साथी अजीत भारती के विदाई पर कुछ इस तरह याद किया अजीत झा ने
2021 की इस अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को एक पुरुष साथी अलग सफर पर निकला पड़ा तो मुझे सहसा ऐतरेय ब्राह्मण की याद आई। इसमें कहा गया है;
चरन् वै मधु विंदति चरन् स्वादुमुदंबरम
सूर्यस्य पश्य श्रेमाणं यो न तंद्रयते चरंश्चरैवेति
यानी, चलते हुए मधु प्राप्त होता है। चलते हुए फल का स्वाद मिलता है। सूर्य की श्रेष्ठता देखो, चलते हुए उसे तंद्रा नहीं आती। चलते रहो।
तो हमारे एक साथी ने एक और नए सफर पर चलते रहना का आज आधिकारिक तौर पर फैसला कर लिया। वह फैसला जिसके बारे में मैं काफी समय से जानता था। जिसको लेकर आपमें से कई ने फोन कर, कुछ ने संदेश भेज मुझसे पूछा था। और मैं हमेशा कहता कि मुझे जानकारी नहीं। वे आज भी मेरे संपादक हैं और मुझे निर्देश दे रहे हैं।
तो अब आधिकारिक खबर यह है कि अजीत भारती मेरे संपादक से पूर्व संपादक हो गए हैं। मुझे सहसा जून 2019 का महीना याद आ गया। मैं करीब एक महीने बाद दिल्ली लौटा था और एक दिन शाम के वक्त एक नंबर पर कॉल मिलाया। नंबर के उस पार अजीत भारती थे। मैंने कहा कि फलाने आदमी से आपका नंबर मिला। उन्होंने कहा- अरे महराज मार्च में मेरी उनसे बात हुई थी, आपको अब याद आई है। आप कल आकर मिलिए। उन्होंने पता बताया और समय। अगले दिन मैं नियत जगह पर पहुंचा। वे एक केबिन में ले गए। सोफे पर बिठाया और खुद से मेज पर रखा कॉफी का मग और अन्य कूड़ा साफ करने लगे। फिर इधर-उधर की कई बातें हुई। मैंने पूछा कि काम के सिलसिले में कुछ पूछना हो। वे बोले- आप इतने अनुभवी हैं। क्या पूछना। आप बताइए कब से शुरू करेंगे? इसके बाद 7 मार्च 2021 तक यह सफर साथ-साथ चलता रहा।
यह बेहतरीन सफर रहा! ऐसा सफर जिसे आप पूरी जिंदगी याद रखना चाहेंगे!
अजीत जी की चर्चाओं के साथ कुछ सवाल भी हैं। व्यक्तिगत तौर पर मेरा मानना है कि राष्ट्रवादी पत्रकारिता को मजबूत करने की दिशा में अभी इतना काम करने की जरूरत है कि ढेर सारे वैचारिक रूप से प्रतिबद्ध संस्थान खड़ा करना जरूरी है। इसलिए, अजीत जी के नए वेंचर से इस तरह की पत्रकारिता को कोई नुकसान नहीं होगा। यह और समृद्ध होगा। इससे ऑप इंडिया के विचारों को भी और विस्तार मिलेगा।
इसलिए, यह वक्त किंतु-परंतु का नहीं। दुख या अवसाद का नहीं। उल्लास का है! DO Politics को भी वैसा ही दुलार और सहयोग दें, जैसा आप ऑप इंडिया को देते रहे हैं। हां, रोजमर्रा की जीवन में डोंट डू पॉलिटिक्स!
चलते-चलते बाबा नागार्जुन याद आ रहे हैं। उन्होंने कहा था,
पुरजन, परिजन के छोड़ि छाड़ि
पातिल पुरहर के फोड़ि फाड़ि
हम जा रहल छी आन ठाम
आन ठाम, यानी दूसरी जगह। लेकिन इससे फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि हम उस परंपरा के लोग हैं जो दूसरी जगह जाते वक्त भी पातिल पुरहर (पत्राच्छादित कलश) को नहीं फोड़ते।
नई सफर की हृदय से शुभकामनाएं। मां उच्चैठ भगवती आपको और प्रखरता दें।