पंकज कुमार झा
किसी भी पॉकेटमार, दलाल या बदजुबान अपराधियों के विरुद्ध अगर कहीं पुलिस में कोई शिकायत होती है, या एफआईआर दर्ज किया जाता है, और अगर वह चिल्लाने लगे कि फलाना खतरे में है, चिलाने के साथ अन्याय हो रहा है, तो इससे तीन बातें स्पष्ट होती है।
– पहला, यह कि वह सचमुच अपराधी है और अपराध साबित हो जाने की आशंका से भयाक्रांत है।
– दूसरा, यह कि उसे भारतीय संविधान के प्रति तनिक भी आस्था नहीं है। वह संविधान का हत्यारा है क्योंकि संविधान और नियम से चलने वाले देश में उसे न्यायिक प्रक्रिया पर भरोसा नहीं है। उस प्रक्रिया पर, जिसका नैसर्गिक सिद्धांत यह है कि सौ दोषी भले छूट जाये, किंतु किसी एक निर्दोष को सजा नहीं मिले।
– तीसरा, वह अपने आपको विशिष्ट और समूचे देश को अपने बाप की जायदाद समझता है।
नेताओं से लेकर यूट्यूबर दलालों में प्रति यह तीनों नियम समान रूप से लागू होता है। इन तीनों में बारे में तथ्यों के साथ समझने की कोशिश कीजिए।
तथ्य यह है कि देश में संज्ञेय अपराधों में लगभग 18 हजार प्राथमिकी रोज दर्ज किया जाता है। यह उन शिकायतों के अतिरिक्त है, जिनमें राहुल की तरह पेशेवर बदजुबानों (जिसे अनेक बार कोर्ट ने बदजुबानी के कारण फटकार लगायी है। जिसे अनेक बार कोर्ट में माफी मांगने के बावजूद गुंडई करते रहना अपना खानदानी अधिकार नजर आता है।) के विरुद्ध शिकायतें अलग है। या अंजुम जैसे दलालों के विरुद्ध हुई कारवाइयां भी इसमें शामिल नहीं हैं।
अब आप ये बताइए। अगर प्राथमिकी दर्ज होना या शिकायत हो जाना देश भर में भौंकने का लाइसेंस हो जाय, तो उन 18 हजार से अधिक आरोपियों से जुड़े लोग, जिनके विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज हुआ हो, वे तो भौंक-भौंक कर देश को राहुल टाइप बना देंगे? गलत तो नहीं कह रहा न? लेकिन राहुलों या अंजुमों जैसी जमातों को छोड़ कर और कोई ऐसा नजर आया कभी आपको जिसने कभी प्राथमिकी दर्ज होने पर ‘राहुल रोना’ मचाया हो?
तो भाई, जब सभी आरोपी अपने विरुद्ध दर्ज शिकायतों का चुपचाप सामना करते हैं, तो तुम कोई लाट साहब हो कि तुम्हारे विरुद्ध की गई शिकायत संविधान पर हमला या अभिव्यक्ति की आजादी पर कुठाराघात जैसा हो जाय? बल्कि तथ्य तो इसका उल्टा होगा न? संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों का उपयोग करते हुए ही अगर तुम्हारी बदजुबानी या दलाली से आहत पक्ष तुम्हारे विरुद्ध न्यायिक उपचार का सहारा लेना चाहे तो तुम्हारी नानी क्यों मर जाती है मियां?
