लंबे समय से एक ऐसी कहानी लिखने की इच्छा है, जो भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों और राजनेताओं की केस स्टडी हो। ऐसे लोग, जिनका भ्रष्टाचार जगजाहिर हो और जिन्होंने अपने करियर के सुनहरे दिनों में समाज की ओर कभी ध्यान ही नहीं दिया। उनका एकमात्र लक्ष्य अधिक से अधिक धन कमाना रहा।
कहानी का फोकस इन भ्रष्टाचारियों के जीवन के उत्तरार्ध पर होगा। कहानी का छोटा हिस्सा उनकी सेवा के दौरान का होगा, जबकि बड़ा हिस्सा उनकी सेवानिवृत्ति के बाद के जीवन पर केंद्रित होगा। सवाल यह है कि सैकड़ों लोगों के जीवन से खिलवाड़ करने वाला कोई चिकित्सक, थाना प्रभारी, अंचल अधिकारी, जिला अधिकारी, मंत्री, सांसद या विधायक क्या बुढ़ापे में चैन से जी पाता है?
मैंने एक भ्रष्ट आईएएस अधिकारी की कहानी पर विचार किया। वह जीवन भर रौब और ठसक के साथ रहा। उसने इंसान को इंसान नहीं समझा। उसके बच्चे विदेश में पढ़े और वहीं बस गए। उन्होंने अपने पिता द्वारा भारत में इकट्ठा की गई संपत्ति की ओर मुड़कर भी नहीं देखा। पत्नी का देहांत हो गया, और वह पूरी तरह अकेला रह गया। एक दिन चुपके से दुनिया से चला गया।
इसी तरह, एक अन्य अधिकारी को उनके घरेलू सहायक तक सुबह-शाम गालियाँ देते थे। कभी अपने आसपास के लोगों को जूते की नोक पर रखने वाला यह अधिकारी, उसी शहर में रहते हुए भी अपने बच्चों से दूर हो गया। बच्चे अलग बंगले में रहने लगे। उनकी मृत्यु अत्यंत दर्दनाक थी। अंतिम दिन घिसट-घिसट कर जिए, और एक दिन गुमनामी में खो गए।
ऐसा नहीं कि जिनके जीवन में बाहर से संपन्नता दिखती है, वे वास्तव में सुखी होते हैं। ऐसे कई परिवार अंदर से खोखले होते हैं, जहाँ किसी को किसी की परवाह नहीं होती। जब बच्चों को पता है कि उनके पिता भ्रष्टाचारी थे, वे चाहे समाज में कितना ही सम्मानित चेहरा दिखाएँ, बच्चे मन से उनका सम्मान नहीं करते।
बिहार के एक कुख्यात भ्रष्ट नेता का उदाहरण लें। उनके चेहरे पर भ्रष्टाचार की छाप साफ दिखती है। टमाटर-सा लाल चेहरा अब काला पड़ चुका है। ऐसे भ्रष्टाचारी आमतौर पर लंबा जीवन जीते हैं, लेकिन उनका बुढ़ापा कष्टों में बीतता है। यदि आप किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं, जो जीवन की दूसरी पारी में है और जिसके भ्रष्टाचार की कहानियाँ आपको मालूम हैं, तो उनके करीब जाकर देखिए। और यदि वह व्यक्ति आप स्वयं हैं, तो आज से अपने साथ घट रही घटनाओं का लेखा-जोखा रखना शुरू कीजिए।
स्वर्ग और नर्क अलग से कुछ हो या न हो, लेकिन यहाँ अपने कर्मों का हिसाब कुछ हद तक चुकाना ही पड़ता है।