पटना। देश के सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश साहब की तस्वीर एक चोरी के मामले में जेल की सैर कर चुके ‘महानुभाव’ के साथ वायरल हो रही है। अब भई, यह तस्वीर कोई सेल्फी नहीं, बल्कि एक ‘स्वयं-शर्मिंदगी’ का दस्तावेज है! जिस कुर्सी पर बैठकर संविधान की रक्षा की शपथ ली, उसी की गरिमा को एक फ्रेम में चोर के साथ पोज देकर तार-तार कर दिया। लगता है, न्याय के मंदिर से रिटायर होने के बाद अब ‘उपराष्ट्रपति भवन’ की कुर्सी का सपना सताने लगा है।

सोचिए, देश की जनता क्या कहेगी? “अरे, ये वही जज साहब हैं न, जो पहले संविधान की बात करते थे और अब चोरों के साथ फोटो सेशन में व्यस्त हैं?” यह तस्वीर तो जैसे कह रही है, “न्याय का तराजू अब स्टूडियो की फ्लैशलाइट में तौला जाएगा!” करोड़ों लोगों का विश्वास उस मंदिर पर टिका है, जहां से कानून की गंगा बहती है, लेकिन अगर वहां का पुजारी ही ऐसी हरकत करे, तो गंगा मैली कैसे न हो?
ऐसी स्थिति से बचना तो बनता था। जज साहब को शायद फोटो खिंचवाने से पहले दस बार सोचना चाहिए था। अब तो बस यही कह सकते हैं—जज साहब, अगली बार कैमरा देखकर मुस्कुराने से पहले अपने पद की गरिमा को भी एक नजर देख लिया करें, वरना जनता तो कहेगी, “ये कैसा न्याय, जहां चोर और चौकीदार एक फ्रेम में!”