चन्द्रशेखर ने अपने पोस्ट में नेपानगर थाने की उदासीनता और पीड़िता के परिवार को सहायता देने की मांग की, जो सही है, लेकिन उन्होंने शेख रईस का नाम छिपाकर मामले को जानबूझकर जातिगत रंग देने की कोशिश की। अपराधी की पहचान और हत्या का मकसद—जो ऑपइंडिया की रिपोर्ट में स्पष्ट है—को दबाना उनकी राजनीति का हिस्सा लगता है। रिपोर्ट के अनुसार, रईस ने लंबे समय से भाग्यश्री पर धर्म परिवर्तन और शादी का दबाव बनाया था, और इनकार के बाद उसने रात में उसके घर में घुसकर हत्या कर दी। पीड़िता की बहन सुब्हद्रा ने भी इस बात की पुष्टि की है कि रईस अक्सर उसे पीटता और धमकाता था।
चन्द्रशेकर की यह चुप्पी उनकी वोट बैंक की राजनीति को उजागर करती है। ‘भीम आर्मी’ दलितों और बहुजन समाज के हितों की बात करती है, लेकिन जब अपराधी मुस्लिम समुदाय से है, तो उनकी हिम्मत नाम लेने में क्यों नहीं पड़ती? अगर अपराधी सवर्ण या हिंदू होता, तो शायद चन्द्रशेखर का आक्रोश सोशल मीडिया पर तूफान मचा देता। यह दोहरा रवैया उनकी सियासी चाल को दर्शाता है, जहाँ सत्य को कुचलकर अपनी छवि चमकाने की कोशिश की जा रही है। क्या यह मुस्लिम वोट को न खोने की रणनीति है? यह सवाल अनुत्तरित रह जाता है, लेकिन उनकी चुप्पी इसे बल देती है।
वहीं, मध्य प्रदेश सरकार ने त्वरित कार्रवाई करते हुए रईस की संपत्ति पर बुलडोजर चलाया, जो न्याय की दिशा में एक सकारात्मक कदम है। पुलिस ने मामले में SC/ST एक्ट और BNS के तहत कार्रवाई शुरू की है, और फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई की मांग उठ रही है। लेकिन चन्द्रशेखर की निष्क्रियता ने इस घटना को सियासी रंग देने का अवसर गंवा दिया। वह दलितों के मसीहा बनने का दावा करते हैं, पर इस मामले में उनकी चुप्पी ने उनके इरादों पर शक पैदा कर दिया है।
बुरहानपुर हत्याकांड ने समाज में व्याप्त धार्मिक कट्टरता और पुलिस की नाकामी को उजागर किया है, लेकिन चन्द्रशेखर की राजनीति ने इसे और जटिल बना दिया। उनकी हिम्मत सत्य बोलने में नहीं, बल्कि उसे छिपाने में दिखती है, जो दलितों के हितों से ज्यादा उनकी सियासी महत्वाकांक्षा को दर्शाता है। यह घटना न केवल एक युवती की हत्या का शोक है, बल्कि सत्य को दबाने वाली राजनीति का भी आईना है।
Reference : https://hindi.opindia.com/news-updates/bulldozer-action-on-stable-of-the-accused-of-murdering-a-hindu-woman-in-burhanpur-madhya-pradesh/