पत्रकार अनुरंजन झा जी के संदेश पर एवं संस्कृति मंत्रालय अन्तर्गत गाँधी स्मृति एवं दर्शन समिति के निदेशक ज्वाला प्रसाद जी के सहयोग एवं आशीष कुमार अंशु जी जैसे ऊर्जावान युवाओं के सहयोग से दिल्ली में 30 जनवरी मार्ग स्थित परिसर भवन में चम्पारण (बिहार) के वे युवजन एकत्रित हुए जो दिल्ली में विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत हैं। चम्पारण में एक अस्पताल (जो बनकर तैयार है) का संचालन प्रारम्भ करने की बात हुई। शिक्षा, पर्यावरण तथा अन्य क्षेत्रों में कार्यों को गति प्रदान करने के बारे में सहमति बनी। मैं भी इन गतिविधियों का साक्षी रहा। इस पोस्ट के साथ संलग्न चित्र उसी अवसर का है।
यद्यपि मैं चम्पारण का नहीं, जमुई का हूँ, फिर भी मूलतः एक बिहारवासी होने के नाते मेरे मन में भी चम्पारण के प्रति वही भाव है जो चम्पारण की मिट्टी से जुड़े लोगों का है।
चम्पारण से जुड़े लोगों की यह सक्रियता अत्यन्त हर्ष प्रदान करती है और आशाएँ जगाती है। साथ ही यह प्रश्न भी मन में पैदा करती है कि यदि चम्पारण के लोग इतने आगे हैं तो चम्पारण इतना पीछे क्यों है? इसी प्रश्न को मैं ऐसे कहना अधिक उपयुक्त समझता हूँ कि यदि बिहार के लोग इतने आगे हैं तो बिहार इतना पीछे क्यों है? वरिष्ठ पत्रकार अरविन्द मोहन जी एवं रवीश कुमार जी भी चम्पारण के हैं।
मिथिलावासियों को भी मैंने हर जगह बहुत सक्रिय और एकत्रित देखा है, दिल्ली में भी और बंगलोर में भी। अच्छा हो कि मगध के लोग भी इसी प्रकार ही सक्रिय होने की प्रेरणा लें एवं अग्रसर हों।
दिल्ली, बंगलोर अथवा विदेशों में कार्यरत स्थूल शरीर सूक्ष्म शरीर के रूप में अपने जन्मस्थान की मिट्टी की सुगन्ध ढूँढ़ता हुआ विचरण करता रहता है, इस मर्म को कितने लोग महसूस करते हैं?
– राजकिशोर सिन्हा