एकीकृत चिकित्सा: कैंसर उपचार की समग्र दिशा

images-4.jpeg

डॉ शिवानी कटारा

मनुष्य केवल शरीर नहीं है, बल्कि पंचकोशीय अस्तित्व है — अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनंदमय। जब इनमें से किसी एक में असंतुलन होता है, तभी रोग जन्म लेता है। कोविड काल ने यह सच्चाई सामने लाई कि स्वास्थ्य केवल दवाओं से नहीं, बल्कि जीवनशैली, प्रतिरक्षा और मानसिक संतुलन से आता है। जब पूरी दुनिया आधुनिक चिकित्सा की सीमाओं में उलझी थी, तब भारत के घरों में काढ़ा, गिलोय, अश्वगंधा, योग और ध्यान ने लाखों लोगों की प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत किया। उस दौर ने यह एहसास कराया कि आधुनिक चिकित्सा अपने आप में संपूर्ण नहीं है।

कैंसर इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। यह रोग केवल शरीर की कोशिकाओं का विकार नहीं, बल्कि आहार, जीवनशैली और मानसिक असंतुलन का परिणाम है। भारत के कैंसर रजिस्ट्रियों के अनुसार वर्ष 2024 में लगभग 15.6 लाख नए कैंसर मामले दर्ज किए गए। पुरुषों में मुख (ओरल कैंसर) अब फेफड़ों के कैंसर से भी आगे निकल गया है, जबकि महिलाओं में स्तन कैंसर में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई। ICMR रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर पाँच में से तीन कैंसर रोगी निदान के बाद जीवन नहीं बचा पाते। वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की फरवरी 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, हर 20 में से एक महिला स्तन कैंसर के उच्च जोखिम में है। तम्बाकू सेवन में कमी के बावजूद ओरल कैंसर के मामले घटे नहीं हैं। इसका मुख्य कारण तम्बाकू के दीर्घकालिक प्रभाव, शराब सेवन, और अस्वस्थ जीवनशैली है। आधुनिक चिकित्सा के अनुसार, केवल 5 से 10 प्रतिशत कैंसर आनुवंशिक (genetic) होते हैं, जबकि अधिकांश मामलों का संबंध जीवनशैली, आहार, पर्यावरण और मानसिक तनाव से है।

कैंसर की सबसे अधिक घटनाएँ पूर्वोत्तर भारत, विशेष रूप से मिज़ोरम में दर्ज की गईं, जहाँ पुरुषों में 21.1 प्रतिशत और महिलाओं में 18.9 प्रतिशत आजीवन कैंसर जोखिम पाया गया। इसके पीछे मुख्य कारण हैं — उच्च तम्बाकू सेवन, जोखिमपूर्ण आहार आदतें जैसे किण्वित सूअर की चर्बी, धुएँ में पकाया गया मांस, अत्यधिक मसालेदार भोजन और गरम पेय का सेवन, साथ ही कार्सिनोजेनिक संक्रमणों (जैसे HPV, Helicobacter pylori और हेपेटाइटिस वायरस) की अधिकता। भारत में कुल कैंसर मामलों में से लगभग 4 प्रतिशत मामले 0 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों में पाए जाते हैं।

इन आँकड़ों से यह स्पष्ट है कि कैंसर केवल एक चिकित्सकीय समस्या नहीं, बल्कि जीवनशैली, पर्यावरण और मानसिक संतुलन का संकट है। और यही वह बिंदु है जहाँ आधुनिक चिकित्सा और आयुर्वेदिक समग्र दृष्टिकोण का संगम सबसे अधिक आवश्यक हो जाता है।