यह जो विशिष्टता बोध और अहंकार है न, दो कौड़ी की कोई हैसियत नहीं होते हुए भी व्यवस्था को अपने अंगुली पर नचाने का जो ईगो है न तुममें या तुम्हारे गिरोह में, यही संविधान की हत्या है। यह लोकतंत्र का कोढ़ है।
याद करो मोदीजी को। उनपर दुनिया भर का शिकंजा कस दिया गया था। मीडिया ट्रायल ऐसा हो रहा था मानो कथित पत्रकारों के अलावा किसी वकील, दलील और अपील का कोई अर्थ नहीं। एक अपार बहुमत से चुनें हुए मुख्यमंत्री को जांच एजेंसियां घंटों बैठाती थी। लंबी पूछताछ करती थी। समाचार और लेख आदि रंगे रहते थे मोदीजी के विरुद्ध। तमाम मर्यादा और संसदीय तमीज भूल कर अखबार वाले ‘जल्लाद’ आदि शब्द तक लिख देते थे तब के मुख्यमंत्री के लिए। हालांकि अगर सच में जल्लाद होते वे तो ऐसा लिखने वालों की जुबान हलकविहीन हो जाती।
फिर भी उस महापुरुष ने उफ तक नहीं किया। हर सुनवाई का डट कर सामना किया। अमित शाह राज्य बदर कर दिए गए, फिर भी कभी कोई शिकायत नहीं की। चुपचाप अपना काम करते रहे।
ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें अपने चरित्र पर भी भरोसा था। अपने निर्दोष होने से उपजा सात्विक आत्मविश्वास भी उनमें था और बाबा साहेब में संविधान, उसी के आलोक में संसद के बनाए कानूनों पर भी भरोसा था।
इसके उलट आज के उचक्कों को देख लीजिये। ED पूछताछ करती है तो उसका दफ्तर घेरने पहुंच जाते हैं, सीबीआई बुलाती है तो वहां भी पूरे लंपटों का गिरोह लेकर पहुंच जाते हैं। अंजुम जैसे यूट्यूबर दलाल भी यही कर रहे। गंध मचा कर रख देते हैं सोश्यल मीडिया पर भी। ऐसा इसलिए क्योंकि अभागों को अपने दोष के कारण डर तो रहता ही है। दुनिया को धोखा दे देंगे ये किंतु अंतरात्मा का क्या करेंगे ये अभागे? वह तो इन्हें डरायेंगे ही। मन दर्पण कहलाये। साथ ही संविधान के भी ये हत्यारे होते हैं। उसका भी सम्मान नहीं होता इन आदतन और पेशेवर अपराधियों के मन में।
मेरे स्वयं के विरुद्ध कुछ ऐसे ही तत्वों ने शिकायत दर्ज करायी। दोहरापन देखिए। स्वयं ये लोग सौ-सौ मुकदमे एक एक व्यक्ति पर दर्ज करा देते हैं। किंतु दूसरा कोई कर दे तो राहुल रोना, जबकि अक्सर आरोप सही साबित होते हैं इनके विरुद्ध। अनेक बार कोर्ट ने सजा दी है। नाक रगड़वाया है।
बहरहाल। अपने 3 दशक से अधिक के सार्वजनिक जीवन में यह पहला मामला था जब पुलिस में मेरी शिकायत हुई। पीड़ा तो हुई किंतु सोश्यल मीडिया पर सक्रिय रहने के बावजूद उस विषय पर बात नहीं की कभी। सोच के रखा है कि अगर लड़ना पड़ेगा तो स्वयं अपनी लड़ाई लड़ेंगे, वकील भी नहीं लेंगे। अपनी पैरवी स्वयं करेंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि एक तो हमें संविधान पर भरोसा है, दूसरा स्वयं के निर्दोष होने पर। फिर काहे का डर?
सो, राहुल के लड़के-लड़कियां हों या अंजुम के, अगर सड़क पर चिल्ला रहे हैं न्यायिक प्रक्रिया के विरुद्ध, तो समझ लीजिये कि अपने फैलाए आतंक से बुरी तरह भयाक्रांत हैं ये बदजुबान आतंकी। ऐसा नहीं होता तो अपना काम करते और चुपचाप वैसे ही अपने मुकदमें की पैरवी कराते जैसे रोज 18 हजार से अधिक नए आरोपी लोग करते हैं।
ये इसके उलट करते हैं, जिससे साबित होता है कि ये चोर हैं। चोर मचाये शोर। चोर बोले जोर से। चोर के दाढ़ी में तिनका। चोर-चोर मौसेरे भाई। चोरी और सीनाजोरी।
सही कह रहा हूं न?