरों की गहन जांच हो और पारदर्शिता बनी रहे, ताकि आम जनता को सही जानकारी मिल सके।