कैंसर अब सिर्फ़ बीमारी नहीं, बल्कि एक महँगा कारोबार बन गया है। भारत में ऑन्कोलॉजी दवाओं का बाजार तेज़ी से बढ़ रहा है, जिसकी वार्षिक वृद्धि दर लगभग 15 प्रतिशत है। नई टार्गेटेड और इम्यूनोथेरेपी दवाएँ लाखों रुपये की पड़ती हैं। एक सामान्य परिवार इलाज पर 80–90 हज़ार रुपये खर्च करता है, जिससे कई लोग गरीबी में चले जाते हैं, जबकि दवा कंपनियाँ इस भय से मुनाफ़ा कमाती हैं। लेकिन कुछ कहानियाँ इस सोच को तोड़ती हैं। जैसे अमृतसर की डॉ. नवजोत कौर सिद्धू की। वर्ष 2023 में उनके पति, पूर्व क्रिकेटर और नेता नवजोत सिंह सिद्धू ने घोषणा की कि उनकी पत्नी अब कैंसर-फ्री हैं। उन्होंने बताया कि आधुनिक उपचार के साथ-साथ सख्त आहार और जीवनशैली बदलाव ने उनकी पत्नी के उपचार में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने लिखा — Treatment + Diet – great combination for cancer cure. उनकी पत्नी ने नींबू पानी, हल्दी, एप्पल साइडर विनेगर, अखरोट, चुकंदर-गाजर-आंवले का रस, नीम की पत्तियाँ और pH-7 वाला जल लिया। उन्होंने शुगर, गेहूँ और डेयरी प्रोडक्ट्स पूरी तरह बंद कर दिए। यह डाइट भारतीय आयुर्वेद और नोबेल पुरस्कार विजेता योशिनोरी ओसुमी की Autophagy पर आधारित खोज से प्रेरित थी — जिसमें शरीर की कोशिकाएँ स्वयं को साफ़ कर पुनर्जीवित करती हैं। यह उदाहरण दिखाता है कि कैसे आधुनिक उपचार और आयुर्वेदिक ज्ञान मिलकर परिणाम दे सकते हैं। आयुर्वेद आज सिर्फ़ एक परंपरा नहीं, बल्कि विज्ञान की पूरक शक्ति बन चुका है। आयुर्वेद कहता है कि बीमारी तब होती है जब शरीर के तीन दोष — वात, पित्त और कफ — असंतुलित हो जाते हैं। कैंसर को आयुर्वेद ‘अर्बुद’ के रूप में देखता है, यानी कोशिकाओं (cells) के असामान्य वृद्धि का परिणाम। इसका उपचार केवल दवाओं से नहीं, बल्कि भोजन, मानसिक स्थिति और जीवनचर्या के सुधार से होता है। आयुर्वेदिक चिकित्सा में रसयान चिकित्सा (Rejuvenation therapy) विशेष रूप से उपयोगी मानी जाती है, जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली (immunity) को पुनर्जीवित करती है। भारत का स्वास्थ्य तंत्र आज दो धाराओं पर चलता है — एक ओर आधुनिक चिकित्सा संस्थान जैसे AIIMS, टाटा मेमोरियल और नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट हैं; दूसरी ओर आयुर्वेद, योग और होम्योपैथी के 3800 से अधिक अस्पताल और लगभग 37,000 डिस्पेंसरी हैं। भारत सरकार के आयुष मंत्रालय और ICMR मिलकर अब क्लिनिकल ट्रायल्स कर रहे हैं, ताकि यह वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित किया जा सके कि पारंपरिक और आधुनिक चिकित्सा का संयोजन किस हद तक प्रभावी है। यह वही दिशा है जिसकी कल्पना WHO ने अपनी ‘Traditional Medicine Strategy’ (2014–2023) में की थी। आयुर्वेदिक और योग आधारित जीवनशैली का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह बीमारी को शुरू ही नहीं होने देती।

आधुनिक चिकित्सा बीमारी का इलाज करती है, जबकि आयुर्वेद उसके कारण को पहचानकर शरीर के संतुलन को बहाल करता है। आज की जीवनशैली — गलत आहार, तनाव, नींद की कमी और प्रदूषण — हमारे अंदर निरंतर सूजन और विषाक्तता पैदा करती है। आयुर्वेद में इन्हें ‘अम’ कहा गया है। हल्दी, त्रिफला, तुलसी, गिलोय और नीम जैसे तत्व शरीर को इन विषों से मुक्त कर आत्म-चिकित्सा (self-healing) की क्षमता देते हैं। कैंसर उपचार में मानसिक स्वास्थ्य का विषय अक्सर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। लेकिन यह सबसे अहम हिस्सा है। कीमोथेरपी और रेडिएशन का दर्द, शरीर की कमजोरी, बालों का झड़ना, और लगातार मृत्यु का भय — यह सब रोगी को भीतर से तोड़ देता है। कई बार देखभाल करने वाले परिवारजन भी अवसाद और थकान से गुजरते हैं। योग और ध्यान यहाँ सबसे प्रभावी औषधियाँ साबित होती हैं। नियमित ध्यान और श्वास अभ्यास से तनाव हार्मोन घटता है, नींद सुधरती है और रोगी की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। मानसिक शांति शरीर की पुनर्प्राप्ति को गति देती है। एकीकृत चिकित्सा प्रणाली इसी समग्र दृष्टिकोण पर आधारित है। यह मानती है कि आधुनिक चिकित्सा तीव्र संकट में जीवन बचाती है, पर दीर्घकालिक स्वास्थ्य के लिए जीवनशैली, आहार और मानसिक संतुलन की भूमिका अनिवार्य है। इसीलिए दुनिया के बड़े चिकित्सा संस्थान — हार्वर्ड मेडिकल स्कूल, मेयो क्लिनिक और NCCIH (अमेरिका) — अब एकीकृत चिकित्सा (Integrative Medicine) पर रिसर्च कर रहे हैं। भारत के लिए यह क्षेत्र और भी स्वाभाविक है, क्योंकि यहाँ आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा दोनों का गहरा आधार मौजूद है। आज जरूरत इस बात की है कि चिकित्सा व्यवसाय का चेहरा बदला जाए।

स्वास्थ्य केवल दवाओं से नहीं आता; वह जीवनशैली से आता है। अगर कैंसर के इलाज में सर्जरी और कीमो के साथ आहार, योग, ध्यान और सकारात्मकता को जोड़ा जाए, तो इलाज सस्ता, सुलभ और अधिक मानवीय हो सकता है। एकीकृत चिकित्सा न तो परंपरा की वापसी है, न आधुनिकता का विरोध। यह दोनों का संतुलन है। यह हमें याद दिलाती है कि मनुष्य केवल शरीर नहीं, चेतना भी है। और जब उपचार शरीर, मन और आत्मा — तीनों स्तरों पर होता है, तभी वह सच्चा उपचार होता है। आख़िरकार, स्वास्थ्य का लक्ष्य केवल रोग से छुटकारा नहीं होना चाहिए — बल्कि वह होना चाहिए जो आयुर्वेद सदियों से कहता आया है:

:स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणं, आतुरस्य विकार प्रशमनं’

अर्थात् — स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा और रोगी के रोग का निवारण — यही सच्ची चिकित्सा है।

(लेखिका मुख एवं दंत चिकित्सक हैं तथा दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से पीएच.डी. हैं)

Share this post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

scroll to top