सी-सेक्शन का बढ़ता चलन: आधुनिकता, संवेदनशीलता और प्रकृति से दूरी

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सिद्धार्थ ताबिश

भारत के बड़े शहरों में सी-सेक्शन (ऑपरेशन से बच्चे का जन्म) का आंकड़ा 50% से अधिक हो चुका है। बड़े प्राइवेट अस्पतालों में यह 70-80% तक पहुंच गया है, जबकि सरकारी अस्पतालों में यह बहुत कम है। निम्न आय वर्ग की महिलाएं सहज और प्राकृतिक रूप से बच्चे को जन्म देती हैं, लेकिन उच्च वर्ग में ऑपरेशन को प्राथमिकता दी जाती है। ऐसा क्यों?कुछ सामाजिक कार्यकर्ता और नारीवादी दावा करते हैं कि मेहनतकश महिलाएं शारीरिक रूप से मजबूत होती हैं, इसलिए वे प्राकृतिक प्रसव में सक्षम हैं, जबकि संपन्न घरों की महिलाएं मेहनत नहीं करतीं। यह दलील उतनी ही सतही है, जितना यह कहना कि आधुनिक पुरुषों का टेस्टोस्टेरॉन प्रदूषण और तनाव के कारण कम हो रहा है।

हकीकत यह है कि ऐशो-आराम और अत्यधिक पढ़ाई-लिखाई ने लोगों को अति-संवेदनशील और अप्राकृतिक बना दिया है। संपन्न घरों की महिलाएं और पुरुष मानसिक व शारीरिक रूप से नाजुक हो जाते हैं। छोटी-छोटी बातें उन्हें ठेस पहुंचाती हैं, और वे अपने रिश्तों की जटिलताओं में उलझे रहते हैं। ग्रामीण पुरुष के लिए पत्नी की शिकायत कि “तुम मुझे KFC या Starbucks नहीं ले गए” बेतुकी लगती है, लेकिन शहरी पुरुष इसे गंभीर अपराध मानकर माफी मांगने लगता है। शहरी जीवन ने पुरुषों को इतना संवेदनशील बना दिया है कि वे पत्नी की हर बात मानने लगते हैं।

बच्चे के जन्म के समय भी यही होता है। प्राइवेट अस्पतालों में डॉक्टर “कॉम्प्लिकेशन” का हवाला देकर ऑपरेशन का सुझाव देते हैं, और डरे हुए दंपत्ति तुरंत हामी भर देते हैं। कई महिलाएं पहले से ही ऑपरेशन के लिए मानसिक रूप से तैयार रहती हैं, क्योंकि वे प्रसव पीड़ा से बचना चाहती हैं।

दूसरी ओर, छोटे शहरों या गांवों के जच्चा-बच्चा केंद्रों में अनुभवी दाइयां महिलाओं को प्राकृतिक प्रसव के लिए प्रेरित करती हैं। अगर कोई महिला दर्द से बचने के लिए खुद को रोकती है, तो दाइयां सख्ती या गुस्से से उसे प्रेरित करती हैं, जिससे प्रसव आसान हो जाता है। शहरी समाज प्रकृति से इतना दूर हो चुका है कि प्राकृतिक प्रसव को क्रूर और टेस्टोस्टेरॉन से भरे पुरुषों को हैवान मानने लगा है।

मैं पुरुषों और महिलाओं को उनके प्राकृतिक स्वभाव में लौटने के लिए प्रेरित करता हूं, क्योंकि जीवन कविताओं और फिल्मों की काल्पनिकता से नहीं, प्रकृति के नियमों से चलता है।

(सिद्धार्थ ताबिश के सोशल मीडिया पेज से। श्री ताबिश के मूल लेख को संक्षिप्त और स्पष्ट करने के लिए कुछ हिस्सों को संशोधित किया गया है, ताकि यह अधिक प्रभावी और पढ़ने में आसान हो, बिना मूल संदेश को बदले। असंपादित लेख पढ़ने की इच्छा हो तो उनके पेज https://www.facebook.com/pageoftabish पर जाकर पढ़ सकते हैं)

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