मुम्बई। भारतीय सिनेमा के क्षेत्र में एक और गौरवशाली पल जुड़ गया है, जब चंपारण, बिहार के संजीव के. झा द्वारा लिखित मराठी फिल्म ‘सुमी’ को सर्वश्रेष्ठ बाल फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ। इस फिल्म का निर्देशन अमोल गोले ने किया है, जिनके कुशल निर्देशन ने कहानी को जीवंत कर दर्शकों का दिल जीत लिया। यह उपलब्धि न केवल संजीव और अमोल के लिए, बल्कि पूरी टीम के लिए गर्व का क्षण है।
‘सुमी’ एक ऐसी फिल्म है जो बच्चों के मनोविज्ञान, उनकी भावनाओं और सपनों को संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करती है। संजीव के. झा, जो चंपारण से निकलकर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुके हैं, ने इस फिल्म के माध्यम से सामाजिक संदेश को रचनात्मक ढंग से पेश किया। उनकी लेखनी में गहरी संवेदनशीलता और सामाजिक सरोकारों का समावेश देखने को मिलता है, जो दर्शकों को न केवल मनोरंजन प्रदान करता है, बल्कि सोचने पर भी मजबूर करता है।
अमोल गोले का निर्देशन इस फिल्म की आत्मा है। उन्होंने संजीव की कहानी को परदे पर इस तरह उतारा कि हर दृश्य दर्शकों के दिलों को छू जाता है। फिल्म की तकनीकी टीम, कलाकारों और सहयोगियों ने भी इस सफलता में महत्वपूर्ण योगदान दिया। राष्ट्रीय पुरस्कार जैसे प्रतिष्ठित सम्मान ने इस बात को रेखांकित किया है कि सार्थक सिनेमा भाषा, क्षेत्र या बजट की सीमाओं से परे होता है।
चंपारण, जो कभी महात्मा गांधी के सत्याग्रह का गवाह बना, आज संजीव जैसे प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के कारण फिर से चर्चा में है। उनकी यह उपलब्धि न केवल बिहार के लिए, बल्कि पूरे देश के युवा लेखकों और फिल्मकारों के लिए प्रेरणा है। ‘सुमी’ की इस सफलता ने साबित कर दिया कि मेहनत, लगन और सच्ची कहानी कहने की कला किसी भी मंच पर अपनी छाप छोड़ सकती है।
पूरी टीम को इस ऐतिहासिक उपलब्धि के लिए हार्दिक बधाई। यह पुरस्कार न केवल ‘सुमी’ की जीत है, बल्कि भारतीय सिनेमा में सार्थक कहानियों की जीत है।