मोहम्मद साकिब
पत्रकार अजीत अंजुम चर्चित पत्रकार चित्रा त्रिपाठी की तरफ से इस हमले के लिए शायद तैयार नहीं थे। उन्होंने आज तक खबरिया चैनलों की हिन्दी पत्रकारिता में गिरोह चलाया है। जहां उन्हें सिर्फ कहने की आदत थी। सोशल मीडिया के इस दौर में उनके लिए यह सब सुनना थोड़ा मुश्किल तो होगा। अब अजीत अंजुम को मान लेना चाहिए कि समय बदल रहा है। अब उनका ‘अपना पत्रकारिता समाज’ भी उनकी थोपी हुई पत्रकारिता को स्वीकार करने को तैयार नहीं है।
चित्रा त्रिपाठी खबरिया चैनलों की दुनिया में एक जाना पहचाना चेहरा है। चित्रा त्रिपाठी का एक ट्ववीट इन दिनों सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बना हुआ है। चित्रा ने पत्रकार अजीत अंजूम की बलात्कार आरोपियों की जाति तलाशने की मानसिकता पर अफसोस व्यक्त करते हुए लिखा है— ”आपकी ये लाइनें पढ़कर घिन्न आ रही है.. कोई आदमी बलात्कारियों में भी #ब्राह्मण कैसे ढ़ूढ लेता है. रेपिस्ट की कोई जाति होती है क्या? हद है…बेहद शर्मनाक ट्वीट..”
अजीत अंजुम ने अपने ट्ववीट में लिखा था— ”उन्नाव के सभी दरिंदे त्रिवेदी और वाजपेयी हैं .ऊंच कुल-गोत्र के ब्राह्मण.तभी बलात्कारियों का धर्म देखकर शोर करने वाले सन्नाटे में हैं या कुछ कहकर खानापूर्ति कर रहे हैं .अगर ये भक्तों के ‘टारगेट वाले’ होते न तो पूरी ट्रोल आर्मी दिन-रात काम पर लगी होती.”
अंजुम बिहार की एक ऊंची जाति से स्वयं ताल्लूक रखते हैं और अपने ही कुल गोत्र के बलात्कार आरोपी ब्रजेश पांडेय पर चुप्पी लगाए रहते हैं क्योंकि उन्हें रवीश कुमार के साथ अपने रिश्ते की चिन्ता है। वह आगे भी उन्हें सलामत रखना है।
अजीत अंजुम के इस जातिवादी मानसिकता की हर तरफ आलोचना हो रही है। पिछले दिनों टीवी 09 भारतवर्ष से अंजुम बाहर आए हैं। टीवी 09 में अंजुम के सहयोगी और वर्तमान में टीवी पत्रकारिता के चर्चित चेहरे अभिषेक उपाध्याय ने पत्रकार रहे अजीत अंजुम की जातिवादी मानसिकता पर टिप्पणी करते हुए लिखा — ”घिन्न आएगी ही। इन महाशय का चरित्र ही ऐसा है। बेहद औसत दर्जे की समझ वाले इन लोगों ने सालों साल पत्रकारिता में ‘गिरोह’ चलाकर कितनी ही प्रतिभाओं की हत्या की है! ये पाप कभी इनका पीछा नही छोड़ेगा। सुकून की बात है कि अब चेहरे से नकाब नोचने का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है ।”
अजीत अंजुम की पत्रकारिता को कई लोग कांग्रेसी चाटुकारिता की पत्रकारिता बताते हैं। अब फिर एक दिन यूपीए की सरकार केन्द्र में आए और अजीत अंजुम के पुराने दिन लौटे। तब तक वे समाज को बांटने की अपनी मानसिकता को यूं ही जाहिर करते रहेंगे।